बरेली: देश में पहली बार कुत्ते का कूल्हा प्रत्यारोपण करेंगे आईवीआरआई के वैज्ञानिक

बरेली: देश में पहली बार कुत्ते का कूल्हा प्रत्यारोपण करेंगे आईवीआरआई के वैज्ञानिक

शिवांग पांडेय, बरेली, अमृत विचार। इंसानों की तरह कुत्ते भी अर्थराइटिस (गठिया) की बीमारी की चपेट में आ रहे हैं। देश पहली बार ऐसे कुत्तों के कूल्हा प्रत्यारोपण की तैयारी चल रही है। भारतीय पशु चिकित्सा अनुसंधान संस्थान (आईवीआरआई) के वैज्ञानिक इस पर अध्ययन कर रहे हैं। आने वाले समय में वैज्ञानिक कूल्हा प्रत्यारोपण कर कुत्तों की चलने-फिरने की समस्या का समाधान करेंगे।

शल्य चिकित्सा विभाग के विभागाध्यक्ष डॉ. अमरपाल के निर्देशन में संस्थान के वैज्ञानिक डॉ. रोहित कुमार इस प्रोजेक्ट पर काम कर रहे हैं। प्रोजेक्ट में उनके साथ प्रधान वैज्ञानिक डॉ. अभिजीत पावड़े और डॉ. अभिषेक भी सहयोग कर रहे हैं। डॉ. रोहित के अनुसार कुत्तों में अर्थराइटिस की समस्या के पीछे जैनेटिक, खान-पान, वातावरण, दुर्घटना, इंफेक्शन हो सकते हैं। अर्थराइटिस से कुत्तों के कूल्हे की हड्डियां जम जाने से उनके जोड़ जाम हो जाते हैं, जिससे चलना-फिरना, खाना छोड़ना, लगातार दर्द, आक्रमक होने जैसे लक्षण दिखाई देते हैं। वर्तमान में रेफरल वेटेनरी पॉलीक्लीनिक में सप्ताह में कुत्तों में अर्थराइटिस (गठिया) से संबंधित दो से चार मामले आ रहे हैं। इसके लिए लेब्राडोर, जर्मन शेफर्ड व पॉमेलियन प्रजाति के कुत्तों पर अध्ययन किया जा रहा है।

कुत्तों के शारीरिक आकार के अनुरूप होगा कूल्हा प्रत्यारोपण
शल्य चिकित्सा विभाग के विभागाध्यक्ष एवं प्रधान वैज्ञानिक डॉ. अमर पाल ने बताया कि कूल्हा प्रत्यारोपण करने के लिए कुत्तों की विभिन्न प्रजातियों के शारीरिक आकार पर विशेष ध्यान दिया जा रहा है। इसके आधार पर ही सॉकेट-बॉल नामक मेटेरियल तैयार किया जाएगा। जिसको कुत्तों की कूल्हे की हड्डियों के अंदर धंसाया जाएगा। सॉकेट-बॉल ही कुत्तों को चलने-फिरने में सहायक होगा।

हाईडेन्सिटी पॉली इथाइलीन से तैयार कर रहे हैं सॉकेट-बॉल
कूल्हा प्रत्यारोपण के लिए बनाए जा रहे सॉकेट-बॉल में हाईडेन्सिटी पॉली इथाइलीन का प्रयोग किया जा रहा है, जो शरीर के वजन को संतुलित करने में सहायक होता है। इस पदार्थ को बनाने में मैटेरियल, आकार, गहराई, फिक्सेशन की प्रक्रिया आदि का विशेष ध्यान दिया जाएगा। प्रयोग के तौर पर शुरुआत में सॉकेट मेटल और कप हाईडेन्सिटी पॉली इथाइलीन का बनाया जा रहा है। इसके बाद इस तकनीक को और बेहतर बनाने के लिए टाइटेनियम, स्टेलनेस स्टील, आयरन, मेटल पर सॉकेट-बॉल बनाने का काम किया जाएगा।

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