गुजरात: कच्छ में मादक पदार्थों की तस्करी, जल संकट और सांप्रदायिक विभाजन चुनावी मुद्दा 

गुजरात: कच्छ में मादक पदार्थों की तस्करी, जल संकट और सांप्रदायिक विभाजन चुनावी मुद्दा 

कच्छ (गुजरात)। गुजरात विधानसभा के लिए अगले महीने होने वाले चुनाव की तैयारियों के बीच पाकिस्तान की सीमा से सटे कच्छ जिले में हजारों करोड़ रुपये की नशीली दवाओं की तस्करी, पानी का संकट और सांप्रदायिक झड़पों की छिटपुट घटनाएं प्रमुख चुनावी मुद्दे हैं।

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पाकिस्तान के साथ जमीनी और समुद्री सीमा साझा करने वाले देश के देश के सबसे बड़े जिले कच्छ के मुंद्रा बंदरगाह से पिछले साल करीब 21,000 करोड़ रुपये मूल्य की करीब 3,000 किलोग्राम हेरोइन जब्त की गई थी।

भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) का कहना है कि उसके सत्ता में होने से राष्ट्रीय सुरक्षा सुरक्षित हाथों में है, वहीं विपक्षी कांग्रेस ने मादक पदार्थों की तस्करी को रोकने में राज्य और केंद्र की विफलता को लेकर सवाल उठाया है। हाल के दिनों में कच्छ में मादक द्रव्यों की जब्ती के कई अन्य मामले भी सामने आए हैं।

राज्य की कांग्रेस इकाई के नेता एवं प्रवक्ता ललित वसोया ने कहा, ‘‘सवाल यह नहीं है कि कितनी मात्रा जब्त की गई, बल्कि इस (पिछले साल जब्त की गई हेरोइन) खेप का कैसे पता चला और उन अन्य खेपों का क्या हुआ, जिनका पता नहीं चल पाया? राज्य की जनता जानना चाहती है कि ऐसी घटनाओं को रोकने के लिए क्या कदम उठाए गए हैं?’’

कांग्रेस अपने प्रचार अभियान के दौरान विशेष रूप से सीमावर्ती क्षेत्रों में नशीले पदार्थों की तस्करी और कच्छ क्षेत्र को मादक द्रव्य तस्करों द्वारा सुरक्षित मार्ग के रूप में इस्तेमाल करने के मुद्दे पर जोर देती रही है। भाजपा के कच्छ जिला मीडिया प्रभारी सात्विक गढ़वी ने इन आरोपों को निराधार बताते हुए कहा कि मादक द्रव्यों की जब्ती इस बात का उदाहरण है कि कांग्रेस के विपरीत उनकी पार्टी राष्ट्रीय सुरक्षा के मुद्दे पर कभी समझौता नहीं करती।

गुजरात की 182 सदस्यीय विधानसभा के चुनाव के लिए मतदान दो चरणों में एक और पांच दिसंबर को होंगे। कच्छ में पहले चरण में एक दिसंबर को मतदान होगा। कच्छ में छह विधानसभा क्षेत्र हैं, जिनमें पाकिस्तान की सीमा से लगे अबडासा, भुज और रापर के अलावा मांडवी, अंजार और गांधीधाम शामिल हैं।

भाजपा ने 2017 में चार सीट जीती थीं, जबकि कांग्रेस ने रापर और अबडासा में जीत हासिल की थी, लेकिन अबडासा से विधायक ने 2020 में पार्टी छोड़ दी और बाद में भाजपा के टिकट से चुनाव जीता था। वर्ष 2011 की जनगणना के आंकड़ों के अनुसार, कच्छ में 76.89 प्रतिशत हिंदू और 21.14 प्रतिशत मुस्लिम हैं। अबडासा और भुज विधानसभा क्षेत्रों में अल्पसंख्यक की अच्छी-खासी आबादी है।

हालांकि गुजरात 2002 गोधरा दंगों के कारण खबरों में आया था, 2001 के भूकंप के प्रभाव से जूझ रहा कच्छ कुछ साल पहले तक सांप्रदायिक राजनीति से अछूता रहा, लेकिन इस बार ऐसा नहीं है। कच्छ के विभिन्न हिस्सों में पिछले दो वर्षों में हुई हिंसा की छिटपुट घटनाओं सहित कई मुद्दों पर सांप्रदायिक विभाजन हुआ है। कच्छ के माधापुर गांव में इस साल अगस्त में एक व्यक्ति की हत्या के कारण सांप्रदायिक झड़प हुई थी।

इससे पहले पिछले साल जनवरी में किदाना गांव में राम मंदिर निर्माण के लिए चंदा इकट्ठा करने संबंधी एक रैली के दौरान दो समुदायों के सदस्यों के बीच झड़प हो गई थी। भुज कस्बे में रहने वाले फल विक्रेता परवेज शेख (68) ने दावा किया, ‘‘राज्य के अन्य हिस्सों में भले ही कुछ भी हो रहा हो, कच्छ हमेशा शांतिपूर्ण रहा है, लेकिन अब स्थिति ऐसी नहीं है।

समुदायों के बीच अविश्वास का माहौल है और राजनीतिक दल इसका लाभ उठाने की कोशिश कर रहे हैं।’’ आम आदमी पार्टी (आप) कच्छ की सभी छह सीट पर चुनाव लड़ रही है, जबकि असदुद्दीन ओवैसी के नेतृत्व वाली ऑल इंडिया मजलिस-ए-इत्तेहादुल मुस्लिमीन (एआईएमआईएम) दो सीट पर चुनाव लड़ रही है।

कुछ स्थानीय भाजपा नेताओं ने नाम न छापने की शर्त पर दावा किया कि ‘आप’ और एआईएमआईएम के चुनाव लड़ने से उनके दल को फायदा होगा। कांग्रेस की कच्छ जिला इकाई के अध्यक्ष यजुवेंद्र जडेजा ने कहा कि भाजपा जानती है कि 27 साल की सत्ता विरोधी लहर इस बार भारी पड़ रही है और वह चुनाव जीतने के लिए हर संभव कोशिश कर रहे हैं।

उन्होंने दावा किया, ‘‘वे एआईएमआईएम और आप का इस्तेमाल करके विपक्ष को बांटने के लिए सब कुछ कर रहे हैं, लेकिन इसका कोई लाभ नहीं होगा। ये दोनों दल भाजपा की ‘बी-टीम’ हैं।’’ बहरहाल, आप और एआईएमआईएम जिला नेतृत्व ने इस तरह के आरोपों को ‘‘निराधार’’ करार दिया है।

इस क्षेत्र में एक अन्य प्रमुख मुद्दा जल संकट है। कच्छ नहर, नर्मदा मुख्य नहर (एनएमसी) की एक शाखा है, जो केवड़िया से निकलती है और मांडवी क्षेत्र को पानी उपलब्ध कराती है। अबडासा और भुज जैसे क्षेत्रों में इसे एनएमसी से जोड़ने के लिए पाइपलाइन का काम अभी शुरू नहीं हुआ है, जिससे पूरे क्षेत्र में पानी की कमी है।

भाजपा की स्थानीय इकाई ने माना कि ‘‘जल संकट’’ एक प्रमुख मुद्दा है, लेकिन उसने सरदार सरोवर परियोजना में लगातार देरी के लिए ‘नर्मदा बचाओ आंदोलन’ को जिम्मेदार ठहराया। दूसरी ओर, कांग्रेस का दावा है कि क्षेत्र में जल संकट भाजपा की प्रशासनिक और राजनीतिक विफलता का सबसे बड़ा उदाहरण है।

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