वीरों का कैसा हो वसंत…

आ रही हिमालय से पुकार है उदधि गरजता बार बार प्राची पश्चिम भू नभ अपार सब पूछ रहें हैं दिग-दिगन्त वीरों का कैसा हो वसंत फूली सरसों ने दिया रंग मधु लेकर आ पहुंचा अनंग वधु वसुधा पुलकित अंग अंग है वीर देश में किन्तु कंत वीरों का कैसा हो वसंत भर रही कोकिला इधर …
आ रही हिमालय से पुकार
है उदधि गरजता बार बार
प्राची पश्चिम भू नभ अपार
सब पूछ रहें हैं दिग-दिगन्त
वीरों का कैसा हो वसंत
फूली सरसों ने दिया रंग
मधु लेकर आ पहुंचा अनंग
वधु वसुधा पुलकित अंग अंग
है वीर देश में किन्तु कंत
वीरों का कैसा हो वसंत
भर रही कोकिला इधर तान
मारू बाजे पर उधर गान
है रंग और रण का विधान
मिलने को आए आदि अंत
वीरों का कैसा हो वसंत
गलबाहें हों या कृपाण
चलचितवन हो या धनुषबाण
हो रसविलास या दलितत्राण
अब यही समस्या है दुरंत
वीरों का कैसा हो वसंत
कह दे अतीत अब मौन त्याग
लंके तुझमें क्यों लगी आग
ऐ कुरुक्षेत्र अब जाग जाग
बतला अपने अनुभव अनंत
वीरों का कैसा हो वसंत
हल्दीघाटी के शिला खण्ड
ऐ दुर्ग सिंहगढ़ के प्रचंड
राणा ताना का कर घमंड
दो जगा आज स्मृतियां ज्वलंत
वीरों का कैसा हो वसंत
भूषण अथवा कवि चंद नहीं
बिजली भर दे वह छन्द नहीं
है कलम बंधी स्वच्छंद नहीं
फिर हमें बताए कौन हन्त
वीरों का कैसा हो वसंत
*कविता- सुभद्रा कुमारी चौहान*