अन्नाद्रमुक में उत्तराधिकार की लड़ाई जारी, दोनों खेमे अपने रुख पर अड़े
चेन्नई। अन्नाद्रमुक के संस्थापक और ‘पुरची तलईवार’ के नाम से मशहूर एम जी रामचंद्रन के बाद पार्टी में उत्तराधिकार हस्तांतरण की प्रक्रिया सहज नहीं रही। रामचंद्रन के बाद पूर्व मुख्यमंत्री दिवंगत जे जयललिता ने पार्टी का बड़ा आधार बनाया और इसके डेढ़ करोड़ से अधिक कार्यकर्ता हैं। इस समय पार्टी दो खेमों में बंटी हुई …
चेन्नई। अन्नाद्रमुक के संस्थापक और ‘पुरची तलईवार’ के नाम से मशहूर एम जी रामचंद्रन के बाद पार्टी में उत्तराधिकार हस्तांतरण की प्रक्रिया सहज नहीं रही। रामचंद्रन के बाद पूर्व मुख्यमंत्री दिवंगत जे जयललिता ने पार्टी का बड़ा आधार बनाया और इसके डेढ़ करोड़ से अधिक कार्यकर्ता हैं। इस समय पार्टी दो खेमों में बंटी हुई है। जहां पूर्व मुख्यमंत्री ओ पनीरसेल्वम संयुक्त अन्नाद्रमुक के दोहरे नेतृत्व पर जो दे रहे हैं, वहीं पूर्व मुख्यमंत्री के पलानीस्वामी इस प्रस्ताव को नहीं मानने पर अड़े हुए हैं।
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दोनों अगले सप्ताह अन्नाद्रमुक के दो धड़ों के प्रमुखों के रूप में संक्षिप्त विधानसभा सत्र में भाग लेंगे। दोनों ने ही अपने समूहों को मान्यता देने के लिए विधानसभा अध्यक्ष पर भरोसा जताया है। विधानसभा में बैठने की मौजूदा व्यवस्था के तहत पलानीस्वामी और पनीरसेल्वम दोनों पहली कतार में बैठते हैं और उनके सामने वाली सीटों पर मुख्यमंत्री एम के स्टालिन तथा सत्तारूढ़ पार्टी के नेता बैठते हैं।
अन्नाद्रमुक के विभाजित खेमे 17 अक्टूबर को पार्टी का 51वां स्थापना दिवस मनाएंगे। इसी दिन 1972 में पूर्व मुख्यमंत्री एम जी रामचंद्रन ने पार्टी स्थापित की थी। राज्य के पूर्व मंत्री और पलानीस्वामी के समर्थक के पी मुनुसामी ने एकल नेतृत्व के मुद्दे पर अपने नेता का समर्थन नहीं करने पर पनीरसेल्वम को आड़े हाथ लिया है। मुनुसामी ने दावा किया कि एजीआर के निधन के बाद पार्टी विभाजित हो गयी थी और बाद में एमजीआर की पत्नी जानकी रामचंद्रन ने अपने पति द्वारा स्थापित पार्टी की कमान जयललिता के हाथ में सौंपी।
मुनुस्वामी ने कहा, ‘‘पनीरसेल्वम कुछ परिस्थितियों की वजह से शीर्ष पद पर पहुंचे थे। उन्हें मान लेना चाहिए कि उन्हें अन्नाद्रमुक की वजह से पहचान मिली और उनका कद बढ़ा तथा उन्हें पलानीस्वामी का नेतृत्व स्वीकार कर लेना चाहिए।’’ वहीं पनीरसेल्वम समर्थक जेसीडी प्रभारक ने प्रतिद्वंद्वी गुट में कथित घोटाले का विषय उठाया था और कहा था कि अगर उन्हें अपने नेता से हरी झंडी मिल जाए तो वह सच सार्वजनिक करने को तैयार हैं।
पूर्व सांसद और अन्नाद्रमुक राज्य विधिक प्रकोष्ठ के संयुक्त सचिव आर एम बाबू मुरुगवेल ने इस धारणा को खारिज कर दिया कि पार्टी में खेमेबाजी से भाजपा को तमिलनाडु में सत्तारूढ़ द्रमुक से मुकाबले के लिए सबसे बड़े विपक्षी दल के रूप में उभरने का मौका मिल रहा है। हालांकि मुरुगवेल ने दावा किया कि अगले विधानसभा चुनाव में पलानीस्वामी के नेतृत्व में पार्टी को निश्चित रूप से जीत मिलेगी और वह सरकार बनाएगी।
भाजपा के प्रदेश उपाध्यक्ष कारू नागराजन ने दावा किया कि पार्टी जनता के मुद्दे उठा रही है और मुख्य विपक्षी अन्नाद्रमुक से ज्यादा ताकत से आंदोलन कर रही है। उन्होंने कहा, ‘‘ मैं यह नहीं कह रहा कि पलानीस्वामी या उनकी अन्नाद्रमुक विपक्षी पार्टी के रूप में काम नहीं कर रही है। अन्नाद्रमुक की तुलना में भाजपा विपक्षी दल के रूप में ज्यादा सक्रिय है।’
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