'लंपी-प्रोवैक' टीके के व्यावसायिक उत्पादन के लिए आईवीबीपी के साथ समझौता
नई दिल्ली। सरकार ने मवेशियों में ढेलेदार त्वचा रोग (लंपी स्किन) के नियंत्रण के लिए स्वदेशी रूप से विकसित टीके 'लंपी-प्रोवैक' के व्यावसायिक उत्पादन के लिए पुणे स्थित पशु चिकित्सा जैविक उत्पाद संस्थान (आईवीबीपी) के साथ एक समझौता किया है।
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इस टीके को उत्तर प्रदेश स्थित आईसीएआर-भारतीय पशु चिकित्सा अनुसंधान संस्थान के सहयोग से हरियाणा स्थित नेशनल सेंटर फॉर वेटरनरी टाइप कल्चर और आईसीएआर-नेशनल रिसर्च सेंटर ऑन इक्वाइंस ने विकसित किया है।
एक सरकारी बयान के मुताबिक, केंद्रीय कृषि मंत्रालय के तत्वावधान में कृषि अनुसंधान और शिक्षा विभाग की वाणिज्यिक शाखा, एग्रीनोवेट इंडिया लिमिटेड ने दस वर्षों के लिए आईवीपीबी को 'लंपी-प्रोवैक' टीके के व्यावसायिक उत्पादन के अधिकार प्रदान किए हैं। इसके लिए एक समझौता ज्ञापन (एमओयू) पर हस्ताक्षर किए गए।
इस अवसर पर केंद्रीय मत्स्य, पशुपालन एवं डेयरी मंत्री पुरुषोत्तम रुपाला ने आईवीबीपी से इस टीके का निर्माण बड़े पैमाने पर अविलंब शुरू करने को कहा। उन्होंने कहा कि यह समझौता ज्ञापन भारत के पशुधन क्षेत्र की भविष्य की जरूरतों के लिए गोट पॉक्स टीके का बड़े पैमाने पर उत्पादन भी सुनिश्चित करेगा।
फिलहाल पशुओं में लंपी स्किन बीमारी के नियंत्रण के लिए गोट पॉक्स टीके का ही इस्तेमाल किया जाता है। पशुओं में गांठदार त्वचा का रोग भारत में वर्ष 2019 में पहली बार सामने आया था। उसके बाद यह धीरे-धीरे देश के कई राज्यों में फैल गया है। इस कार्यक्रम में महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे, उप-मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस और राज्य के पशुपालन मंत्री राधाकृष्ण विखे पाटिल भी उपस्थित थे।
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