जरूरी सबक
गहरे आर्थिक संकट ने श्रीलंका में राजनीतिक अस्थिरता उत्पन्न कर दी है। हालात इतने असहज हो चले हैं कि अमेरिका, ब्रिटेन और ऑस्ट्रेलिया सहित कई देशों ने श्रीलंका में जारी विरोध-प्रदर्शन और गंभीर आर्थिक स्थिति के परिणामस्वरूप यात्रा चेतावनी जारी की है। पूरे परिदृश्य की विकटता का अनुमान इसी से लगाया जा सकता है कि …
गहरे आर्थिक संकट ने श्रीलंका में राजनीतिक अस्थिरता उत्पन्न कर दी है। हालात इतने असहज हो चले हैं कि अमेरिका, ब्रिटेन और ऑस्ट्रेलिया सहित कई देशों ने श्रीलंका में जारी विरोध-प्रदर्शन और गंभीर आर्थिक स्थिति के परिणामस्वरूप यात्रा चेतावनी जारी की है। पूरे परिदृश्य की विकटता का अनुमान इसी से लगाया जा सकता है कि देश में आर्थिक संकट के कारण ईंधन और रसोई गैस के साथ-साथ दवाओं तथा आवश्यक खाद्य पदार्थों की कमी का सामना करना पड़ रहा है।
किसी भी पड़ोसी देश में अस्थिरता अच्छी बात नहीं है क्योंकि इसका असर भारत पर पड़ता है, जैसे खबरें आ रही हैं कि श्रीलंका में संकट के गंभीर होने के बाद वहां से बड़ी संख्या में लोग अवैध तौर पर भारत के तटीय इलाक़ों में पहुंच रहे हैं और इसका राजनीतिक और आर्थिक असर पड़ सकता है। श्रीलंका के आर्थिक और राजनीतिक संकट के बीच गुरुवार को भी हजारों प्रदर्शनकारियों ने राष्ट्रपति राजपक्षे से इस्तीफा देने की मांग की है। गत 31 मार्च 2022 से कई विरोध प्रदर्शन हुए हैं। खस्ताहाल अर्थव्यवस्था को सुधारने के लिए नए वित्त मंत्री अली साबरी की नियुक्ति की गई, पर नवनियुक्त वित्त मंत्री ने 24 घंटों में ही अपना पद छोड़ दिया।
श्रीलंका की मौजूदा स्थिति देखकर हैरत हो सकती है कि एकाएक ऐसा क्या हुआ कि वह कंगाली के कगार पर पहुंच गया? अपनी दयनीय स्थिति के लिए एक हद तक श्रीलंका स्वयं भी जिम्मेदार है, जिसने अतार्किक नीतियां अपनाकर इतनी दुर्गति करा ली। ऐसे में भारत ने न केवल श्रीलंका को उसकी आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए क्रेडिट लाइन उपलब्ध कराई है, बल्कि खाद्य सामग्री के स्तर पर भी हरसंभव मदद कर रहा है।
इसके अलावा पिछले महीने दोनों देशों में सहमति बनी है कि भारत श्रीलंका को करीब 7,500 करोड़ रुपये का क़र्ज़ और उपलब्ध कराएगा। बीते दिनों भारत ने 40,000 टन चावल भी श्रीलंका भेजा है। इसके साथ ही वहां ईंधन की भारी किल्लत को देखते हुए बड़ी मात्र में डीजल भी भिजवाया है। हालांकि जानकारों का मानना है कि श्रीलंका जिस वित्तीय संकट में फंसा है, उसे इसके लिए अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष से मदद लेनी होगी, और वो इसकी कोशिश भी कर रहा है। पड़ोसी देश के इस संकट से पता चलता है कि लोकलुभावन नीतियों और मुफ्तखोरी वाली राजनीति दीर्घ अवधि में आत्मघाती ही सिद्ध होती है। साथ ही चीन के चंगुल में फंसते जा रहे देशों को भी जरूरी सबक मिलेगा।