HC ने उद्धव नीत के पक्ष में सुनाया फैसला, शिवसेना खेमें में खुशी की लहर
मुंबई। बंबई उच्च न्यायालय ने शुक्रवार को जब यह निर्णय सुनाया कि उद्धव ठाकरे नीत शिवसेना मध्य मुंबई में स्थित शिवाजी पार्क मैदान में दशहरा रैली कर सकती है तो ठाकरे के समर्थक खुशी से झूम उठे। वहीं, असली शिवसेना मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे का खेमा है या ठाकरे के नेतृत्व वाली है, यह मामला उच्चतम …
मुंबई। बंबई उच्च न्यायालय ने शुक्रवार को जब यह निर्णय सुनाया कि उद्धव ठाकरे नीत शिवसेना मध्य मुंबई में स्थित शिवाजी पार्क मैदान में दशहरा रैली कर सकती है तो ठाकरे के समर्थक खुशी से झूम उठे। वहीं, असली शिवसेना मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे का खेमा है या ठाकरे के नेतृत्व वाली है, यह मामला उच्चतम न्यायालय में विचाराधीन है।
शिंदे द्वारा बगावत करने के बाद, ठाकरे नीत शिवसेना उच्च न्यायालय के आदेश को अपनी प्रतीकात्मक जीत मान रही है क्योंकि शिवाजी पार्क मैदान से पार्टी का इतिहास जुड़ा हुआ है। इसी मैदान पर शिवसेना के संस्थापक बाल ठाकरे ने पहली रैली की थी और उसके बाद दशहरे पर कई रैलियों को संबोधित किया। वर्ष 2012 में जब बाल ठाकरे का निधन हुआ। तब इसी मैदान में उनका अंतिम संस्कार किया गया था।
दादर के पास स्थित इस मैदान को इसलिए भी जाना जाता है कि सचिन तेंदुलकर ने क्रिकेट जगत में बुलंदियों को छूने से पहले यहां चौके-छक्के जड़े थे। परंतु शिंदे खेमा और ठाकरे नीत पार्टी के हिस्से द्वारा हाल में शिवाजी पार्क में दहशरा रैली के लिए अपना-अपना दावा जताने के बाद यह परोक्ष रूप से लड़ाई का मैदान बन गया।
कानून व्यवस्था का हवाला देते हुए बृहन्मुंबई महानगरपालिका (बीएमसी) ने दोनों खेमों को रैली की इजाजत देने से इनकार कर दिया था लेकिन शुक्रवार को उच्च न्यायालय ने उद्धव ठाकरे खेमे को रैली की अनुमति दे दी। इस मैदान और आवासीय क्षेत्र का अपना एक इतिहास है। लेखक शांता गोखले ने इस पर एक किताब लिखी थी जिसका शीर्षक था शिवाजी पार्क: दादर 28: हिस्ट्री, प्लेसेज, पीपुल। उन्होंने लिखा है कि समुद्र तट के किनारे स्थित इस पार्क को जनता के लिए 1925 में खोला गया था।
इस पार्क को पहले माहिम पार्क कहा जाता था और 1927 में छत्रपति शिवाजी महाराज की 300वीं जयंती के अवसर पर लोगों की मांग पर इसका नाम शिवाजी पार्क रख दिया गया था। इसके बाद से यह पार्क महाराष्ट्र के राजनीतिक इतिहास की कई महत्वपूर्ण घटनाओं का साक्षी रहा है जिसमें संयुक्त महाराष्ट्र आंदोलन भी शामिल है। इस आंदोलन के जरिये ही 1960 में महाराष्ट्र राज्य की स्थापना हुई थी। बाद में शिवाजी पार्क शिवसेना की राजनीति का केंद्र बन गया।
शिवसेना के नेता और सांसद गजानन कीर्तिकर ने कहा कि इस स्थान से शिवसेना प्रमुख बालासाहेब ठाकरे ने पार्टी का एजेंडा घोषित किया था जैसे कि मराठी मानुष, हिंदुत्व और विविध विषयों पर पार्टी का रुख। वह विरोधी दलों पर भी तीखे हमले करते थे। कीर्तिकर ने कहा कि शिवसेना कार्यकर्ता इस मैदान को ‘शिव तीर्थ’ कहते हैं। उन्होंने कहा कि पार्क के भीतर स्वतंत्रता संग्राम सेनानी विनायक दामोदर सावरकर का एक स्मारक भी है। सावरकर उसी क्षेत्र में एक बंगले में रहते थे। कीर्तिकर ने कहा कि संभव है कि बाल ठाकरे ने ही पार्क का नाम शिव तीर्थ रखा होगा। ठाकरे परिवार बांद्रा स्थित ‘मातोश्री बंगला से पहले उसी क्षेत्र में रहता था और पार्टी मुख्यालय ‘सेना भवन’ पार्क के पास ही है।
उद्धव के चचेरे भाई राज ठाकरे, जिन्होंने 2006 में महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना का गठन किया, उसी क्षेत्र में रहते हैं। शिवसेना के वरिष्ठ नेता और महाराष्ट्र के पूर्व मुख्यमंत्री मनोहर जोशी ने अपनी पुस्तक “शिवसेना- कल आज और कल में उल्लेख किया है कि शिवाजी पार्क में पार्टी की सबसे पहली रैली कैसे आयोजित हुई थी। बाल ठाकरे एक कार्टून पत्रिका का संपादन करते थे जिसका नाम था मार्मिक। इस पत्रिका ने 23 अक्टूबर 1966 को एक नोट प्रकाशित किया कि 30 अक्टूबर को शाम साढ़े पांच बजे शिवाजी पार्क में एक रैली आयोजित होगी। संयोग से उसी दिन दशहरा भी था।
ठाकरे पहले से ही अपनी कलम और कूची (ब्रश) से उन समस्याओं को रेखांकित करते रहे थे, जिन्हें वह मुंबई के मूल निवासियों पर किये गए अन्याय के तौर पर देखते थे। कुछ लोगों ने सुझाव दिया कि रैली किसी ऑडिटोरियम में आयोजित की जाए क्योंकि कितने लोग आएंगे, इसका अंदाजा नहीं था। मराठी पत्रकार प्रकाश अकोलकर ने शिवसेना के इतिहास पर लिखी पुस्तक में कहा है कि बाल ठाकरे को भी लोगों से मिलने वाली प्रतिक्रिया का अंदाजा नहीं था क्योंकि वह केवल एक कार्टूनिस्ट और पत्रिका के संपादक थे। उनके पिता केशव सीताराम ठाकरे एक प्रसिद्ध समाज सुधारक थे।
अकोलकर ने कहा कि तमाम आशंकाओं के विपरीत शिवाजी पार्क में आयोजित रैली सफल रही और बाल ठाकरे ने उसके बाद पीछे मुड़कर नहीं देखा। शिवसेना नेता और मुंबई की पूर्व महापौर किशोरी पेडनेकर का कहना है कि दशहरा अब पार्टी की परंपरा बन चुकी है।
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