सामूहिक प्रतिबद्धता

सामूहिक प्रतिबद्धता

दुनियाभर में एक साल में पैदा होने वाले कुल 2.5 करोड़ बच्चों का लगभग पांचवां हिस्सा भारत में जन्म लेता है। इन शिशुओं में से हर मिनट एक शिशु की मृत्यु हो जाती है। हाल की रिपोर्ट बताती हैं कि भारत ने नवजात शिशुओं की मृत्यु दर कम करने में प्रगति की है। शिशु मृत्यु …

दुनियाभर में एक साल में पैदा होने वाले कुल 2.5 करोड़ बच्चों का लगभग पांचवां हिस्सा भारत में जन्म लेता है। इन शिशुओं में से हर मिनट एक शिशु की मृत्यु हो जाती है। हाल की रिपोर्ट बताती हैं कि भारत ने नवजात शिशुओं की मृत्यु दर कम करने में प्रगति की है। शिशु मृत्यु दर का मतलब प्रति एक हजार जन्मों पर नवजात मृतकों की संख्या से है।

नवजात शिशुओं की मृत्यु में भारत की हिस्सेदारी, जो 1990 में विश्वभर में नवजात शिशुओं की मृत्यु का एक तिहाई थी, आज कुल एक चौथाई से भी कम है। 1990 की तुलना में 2016 में भारत में हर माह, नवजात शिशुओं की मृत्यु में लगभग 10 लाख की कमी और मातृ मृत्यु में दस हजार की कमी आई है।

साथ ही बालिका शिशु मृत्यु दर में गिरावट दर्ज की गई है और यह बालक शिशु मृत्यु दर के समान स्तर पर आ गई है। यह नारी शक्ति को मजबूत करने की दिशा में महत्वपूर्ण संकेत है। बुधवार को प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने कहा कि यह संकेत भारत में नारी शक्ति को मजबूत करने के लिए 130 करोड़ भारतीयों की सामूहिक प्रतिबद्धता को दर्शाता है। 13 राज्यों में लड़कियों की शिशु मृत्यु दर (आईएमआर) लड़कों से कम या बराबर हो गई है।

शहरी भारत में, लड़के और लड़कियों की आईएमआर में अंतर 2011 में काफी ज्यादा था। 2020 में लड़कियों की आईएमआर लड़कों से नीचे गिर गई। उस समय की यूनिसेफ की एक रिपोर्ट के मुताबिक भारत दुनिया का एकमात्र ऐसा बड़ा देश है जहां लड़कों की तुलना में लड़कियों की मृत्यु दर 11 प्रतिशत अधिक है, जबकि वैश्विक स्तर पर लड़कियों की मृत्यु दर लड़कों की मृत्यु दर की तुलना में 10 प्रतिशत कम है।

नमूना पंजीकरण प्रणाली सांख्यिकी रिपोर्ट 2020 के अनुसार छत्तीसगढ़ में यह अंतर सबसे अधिक था। वहां बालक शिशु की मृत्यु दर 35 थी और इसकी तुलना में बालिका शिशु की मृत्यु दर 41 थी। गौरतलब है कि 16 राज्यों में बालकों की तुलना में बालिकाओं की मृत्यु दर अब भी ऊंची है लेकिन 2011 के बाद से यह अंतर कम हो गया है।

यद्यपि भारत ने बाल मृत्यु दर में कमी लाने में महत्वपूर्ण प्रगति की है और यह उपलब्धि विशेष नवजात शिशु देखभाल इकाइयों (एसएनसीयू) के तेजी से बढ़ते स्तर से हासिल हुई है। परंतु ग्रामीण भारत में लड़कियों की आईएमआर अभी भी ज्यादा है। अब सबसे अधिक वंचित समूहों तक पहुंच बनाने पर ध्यान दिया जाना चाहिए। पिछड़े राज्यों में बालिकाओं पर विशेष ध्यान देने की आवश्यकता है।