सरकार के सधे कदमों से मुरादाबाद की झोली में आया राजकीय विश्वविद्यालय, जानें इतिहास
सुखद : 20 सालों से इस मुद्दे को दी जा रही थी खूब हवा, सड़क से सदन तक जन प्रतिनिधियों की कोशिश रंग लाई

आशुतोष मिश्र, अमृत विचार। सचमुच यह अनगिनत उम्मीदों को पंख लगना है। खेती-किसानी वाले आंगन में उच्चशिक्षा के उपहार की दस्तक है। आर्थिक रूप से कमजोर हसरतों का जीवन मिलना है। उच्च शिक्षा हासिल करने के दौरान समय और धन के अपव्यय से बचने की जुगत लगाने वालों के सपनों का फलीभूत होना है। यह दीगर बात है कि इस ऐलान के जमीन पर उतरने में समय का रोड़ा है। यानी की भवन से लेकर आधारधूत ढ़ाचों को खड़ा करने वाले हाथों की मेहनत के हवाले बड़ी जिम्मेदारी है।
बुधवार को राज्य सरकार के बजट में यहां सरकारी विश्वविद्यालय बनाए जाने का सैद्धांतिक ऐलान हो गया। सरकार ने इस मद में 50 करोड़ रुपये की टोकन मनी जारी की है। क्योंकि कई सालों से यह विषय चुनाव के मंचों पर उठता था। शायद उसी दबाव की वजह से दो साल पूर्व यानी पिछले विधानसभा चुनाव के पहले भी यहां जिला प्रशासन की ओर से विश्वविद्यालय निर्माण के लिए भूमि और जरूरतों का विवरण शासन को भेजा गया। अगर इस मुद्दे की विस्तार से चर्चा की जाए तो चार दशक से इस मुद्दे पर सक्रिय लड़ाई लड़ने वाले इस समय सरकार का हिस्सा हैं। सच यह भी है कि साल 2017 में मुख्यमंत्री बनने के बाद योगी आदित्यनाथ के हर दौरे पर यह विषय उछलता रहा है। अखिलेश यादव के कार्यकाल में इस सवाल पर अपना पक्ष रखने वाले राजनीतिक चेहरे इस घोषणा को अपने प्रयास में भी गिन रहे हैं।
सपा के ठाकुरद्वारा क्षेत्र के विधायक नवाब जान इस धनराशि को कमतर आंकते हैं। कहते हैं कि मेडिकल कालेज की जरूरत को सरकार ने ध्यान नहीं दिया है। जिले में मजदूर, दस्तकार और कमजोर वर्ग के किसानों के लिए मेडिकल कालेज की सर्वाधिक जरूरत है। जबकि विधिवेत्ता डा.हरबंश दीक्षित कहते हैं कि यह ऐलान मुरादाबाद के बढ़ते कदम का बड़ा आधार होगा। अभी क्षेत्र के विद्यार्थी को कम से कम 350 किमी की यात्रा के बाद अपनी समस्या लेकर बरेली स्थित विश्वविद्यालय पहुंचना पड़ता है। तर्क देते हैं कि 20 साल पहले क्षेत्र में 32 महाविद्यालय थे। अब संख्या 560 के पार है। यह क्षेत्र की बड़ी जीत है। शिक्षा प्रबंधन से जुड़ी वरिष्ठ भाजपा नेत्री मदालसा शर्मा कहतीं है कि मुरादाबाद को इसकी अनिवार्य जरूरत थी। यह सुविधा यहां की मेधा को नया और आसान फलक देगी।
मुरादाबाद का इतिहास
मुरादाबाद जिले को लेकर यह विवरण प्राचीन दस्तावेजों में दर्ज है। यह जिला 1625 में स्थापित किया गया था। रुस्तम खान द्वारा और इसका नाम मुगल सम्राट शाहजहां के पुत्र राजकुमार मुरादबक्श के नाम पर रखा गया है। मुरादाबाद देश की राजधानी दिल्ली से 167 किमी (104 मील) की दूरी पर और राज्य की राजधानी लखनऊ के 344 किलोमीटर उत्तर-पश्चिम में रामगंगा नदी के तट पर स्थित है। पीतल हस्तशिल्प उद्योग के लिए पीतल नगरी (ब्रास सिटी) के रूप में जाना जाता है। यह उत्तरी रेलवे का मंडल मुख्यालय भी है। मुगल शासक शाहजहां के पुत्र राजकुमार मुराद बख्श के नाम के बाद इसका नाम बदलकर मुरादाबाद कर दिया गया। मुगल सम्राट के लिए रुस्तम खान ने शहर में जामा मस्जिद नाम की एक मस्जिद का निर्माण किया था।
जनसांख्यिकी
2011 की जनगणना के अनुसार जिले की आबादी 887,871 है, जो लगभग सिंगापुर या अमेरिका के अलबामा राज्य के बराबर है। इससे भारत में यह 26वें स्थान पर है (कुल 640 में से) जिले में जनसंख्या घनत्व 1,284 प्रति व्यक्ति प्रति वर्ग किलोमीटर (3,330/वर्ग मील) है। 2001-2011 दशक में इसकी जनसंख्या वृद्धि दर 25.25 प्रतिशत थी। 2011 में संभल नाम का एक नया जिला मुरादाबाद जिले के दो उप जिले के साथ बन गया। जिले की बाकी जनसंख्या 3126507 है। मुरादाबाद में प्रत्येक 1000 पुरुषों के लिए 903 महिलाओं का लिंग अनुपात है। साक्षरता दर 58.67 प्रतिशत है।
शिक्षा
मुरादाबाद में स्कूल, चाहे अंग्रेजी या हिंदी का माध्यम शिक्षा का माध्यम है, चार निकायों, केंद्रीय माध्यमिक शिक्षा बोर्ड (सीबीएसई), भारतीय स्कूल प्रमाणपत्र परीक्षा परिषद (सीआईएससीई), कैम्ब्रिज अंतर्राष्ट्रीय परीक्षा विश्वविद्यालय, उत्तर प्रदेश माध्यमिक शिक्षा परिषद (यूपी बोर्ड)।