अयोध्या: बकरा मंडी की शान बना है शमशेर, कीमत 90 हजार रुपये

अयोध्या: बकरा मंडी की शान बना है शमशेर, कीमत 90 हजार रुपये

अयोध्या। अल्लाह की राह में कुर्बानी के पर्व बकरीद को दो दिन शेष रह गए हैं। इस बार भी बकरा मंडियां खरीदारों से पूरी तरह गुलजार हैं। एक ओर जहां 8 से 90 हजार तक के बकरे बिक रहे हैं वहीं अफगानी नस्ल का शमशेर नाम से पुकारा जाने वाला बकरा मंडी की शान बना …

अयोध्या। अल्लाह की राह में कुर्बानी के पर्व बकरीद को दो दिन शेष रह गए हैं। इस बार भी बकरा मंडियां खरीदारों से पूरी तरह गुलजार हैं। एक ओर जहां 8 से 90 हजार तक के बकरे बिक रहे हैं वहीं अफगानी नस्ल का शमशेर नाम से पुकारा जाने वाला बकरा मंडी की शान बना है। करीब दो साल के शमशेर का वजन एक कुंतल से ऊपर बताया गया है।

आगामी 10 जुलाई को बकरीद मनाई जाएगी। इसे लेकर जिले में बकरों की मंडी लगनी शुरू हो चुकी है। जिले में ग्रामीण क्षेत्रों के अलावा सबसे बड़ी मंडी नियावां में लगती है। गुरुवार को इसी मंडी की शान बना हुआ शमशेर दिखाई दिया। हालांकि उसे आज कोई खरीदार तो नहीं मिला लेकिन जो देखता ठिठक कर रह जाता। माशूक अली ने बताया इसका वजन करीब एक कुंतल है। यहां अच्छे वजन और बिना किसी चोट वाले बकरों के रेट ज्यादा हैं। मुस्लिम समुदाय के लोगों की यहां पर भीड़ लगी रही। कई लोग 2 बकरे भी एक साथ खरीद रहे हैं। बकरीद से पहले तक इन्हें अच्छे से खिला-पिला कर इनका ख्याल रखा जाएगा। जिसके बाद इनकी कुबार्नी होगी।

ऐसे चुना जाता है कुबार्नी का बकरा

बकरों की खरीदारी करने आए लोगों ने बताया कि कुबार्नी के लिए खरीदे जाने वाले बकरे पर काफी ध्यान देना होता है। उसका सींग टूटा न हो, दो दांत हों, कम से कम एक साल का हो, शरीर पर कोई जख्म न हो और तंदुरुस्त हो। इसके बाद ही उसकी कुबार्नी कबूल होती है। इरफान ने बताया कि उन्होंने साढ़े 16 हजार का एक बकरा खरीदा है। वहीं एक अन्य खरीददार ने 60 हजार रुपए में दो बकरे खरीदे। एक खरीददार ने 16,500 रुपए में बकरा खरीदा। उसने बताया कि बकरे की कुबार्नी से अल्लाह खुश होता है। अफशा नामक महिला ने बताया कि वह भी अपने पति के साथ बकरा खरीदने आई हैं और उन्हें 40 हजार रुपए का बकरा पसंद आया।

तबर्रुक के रुप में होता है कुबार्नी के गोश्त का वितरण

मौलाना जफर अब्बास कुम्मी ने बताया कि बकरे की कुबार्नी देकर उसे तीन दोस्तों, रिश्तेदारों को भी बांटा जाता है। इसमें मुसलमान ही नहीं और धर्मों के लोगों को भी बांटा जा सकता है। उन्होंने बताया कि बस ख्याल इस बात का रखा जाए कि कुबार्नी के लिए खरीदे गए बकरे में कोई नुक्स न हो।

इसलिए मनाते हैं बकरीद

हजरत इब्राहिम खुदा के बंदे थे, उनका खुदा में पूरा विश्वास था। पैगंबर हजरत इब्राहिम से ही कुबार्नी देने की प्रथा शुरू हुई थी। कहा जाता है कि अल्लाह ने एक बार पैगंबर इब्राहिम से कहा था कि वह अपने प्यार और विश्वास को साबित करने के लिए सबसे प्यारी चीज का त्याग करें। इसके बाद पैगंबर इब्राहिम ने अपने इकलौते बेटे की कुबार्नी देने का फैसला किया। वहीं जब पैगंबर इब्राहिम अपने बेटे को मारने वाले थे तभी अल्लाह ने अपने दूत को भेजकर बेटे को एक बकरे यानि दुम्बे से बदल दिया था। तभी से बकरीद का त्योहार पैगंबर इब्राहिम के विश्वास को याद करने के लिए मनाया जाता है।

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