बरेली: 2.79 करोड़ की फैंसी लाइटों का झोल, 45 पोल की 90 लाइटों की बत्ती गोल

बरेली: 2.79 करोड़ की फैंसी लाइटों का झोल, 45 पोल की 90 लाइटों की बत्ती गोल

बरेली,अमृत विचार। करीब 2.79 करोड़ की लागत से 2020 में नगर निगम ने गांधी उद्यान से लेकर डेलापीर चौराहे तक सड़क के डिवाइडर में फैंसी लाइटें लगवाईं ताकि शहर के लोग उजाले में सड़क पर चल सकें। काश, नगर निगम की इस सोच का शहरवासियों को लाभ मिल पाता। फैंसी लाइटें लगाने के दौरान जो …

बरेली,अमृत विचार। करीब 2.79 करोड़ की लागत से 2020 में नगर निगम ने गांधी उद्यान से लेकर डेलापीर चौराहे तक सड़क के डिवाइडर में फैंसी लाइटें लगवाईं ताकि शहर के लोग उजाले में सड़क पर चल सकें। काश, नगर निगम की इस सोच का शहरवासियों को लाभ मिल पाता। फैंसी लाइटें लगाने के दौरान जो गड़बड़ियां सामने आईं और लाइटें जलनी बंद हो गई थीं, वह कमी बरकरार है।

मंगलवार देर शाम करीब 8 बजे से 9:40 बजे तक अमृत विचार के रिपोर्टर ने शहामतगंज पुल से उतरकर डेलापीर चौराहे तक फैंसी लाइटों की स्थिति परखी तो लाइटों की स्थिति बेहद खराब मिली। 45 पोल पर लगी 90 लाइटों की बत्ती गुल थी। इस वजह से सड़क के दोनों ओर अंधेरा पसरा था।

अधिकारियों की अनदेखी की वजह से करोड़ों की फैंसी लाइटें सिर्फ शोपीस बनकर रह गई हैं। संवाददाता ने बाइक से पहले शहामतगंज पुल के पास से लेकर डेलापीर तक फैंसी स्ट्रीट लाइटों की वास्तविकता परखी। जिसमें पाया कि करोड़ों रुपये खर्च करने के बाद भी जनता को अंधेरी सड़कों पर चलना पड़ रहा है। यहां से वापसी में सड़क की दूसरी साइड की स्थिति देखनी शुरू की।

तब डेलापीर चौराहे से चंद कदम दूर पुलिस चौकी के पास सड़क के गड्ढे में लोग अंधेरा होने से गिरकर चोटिल हो रहे थे। पूरी सड़क की दोबारा से स्थिति परखने के बाद शहामतगंज पुल से उतरकर डेलापीर चौराहे तक कुल 45 पोलों पर 90 फैंसी लाइटें बंद मिलीं। इतना ही नहीं, इनमें से तीन पोलों पर लैंप सहित लाइटें भी गायब हैं।

इस मार्ग की हालत यह है कि एकता नगर चौराहे के पास शिव मंदिर से करीब डेढ़ सौ मीटर से डेलापीर चौराहे तक 30 पोल की लाइट बिल्कुल ही बंद हैं। लगभग एक किमी इस दूरी तक मार्ग पर पूरी तरह अंधेरा ही है। यहां 60 लाइटें बंद है। इस क्षेत्र में कोई विकास का काम भी नहीं चल रहा है। फिर भी कई महीनों से यह लाइटें बंद हैं।

यह तो गनीमत है कि इस मार्ग पर बड़े शोरूम और दुकानें हैं और इनमे लगी लाइटों की चमक से राहगीर सड़क के गड्डों का पता चला ले रहे हैं। बताते हैं कि फैंसी लाइट के पोल के नाम पर 70 हजार का भुगतान किया गया है। सिर्फ दो और चार इंच के पानी के पाइप को खरीदकर उस पर पालिश की और लाइटें लगा दी गई थीं। अब कुछ साल में ही 250 लाइटों में एक के बाद एक खराब हो रही हैं।

कुदेशिया और हार्टमैन पुल की 25 लाइटों की बंद मिली बत्ती
बरेली। फैंसी लाइटों की स्थिति परखने के बाद कुदेशिया पुल की लाइटें देखीं तो यहां पर भी अंधेरा मिला। यहां सड़क पर अंधेरा रहने से राहगीरों को सड़क के गड्डे नहीं दिखाई दे रहे हैं जो दुर्घटना का कारण बन सकते हैं। इस पुल पर 11 पोल पर लाइटें नहीं जल रही हैं। कुदेशिया से चौधरी तालाब की ओर बढ़ने पर सड़क पर एक भी स्ट्रीट लाइट जलती नहीं मिली। पूरी सड़क पर अंधेरा है। साईं मंदिर के पास तो सड़क भी ठीक नहीं है। कई बड़े गड्ढे हैं। चौधरी तालाब से अलखनाथ मंदिर की ओर बढ़ने पर यहां भी हार्टमैन पुल पर चढ़ने से लेकर उतरने तक 14 पोल पर लाइट नहीं जल रही हैं। पुल पर अंधेरा छाया हुआ है। कुदेशिया और हार्टमैन पुल पर चलने पर आभास होता है कि यहां नगर निगम जुगाड़ से काम चला रहा है। दोनों पुलों के दोनों साइडों पर एक-एक लाइट लगाई गई है। दोनों साइडों की एक-एक लाइट ही जलती मिली तो आगे की बंद मिलीं। कहीं कहीं न जलने वाली लाइट का गैप ज्यादा भी हो गया है।

ईट पजाया से डेलापीर तक ठेकेदार ने जेसीबी से डिवाइडर हटाया तो तार कट गए हैं। इसलिए लाइटें नहीं जल रही हैं। एस्टीमेट बनेगा। तार बदला जाएगा। तब लाइटें जलेंगी। डेलापीर से शिव मंदिर तक कोई काम नहीं हुआ फिर भी 30 पोल की लाइटें नहीं जल रही है तो इसे दिखवाएंगे। हमें किसी ने बताया नहीं इसलिए मैं तो मानूंगा कि शहर में सभी लाइटें जल रही हैं। जो नहीं जल रही हैं उन्हें दिखवा लूंगा।
—राजीव शर्मा, अवर अभियंता प्रकाश विभाग नगर निगम

फैंसी लाइटें लगाने में ठेकेदार ने निगम की मशीनरी का किया था प्रयोग
फैंसी लाइट लगाने वाली फर्म पर नगर निगम अफसरों की खूब मेहरबानी हुई थी। फर्म ने मनमर्जी से सामान की खरीदारी की और अफसरों के बीच गहरी पैठ का फायदा उठाया था। पोल पर लाइटों को लगाने के लिए नगर निगम के संसाधनों का भी उपयोग किया था। इतना ही नहीं, कुछ कर्मचारियों से लाइटें भी लगवाई गई थीं। पोल की ढुलाई भी निगम के वाहन से की गई थी।

जबकि नियम यह है कि ठेका लेने वाली फर्म को अपने संसाधनों से कार्य कराना चाहिए था, क्योंकि निविदा लेने के समय शर्त के अनुसार अनुभव और संसाधनों के बारे में बताना होता है। अगर संसाधनों में कमी है तो नगर निगम के वाहनों का उपयोग करने के बदले में किराया जमा करना होता है। नगर निगम को फर्म ने एक पैसे का भुगतान नहीं किया है।