बाराबंकी: बच्चों, युवाओं को साथ में धकेल रहा है इंटरनेट गेमिंग एडिक्शन- डॉ राहुल सिंह
बाराबंकी। इंटरनेट पर उपलब्ध कोई भी प्लेटफार्म चाहे क्यों ना हो वह बच्चों के दिलों दिमाग पर हावी होती नजर आ रही है। रंग बिरंगी थीम और कांबिनेशन के साथ हर पल बदलती दुनिया और पल-पल पड़ता रोमांच मोबाइल की छोटी सी स्क्रीन पर आभासी दुनिया में युवाओं और किशोरों को एडिक्शन का शिकार बना …
बाराबंकी। इंटरनेट पर उपलब्ध कोई भी प्लेटफार्म चाहे क्यों ना हो वह बच्चों के दिलों दिमाग पर हावी होती नजर आ रही है। रंग बिरंगी थीम और कांबिनेशन के साथ हर पल बदलती दुनिया और पल-पल पड़ता रोमांच मोबाइल की छोटी सी स्क्रीन पर आभासी दुनिया में युवाओं और किशोरों को एडिक्शन का शिकार बना रहे हैं और अंततः यह लोग अवसाद ग्रस्त हो रहे। शहर के मनोज चिकित्सकों के पास हॉस्टल रोज ऐसे 5 से 7 केस पहुंच रहे हैं। मनोचिकित्सक डॉक्टर राहुल सिंह के मुताबिक ऑनलाइन गेम ने बच्चों का बचपन छीन लिया है। पार्क में खेलकूद बंद हो चुका है और उन्हें इंटरनेट की दुनिया भाने लगी है। आभासी दुनिया में उनके हाथ तरह तरह के गेम लग चुके हैं। घंटों ऑनलाइन गेम खेलने में व्यस्त रहने वाले बच्चे खाना पीना तक भूलने की प्रवृत्ति विकसित होने लगी है।
ऑनलाइन गेम बच्चों को चिड़चिड़ा और आक्रामक भी बना रहे हैं। ज्यादातर अभिभावकों का इस पर ध्यान तक जाता है जब देर हो चुकी होती है। चिंता की बात यह है कि ऑनलाइन गेम का चस्का युवाओं के साथ किशोरों में भी बढ़ रहा है। 12 से 18 वर्ष की आयु तक के बच्चों में यह एडिक्शन सबसे ज्यादा बढ़ रहा है। डॉक्टर राहुल कहते हैं केवल एक बार बच्चे को इंटरनेट गेम की लत लग जाए तो फिर बिना इंटरनेट रहना उनके लिए मुश्किल हो जाता है। बच्चे इंटरनेट की जिद करते हैं। माता पिता के मना करने पर कई बार आक्रामक हो जाते हैं।
बच्चों के विकास के लिए भी यह एडिक्शन बड़ा खतरा
डॉक्टर राहुल कहते हैं कि एक दूसरे को हराने की होड़ में बच्चे लगातार खेलते रहते हैं 10 मिनट का गेम कब घंटे 2 घंटे में बदल जाता है बच्चों को पता ही नहीं चलता। यहीं से गेमिंग एडिक्शन शुरू होता है जो बढ़ते बच्चों के विकास के लिए बहुत बड़ा खतरा है बच्चे को लगता है कि वह वर्चुअल वर्ल्ड के हीरो हैं और उनके आसपास के लोग कुछ भी नहीं है इसी चक्कर में वह वास्तविक जीवन से दूर हो जाते हैं कई ऐसे कैसे हैं जब बच्चे खुद को कमरे में बंद कर लेते हैं और माता-पिता तक से बात नहीं करते ।
इंटरनेट गेमिंग एडिक्शन से बचाने के लिए बच्चे का मन जिस काम में लग रहा है उसे करने दे। उन्हें रचनात्मक कार्यों में लगाएं। उनके साथ सुबह-शाम खेलें। इससे भी तनाव का शिकार नहीं होगे । उसे छोटे-छोटे सामाजिक मुद्दों पर बात करें अपने बचपन के दिनों को उनके साथ शेयर करें। यदि मूल रूप से किसी ग्रामीण परिवेश से हैं तो महीने में एक आद बार उन्हें गांव में जाएं और वहां के लोगों से मिल वाएं।
यह भी ध्यान रखें अभिभावक
बच्चों के सामने खुद ज्यादा मोबाइल ना चलाएं ना कोई एडल्ट गेम खेलें अगर उन्हें कुछ देर के लिए मोबाइल दे रहे हैं तो अपने सामने ही गेम खेलने को कहें ।अभिभावकों को चाहिए कि बच्चे को समय दें और उन्हें छोटे-छोटे काम करने को कहें जिनमें उनकी रूचि हो । अगर बच्चा एकांत में मोबाइल ज्यादा इस्तेमाल करता है तो ध्यान दें जाने वह क्या कर रहा है। साथ ही मोबाइल में बच्चे की व्यस्तता को तलाशे खासकर तब जब उम्र 12 से 18 वर्ष हो।
यह एडिक्शन खतरनाक
ज्यादा इंटरनेट गेम खेलने से बच्चों की एकाग्रता कम होती है। ऐसे बच्चों का झुकाव ज्यादातर नेगेटिव मॉडल्स पर हो जाता है। साथ ही साथ बच्चों में धैर्य कम होने लगता है और वे पावर में रहना चाहते हैं। सेल्फ कंट्रोल खत्म हो जाता है कई बार हिंसक होने लगते हैं। सोशल लाइफ से दूर होकर अकेले रहना पसंद करने लगते हैं। बच्चों के व्यवहार विचार दोनों पर इंटरनेट केनी का असर होता है।
ऑनलाइन गेम खेलने वाले बच्चों का सोशल दायरा खत्म हो जाता है और अकेलापन पसंद करने लगते हैं ऐसे में उनकी सोचने और समझने की क्षमता बाधित हो जाती है उनकी रूचि सिर्फ गेम खेलने तक ही सीमित रह जाती है। एक समय ऐसा आता है जब वह गेम से भूख नहीं लगती लेकिन इसकी लत नहीं छुपाते। सामाजिक धारा पहले ही खत्म हो चुका होता है। इस वजह से वह किसी से बात भी नहीं कर पाते और अवसाद के शिकार हो जाते हैं।
मनोरोग विशेषज्ञ डा.राहुल सिंह
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