जीवनदान: 49 साल के ब्रेन डेड शख्श ने मरते-मरते 2 लोगों को दे गया जिंदगी, लीवर महिला को प्रत्यारोपित

लखनऊ। राजधानी के केजीएमयू में ‘ब्रेन डेड’ घोषित किए गए 49 वर्षीय शख्स ने दो मरीजों को नया जीवनदान दिया है। बताया जा रहा है कि परिजनों की रजामंदी पर मरीज का अंगदान किया गया है, बिशेषज्ञों की माने तो ‘ब्रेन-डेड’ ऐसी स्थिति होती है। जिसमें व्यक्ति का मस्तिष्क काम करना बंद कर देता है। …
लखनऊ। राजधानी के केजीएमयू में ‘ब्रेन डेड’ घोषित किए गए 49 वर्षीय शख्स ने दो मरीजों को नया जीवनदान दिया है। बताया जा रहा है कि परिजनों की रजामंदी पर मरीज का अंगदान किया गया है, बिशेषज्ञों की माने तो ‘ब्रेन-डेड’ ऐसी स्थिति होती है। जिसमें व्यक्ति का मस्तिष्क काम करना बंद कर देता है। ब्रेन डेड मरीज के अंग से केजीएमयू के चिकित्सकों ने एक मरीज को लीवर प्रत्यारोपित कर उसकी जान बचा ली है।
इतना ही एसजीपीजीआई के चिकित्सकों ने भी एक मरीज का गुर्दा यानी की किडनी ट्रांसप्लांट कर उसकी जान बचाने में कामयाबी हासिल की है। वहीं इस कार्य में स्टेट ऑर्गन एंड टिश्यू ट्रांसप्लांटेशन ऑर्गनाइजेशन के नोडल अधिकारी व एसजीपीजीआई के अस्पताल प्रशासन विभाग के विभागाध्यक्ष प्रो.राजेश हर्षवर्धन ने अहम भूमिका निभाई है।
दरअसल, लखनऊ निवासी 49 वर्षीय एक शख्स बीते सात जून को सड़क दुर्घटना का शिकार हो गया था. जिसके चलते परिजनों ने उसे चंदन अस्पताल में भर्ती कराया। चिकित्सकों ने मरीज को बचाने की काफी कोशिश की। लेकिन उसमें उनकों कामयाबी नहीं मिल सकी। डॉक्टरों ने जांच में युवक को ब्रेन-डेड घोषित कर दिया। बाद में परिजनों ने 10 जून के दिन ब्रेन डेड मरीज को केजीएमू में भर्ती कराया। जहां पर परिवार की रजामंदी से शख्स का अंगदान किया गया। युवक के अंगदान से दो लोगों को नया जीवनदान मिला है।
स्टेट ऑर्गन एंड टिश्यू ट्रांसप्लांटेशन ऑर्गनाइजेशन के नोडल अधिकारी व एसजीपीजीआई के अस्पताल प्रशासन विभाग के विभागाध्यक्ष प्रो.राजेश हर्षवर्धन ने बताया कि एक्सीडेंट का शिकार हुए प्रदीप कुमार विश्वकर्मा को चिकित्सकों ने ब्रेन डेड घोषित कर दिया था, इस बात की सूचना जैसे ही मिली, उसके बाद पांच टीमे बनायी गयीं ,जिन्होंने अपना काम शुरू किया।
उन्होंने बताया कि जब जीवित व्यक्ति अंग दान करता है,वह प्रक्रिया सरल होती है,लेकिन जब ब्रेन डेड शख्स का अंगदान होता है,वह लंबी प्रक्रिया होती है। इसमें कई चरण भी होते हैं। उन्होंने बताया कि ब्रेन डेड घोषित होने के बाद सबसे पहले दानकर्ता के परिवार से सहमती ली जाती है कि वह अंगदान करने के इच्छुक हैं अथवा नहीं। इसके लिए कोई दबाव नहीं डाला जाता ,बल्कि नियमानुसार काउंसलिंग कर उनकी सहमती ली जाती है,यदि परिवार वालों की रजामंदी नहीं मिलती है, तो अंगदान नहीं होता है।
इसमें पुलिस भी अपनी कार्रवाई करती है। इसमें कई घंटे का वक्त लगता है,इस तरह करीब चार चरण पूरे होते हैं,इसके बाद पांच टीमे अपना काम शुरू करती है,पहली टीम यह जांचती है कि जो डोनर हैं उसके अंग लगाये जाने लायक हैं या नहीं। इसके बाद अन्य टीमों का काम शुरू होता है। आज भी सभी टीमों ने एक जुट होकर काम किया,तब जाकर सफलता मिली है।
बताया जा रहा है कि राजधानी में अंगदान के लिए दो अस्पतालों केजीएमयू व पीजीआई के मध्य ट्रैफिक पुलिस ने सहयोग करते हुए करीब 20 किलोमीटर का ग्रीन कॉरिडोर बनाया था। आम तौर पर इस रास्ते में एक घंटे का समय लगता है,यानी की केजीएमयू से पीजीआई पहुंचने में एक घंटे से कम का समय नहीं लगता। लेकिन जब एक मरीज को नया जीवन देने की बात हो तो ट्रैफिक विभाग ने ग्रीन कॉरिडोर बना कर एंबुलेंस को केजीएमयू से पीजीआई महज 20 मिनट में पहुंचा दिया।
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