बरेली: 60 के दशक में ही वीरेंद्र कुमार ने शुरू कर दी थी फोटोग्राफी

बरेली, महिपाल गंगवार। तस्वीरें हमारे कल और आज का आईना होती हैं। कहा भी जाता है कि जो हजार शब्द नहीं कह सकते हैं, वह केवल एक तस्वीर बयां कर देती है। वक्त के साथ-साथ कैमरे बदले, तस्वीरें बदलीं और अब जमाना सेल्फी तक आ पहुंचा है। समय परिवर्तन के साथ-साथ फोटोग्राफी के 200 साल …
बरेली, महिपाल गंगवार। तस्वीरें हमारे कल और आज का आईना होती हैं। कहा भी जाता है कि जो हजार शब्द नहीं कह सकते हैं, वह केवल एक तस्वीर बयां कर देती है। वक्त के साथ-साथ कैमरे बदले, तस्वीरें बदलीं और अब जमाना सेल्फी तक आ पहुंचा है। समय परिवर्तन के साथ-साथ फोटोग्राफी के 200 साल के लंबे इतिहास में अब बहुत बदलाव आ गया है।
डिजिटल युग में अब हर व्यक्ति फोटोग्राफर है। ये कहना है 60 के दशक में फोटो स्टूडियो खोलने वाले वीरेंद्र कुमार का। शहर में आज भी लोग इनकी फोटो कला के दीवाने हैं। वैसे तो जिले में कई और फोटोग्राफर भी शानदार फोटो खींचने की महारथ हासिल कर चुके हैं। लेकिन जिले में जहां भी कहीं फोटो की बात होती तो प्रेमनगर के भूड़ निवासी वीरेंद्र कुमार की चर्चा फोटोग्राफर्स जरूर करते हैं।
उनके द्वारा प्रयोग किए गए कैमरे और उनके द्वारा खींचे गए फोटो लोगों की यादगार बन चुके हैं। वीरेंद्र कुमार ने भले ही अलंकार नाम से मशहूर अपना स्टूडियो बंद कर दिया है, लेकिन उनके अंदर की रचनात्मकता इस पड़ाव में देखने लायक है। वह सामने खड़े व्यक्ति का फोटो चंद मिनट में उकेर देते हैं।
पिनहोल कैमरा से खींचते थे फोटो
आवास विकास निवासी फोटोग्राफर स्वर्गीय जीडी तपस्वी की पुत्री डा. श्रेष्ठ भारद्वाज ने बताया कि उनके पिताजी ने एमए करने के बाद एलएलबी की पढ़ाई की। इस दौरान सरकारी नौकरी के अवसर मिले, लेकिन घरवालों और फोटोग्राफी का शौक होने की वजह से उन्होंने साल 1967 में फोटोग्राफी शुरू कर दी।
डा. श्रेष्ठ भारद्वाज ने बताया कि उनके पिता जीडी तपस्वी ने सबसे पहले पिनहोल कैमरा से फोटोग्राफी करना शुरू किया था। इस कैमरे में एक बल्ब का प्रयोग किया जाता था। बल्ब फूटने के साथ ही फोटो क्लिक हुआ करता था। एक फोटो का साइज 10 बाई 12 इंच की निकालता था। उसके बाद फोटो बनाया जाता था। पूर्व राष्ट्रपति सर्व पल्ली राधा कृष्ण के बरेली कॉलेज आगमन पर पिता को फोटो खींचने के लिए बुलाया गया था।
1985 में मशहूर हुए फोटोग्राफर राजकिशोर मिश्रा
जिले में दूसरे नंबर पर मशहूर फोटोग्राफरों में 1985 में फोटोग्राफी शुरू करने वाले राजेंद्र नगर निवासी राजू मिश्रा का नाम भी शामिल हैं। वह बताते हैं कि उनके दौर में कैमरे में रील पड़ती थी, जिससे निगेटिव निकाले जाते थे। अब पारंपरिक तरीके की फोटोग्राफी का अंत हो गया है।
अब डिजिटल प्लेटफॉर्म फोटोग्राफी को एक बड़ा मंच प्रदान कर रहे हैं। बताया कि फोटोग्राफी के कुछ समय बाद भाई कौशल किशोर के साथ रेलवे में नौकरी का अवसर मिला, लेकिन उन्होंने नौकरी ठुकरा दी, भाई कौशल किशोर लगे रहे। दो साल पहले उनका रिटायरमेंट हो गया। पटना, मुंबई, बनारस, राजस्थान समेत कई राज्यों में भी राजकिशोर मिश्रा फोटोग्राफी कर चुके हैं।
1995 में बारादरी थाना क्षेत्र के कटरा चांद खां में आनंद फोटो स्टूडियो के नाम से मशहूर फोटोग्राफर जगदीश आनंद के पास फोटोग्राफी की डिग्री है। सबसे पहले उन्होंने पेनटैक्स कैमरे से फोटो खींचना शुरू किया था। इस कैमरे में 120 नंबर की रील पड़ती थी, जिससे निगेटिव निकलते थे।
उन्होंने चुनाव के दौरान उत्तर प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री मुलायम सिंह यादव जब बरेली के दौरे पर आये थे, उनको फोटो खींचने के लिए बुलाया गया था। इसके अलावा भी कई राजनीतिक पार्टियों के कार्यक्रमों में इनकी भूमिका अहम रही। फोटोग्राफी के दौर में एमईएस समेत तीन सरकारी नौकरी के अवसर भी मिले, लेकिन डिग्री और फोटोग्राफी की शौक के चलते जगदीश आनंद ने नौकरी नहीं की।