उत्तराखंड के इस गांव में आकर लोग बन जाते हैं अमीर, हो जाते हैं पापों से मुक्त
हल्द्वानी, अमृत विचार। उत्तराखंड के एक गांव की ऐसी मान्यता है कि जिसके भी पैर इस गांव में पड़े उसकी दरिद्रत दूर हो जाती है। यहीं नहीं उसके पाप भी कट जाते हैं। हम बात कर रहे हैं चीन सीमा से सटे भारत के अंतिम गांव माणा की जहां मान्यता है कि आदमी के हर …
हल्द्वानी, अमृत विचार। उत्तराखंड के एक गांव की ऐसी मान्यता है कि जिसके भी पैर इस गांव में पड़े उसकी दरिद्रत दूर हो जाती है। यहीं नहीं उसके पाप भी कट जाते हैं। हम बात कर रहे हैं चीन सीमा से सटे भारत के अंतिम गांव माणा की जहां मान्यता है कि आदमी के हर दुख का अंत होता है। आदमी के सारे पापों का नाश होता है और आदमी तरक्की के मार्ग पर प्रसस्थ होता है।
समुद्र तल से 10,248 फीट की ऊंचाई पर मौजूद माणा गांव पवित्र बद्रीनाथ धाम से 3 किमी आगे भारत और तिब्बत की सीमा पर मौजूद है, इस गांव का नाम भगवान शिव के भक्त मणिभद्र देव के नाम पर पड़ा था।
एक कथा और विद्वानों के मतानुसार इस गांव का नाम माणिक शाह नाम एक व्यापारी के नाम पर पड़ा था जो भगवान शिव का बहुत बड़ा भक्त था। एक बार व्यापारिक यात्रा के दौरान लुटेरों ने उसका सिर काटकर मौत के घाट उतार दिया। लेकिन इसके बाद भी उसकी गर्दन शिव का जाप कर रही थी। उसकी श्रद्धा से प्रसन्न होकर शिव ने उसके गर्दन पर वराह का सिर लगा दिया। इसके बाद माना गांव में मणिभद्र की पूजा की जाने लगी। शिव ने माणिक शाह को वरदान दिया कि माणा आने पर प्रत्येक इंसान की दरिद्रता दूर होगी।
जानकारों की मानें तो मणिभद्र भगवान से बृहस्पतिवार को पैसे के लिए प्रार्थना की जाए तो अगले बृहस्पतिवार तक मिल जाता है। वहीं फंसा हुआ धन और उधारी में अटका धन भी आसानी से प्राप्त हो जाता है। इस गांव में आने पर व्यक्ति स्वप्नद्रष्टा हो जाता है वह खुद के साथ होने वाली चीजों या घटनाओं से स्वत:ही रूबरू होने लगता है वह भविष्य में होने वाली घटनाओं के बारे में जान सकता है।
माणा से 24 किमी दूर भारत-चीन सीमा है। 1962 के भारत-चीन युद्ध तक माणा के भोटिया जनजाति निवासी जो मंगोल जाति के वंशज हैं, वे चीनी नागरिक समझे जाते थे। उन्हें भारतीय नागरिकता तक हासिल नहीं थी। सीमा पूरी तरह खुली और असुरक्षित थी। आर्मी तो दूर यहां कोई सुरक्षा बल भी तैनात न थे।
तब यहां से 50 किमी दूर जोशीमठ के आगे से यहां पैदल आना होता था। यहां के नागरिक बताते हैं कि तब भारत दूर और चीन नजदीक था और चीनी नागरिक खुलेआम यहां तक आते थे। यहां तक कि माणा के निवासी भी चीनी भाषा बोलते और समझते थे।बाद में बदरीनाथ और माणा तक सड़क भी पहुंचाई गई और आईटीबीपी की चौकी स्थापित की गई। अब यह एक पर्यटक स्थल के रूप में विकसित हो चुका है और प्रतिदिन हजारों पर्यटक यहां पहुंचते हैं।