World Radio Day : 12 साल 11 माह 2 दिन की हुई कुमाऊं की कोयल...अभी तो उड़ान बाकी है...

World Radio Day : 12 साल 11 माह 2 दिन की हुई कुमाऊं की कोयल...अभी तो उड़ान बाकी है...

भूपेश कन्नौजिया, अमृत विचार, हल्द्वानी। कुमाऊं का पहला सामुदायिक रेडियो 'कुमाऊं वाणी' अपने 12 साल 11 माह और 2 दिन का सुनहरा कार्यकाल पूर्ण कर चुका है।  अपनी पहचान के जरिये आज दूरस्थ ग्रामीण अंचल तक अपनी पैठ बना चूका कुमाऊं वाणी को, कुमाऊं की कोयल का दर्जा प्राप्त है। यह दर्जा और किसी ने नहीं बल्कि स्वयं श्रोताओं द्वारा रेडियो को दिया गया है।
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 आपको बतातें चलें की वर्तमान में कुमाऊंनी बोलने वालों का ग्राफ तेजी से घटा है,भारत में कई क्षेत्रीय बोलियां लुप्त होने के कगार में हैं ऐसे मे उन बोलियों को बचाने के लिए व उन्हें भाषा का दर्जा दिए जाने के लिए आंदोलन होते रहते हैं पर नैनीताल जिले के  मुक्तेश्वर के समीप सूपी गांव स्थित इस सामुदायिक रेडियो ने अपनी संस्कृति और सभ्यता को जीवित रखने के लिए भरसक प्रयास किया है।
 
इस रेडियो स्टेशन ने कुमाऊंनी बोली को एक नयी दिशा दी है, रेडियो के सारे कार्यक्रम कुमाऊंनी में तैयार किये जाते हैं साथ ही रेडियो जॉकी भी कुमाऊंनी बोली का ही प्रयोग करते हैं , टेरी संस्था (ऊर्जा संसाधन संस्थान) द्वारा स्थापित सामुदायिक रेडियो कुमाऊं वाणी का उदघाटन 11 मार्च 2010 को तत्कालीन राज्यपाल मार्गरेट अल्वा ने किया, रेडियो का उद्देश्य सूचना और जानकारी की मदद से कुमाऊं के पहाड़ी समुदाय को विकास के पथ पर अग्रसर करना है। 
 
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 स्थानीय युवा इस रेडियो के पालनहार, कहने का मतलब रेडियो की सारी जिम्मेदारी स्थानीय युवाओं के कंधे पर है जो रेडियो से जुड़े हैं ,गांव-गांव जा कर लोगों से मिलकर कार्यक्रम तैयार किये जाते हैं ,कार्यक्रमों की फेहरिस्त भी काफी लंबी चौड़ी है जिसमे बच्चों से लेकर बड़े बुजुर्गों महिलाओं को मद्देनजर रखते हुए कार्यक्रम बनाये जाते हैं।
 
 कुमाऊं वाणी रेडियो की पहुंच तकरीबन 500 गांवों में है जिसमें पिथौरागढ़ ,चमोली,बागेश्वर, रानीखेत,अल्मोड़ा के सीमांत गांव भी दर्ज हैं , "रेडियो प्रबंधक मोहन कार्की बताते हैं की जल,जंगल,जमीन को लेकर जागरूकता , कुमाऊं की रवायत और यहां की संस्कृति को आगे बढ़ाना, सरकारी संस्थाओं तक लोगों की समस्याओं को उठाने के साथ उनका निराकरण करवाना भी इस रेडियो का उद्देश्य है"।
 
 शिक्षा ,स्वास्थ्य, विज्ञान विषयों सहित महिला स्वास्थ्य संबंधी कार्यक्रमों को प्रसारित कर आज यह रेडियो सोशल मीडिया के दौर में भी मजबूती से टिका हुआ है या यूं कहें कि लोगों का प्यार रेडियो को मिल रहा है।
 
आपको बता दें की कुमाऊं वाणी  रेडियो को सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय द्वारा वर्ष 2014 मे छोटे एवं हासिये पर रहने वाले किसानों के लिए चलने वालर्यक्रम "बाजार लाये बौछार" को सामुदायिक सहभागिता के लिए नेशनल अवार्ड से नवाजा गया ,  वर्ष 2013 मे जन सहभागिता को आधार बनाकर कुमाऊं की बेहतरी के विकास कार्यक्रमों मे मजबूती प्रदान हेतु डेवलपमेंट एम्पावरमेंट फाउंडेशन की ओर से मंथन अवार्ड प्राप्त हो चूका है।
 
 वहीं रेडियो के सीरीज कार्यक्रम बाजार लाये बौछार, सौंधी खुशबू, हम और हमारी पंचायत, अजब खेल गजब गणित जैसे कार्यक्रम मील का पत्थर साबित हुए हैं, कुमाऊं वाणी को 90.4मेगाहर्ट्ज़ पर सुना जा सकता है।
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रेडियो कोऑर्डिनेटर सुमित बंसल का कहना है कि हमारा प्रयास सार्थक हो रहा है, रेडियो आज भी अपनी जगह बनाये हुए है, कई चुनौतियों के बावजूद हम लोगों के दिलों में जगह बनाये हुए हैं।  हमारा मकसद है  जनता के लिए..जनता द्वारा प्रोग्राम प्रसारित कर उनकी हर समस्या , आवाज को उठाना और साथ में निराकरण भी करना..जिसमें हम अव्वल साबित हुए हैं। हमारे पास भले ही सीमित संसाधन हैं पर हम लगातार धरातल पर उतरकर जनता के बीच मौजूदगी बनाये हुए हैं। 
 
इसके अलावा रेडियो टीम में शामिल जितेंद्र रैक्वाल, नारायण मेहता, बहादुर गिनवाल, कविता बिष्ट, माया बिष्ट, गोपाल गुरुरानी, हरीश बिष्ट, तारा सिंह लोधियाल सहित अन्य सदस्य इस रेडियो के अभिन्न अंग हैं जो इसे बदलते ट्रेंड के साथ लगातार अपडेट करते आ रहे हैं..खैर इन पंक्तियों में गौर फरमाएं  ..किसी ने क्या खूब फरमाया है - 
"विश्व रेडियो दिवस के इस अवसर पर हम सभी को यह याद रखना चाहिए कि आविष्कार कभी गायब नहीं होते हैं। वे सिर्फ अपने प्रारूप बदलते रहते हैं और विकसित होते रहते हैं। दुनिया को करीब लाएं और रेडियो का सम्मान करें।"