अयोध्या: राम मंदिर निर्माण में शैली ही नहीं तकनीक भी पुरातन

अयोध्या: राम मंदिर निर्माण में शैली ही नहीं तकनीक भी पुरातन

प्रमोद पांडेय अयोध्या, अमृत विचार। सुप्रीम फैसले के बाद रामलला की जन्मभूमि पर भव्य राम मंदिर आकार ले रहा है। पुरातन भारतीय वास्तु के नागर शैली में राजस्थान के भरतपुर के लाल बलुआ पत्थरों से 21 वीं सदी में बन रहे इस मंदिर में वास्तु की शैली ही पुरातन नहीं है बल्कि निर्माण के लिए …

प्रमोद पांडेय
अयोध्या, अमृत विचार। सुप्रीम फैसले के बाद रामलला की जन्मभूमि पर भव्य राम मंदिर आकार ले रहा है। पुरातन भारतीय वास्तु के नागर शैली में राजस्थान के भरतपुर के लाल बलुआ पत्थरों से 21 वीं सदी में बन रहे इस मंदिर में वास्तु की शैली ही पुरातन नहीं है बल्कि निर्माण के लिए तकनीक भी पुरातन इस्तेमाल हो रही है। वर्तमान में प्रचलित निर्माण सामग्री कंकरीट, सीमेंट, मोरंग तथा इस्पात के बजाय प्लिंथ और मंदिर का निर्माण ग्रेनाइट, सफेद संगमरमर तथा नक्काशीदार लाल बलुआ पत्थरों से किया जा रहा है। प्लिंथ और मंदिर निर्माण में जोड़ के लिए मसाले के बजाय पुरातन जोड़ पद्धति के मुताबिक ग्रेनाइट और तांबें की कुंजी का इस्तेमाल हो रहा है।

राम मंदिर के निर्माण को एक हजार साल से ज्यादा समय तक स्थायित्व प्रदान करने के लिए देशभर के नामचीन विशेषज्ञों ने कई महीने चिंतन-मंथन ही नहीं किया बल्कि तमाम तरह के प्रयोग भी किए गए। इस कवायद में देश के नामचीन संस्थानों के साथ सेंट्रल बिल्डिंग रिसर्च इंस्टीट्यूट रुड़की और भूकंपरोधी बनाने के लिए मौसम से जुड़े संस्थानों व विशेषज्ञों की मदद ली गई। 17 फीट मोटी प्लिंथ के किसी भी हिस्से में हवा और नमी न रहे इसके लिए भी पुख्ता इंतजाम किए गए।

मजबूती के मद्देनजर प्लिंथ का निर्माण सबसे कठोर माने जाने वाले आंध्र और कर्नाटक के ग्रेनाइट पत्थर से कराया गया। प्लिंथ निर्माण में 5 गुणा 2.5 गुणा 3 फीट आकार के कुल 17 हजार ग्रेनाइट के ब्लाक को आपस में ग्रेनाइट से ही बनी कुंजी से जोड़ा जा रहा है। इसके लिए कारीगरों से विशेष डिजाइन की कुंजी का निर्माण कराया गया है। वहीं 360 गुणे 250 गुणे 161 फीट आकार के प्रस्तावित राममंदिर को आकार देने के लिए कुल 6 हजार क्यूबिक फीट लाल बलुआ पत्थर प्रयुक्त होने का Iआंकलन किया गया है।

मंदिर आंदोलन के साथ श्रीराम जन्मभूमि निर्माण समिति की ओर से रामघाट स्थित कार्यशाला में प्रथम तल पर लगने वाले पत्थरों की तराशी का काम लगभग पूरा कराया जा चुका है। प्लिंथ का निर्माण पूरा होने के बाद वर्तमान में इन्हीं तराशे गए लाल बलुआ पत्थरों से गर्भगृह और प्रदक्षिणा की दीवार का निर्माण शुरू कराया गया है। इन तराशे गए पत्थरों को आपस में जोड़ने तथा मंदिर का आकार देने के लिए विशेष डिजाइन की तांबें की कुंजी इस्तेमाल की जा रही है। जबकि निर्माण को हवा और नमी से मुक्त रखने के लिए तांबें की पत्ती तथा पट्टी का इस्तेमाल हो रहा है।

ट्रस्ट सदस्य डा. अनिल मिश्र का कहना है कि पुरातन नागर शैली में बन रहे इस भव्य राममंदिर के प्लिंथ और मंदिर के पत्थरों को जोड़ने के लिए ग्रेनाइट तथा तांबें की कुंजी का इस्तेमाल किया जा रहा है। तराशे गए नक्काशीदार पत्थरों के बीच हवा और नमी न रहे इसके लिए बीच-बीच में तांबें की पत्ती और पट्टी लगाई जा रही है।

ट्रैकिंग व सेटिंग में ली जा रही कंप्यूटर की मदद
सुप्रीम फैसले के आधार पर गठित श्रीराम जन्मभूमि तीर्थ क्षेत्र ट्रस्ट की ओर से राम जन्मभूमि पर पुरातन वास्तु और शैली में भव्य राम मंदिर का निर्माण कराया जा रहा है। नींव और फाउंडेशन के निर्माण से लेकर प्रसिद्ध वास्तुकार सोमपुरा के डिजाइन पर राम मंदिर को आकार देने के लिए तराशे गए पत्थरों को जोड़ने का जिम्मा लार्सन एंड टूब्रो को तथा निर्माण में परामर्श का जिम्मा टाटा कंसल्टेंसी को सौंपा गया है। पुरातन शैली और तकनीकि में बन रहे इस मंदिर के निर्माण में कार्यदायी और परामर्शदात्री संस्था आधुनिक तकनीकि और कंप्यूटर का भी बखूबी इस्तेमाल कर रही है। अपेक्षित लक्ष्य को हासिल करने के लिए विभिन्न शोध तथा विशेषज्ञों का सहारा लिया जा रहा है।

पीएम की इच्छा के अनुरूप राम नवमी पर सूर्य की रश्मियां विराजमान रामलला के मस्तक तक पहुंचने को साकार करने के लिए इसरो के वैज्ञानिकों की भी मदद ली जा रही है। वहीं पूरे कार्य को सुव्यवस्थित रखने के लिए ड्राइंग से लेकर सबकुछ कंप्यूटराइज किया गया है। ट्रैकिंग के लिए खदान से निकलते ही हर एक पत्थर पर बारकोडिंग हो रही है और उसका पूरा ब्योरा कंप्यूटर पर दर्ज किया जा रहा है। सेटिंग को लेकर पहले से खाका तैयार कर लिया जाता है कि कौन सा पत्थर कब और कहां लगेगा। यह सब कंप्यूटर की मेमोरी में दर्ज होता रहता है।

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