महात्मा गांधी ने सांप्रदायिक उन्माद के विरुद्ध शुरू किया था आमरण अनशन, जानिए उनके जीवन से जुड़ी बातें

13 जनवरी की तारीख का महात्मा गांधी से गहरा नाता है। महात्मा गांधी ने आज ही के दिन (13 जनवरी 1948) हिन्दू-मुस्लिम एकता बनाए रखने और सांप्रदायिक उन्माद के खिलाफ कोलकाता में आमरण अनशन शुरू किया था। ये उनके जीवन का आखिरी अनशन था। महात्मा गांधी के अनशन में हजारों लोग शामिल हुए, जिनमें हिंदू …
13 जनवरी की तारीख का महात्मा गांधी से गहरा नाता है। महात्मा गांधी ने आज ही के दिन (13 जनवरी 1948) हिन्दू-मुस्लिम एकता बनाए रखने और सांप्रदायिक उन्माद के खिलाफ कोलकाता में आमरण अनशन शुरू किया था। ये उनके जीवन का आखिरी अनशन था। महात्मा गांधी के अनशन में हजारों लोग शामिल हुए, जिनमें हिंदू और सिख बड़ी तादाद में थे और पाकिस्तान से आये बहुत से शरणार्थी भी इसमें शामिल हुए थे। इसके बाद 18 जनवरी 1948 को सुबह विभिन्न संगठनों के 100 से ज्यादा प्रतिनिधि गांधी से मिले और शांति के लिए गांधी की शर्तें स्वीकार कर ली। इसके बाद महात्मा गांधी उपवास तोड़ने के लिए राजी हुए थे।
अनशन खत्म करने के बाद हुई गांधी जी की हत्या
18 जनवरी 1948 को अपना अनशन खत्म करने के ठीक 11 दिन बाद 30 जनवरी 1948 को महात्मा गांधी की हत्या कर दी गई थी। अपनी हत्या से तीन दिन पहले दिल्ली में शांति लाने के उद्देश्य से महरौली स्थित कुतुबुद्दीन बख्तियार काकी दरगाह गए थे। उस समय दिल्ली सांप्रदायिक हिंसा में जल रही थी। दरगाह छोड़ने से पहले गांधी ने लोगों की एक बड़ी सभा को संबोधित करते हुए सांप्रदायिक सद्भाव और एकता का संदेश दिया था। गांधी की हत्या की खबर सुन लोग सन्न रह गए थे। सबकी आंखें नम थी, देश में एक अजीब सा सन्नाटा पसर गया था।
12 जनवरी की शाम को दिया था आखिरी भाषण
13 जनवरी 1948 को अनशन की शुरुआत से पहले 12 जनवरी 1948 की शाम को महात्मा गांधी ने अपना आखिरी भाषण दिया था। इसमें उन्होंने कहा था, ‘देश में सांप्रदायिक दंगों में होती बर्बादी देखने से बेहतर मौत है।’
हत्या वाले दिन क्या-क्या हुआ था?
हत्या वाले दिन 30 जनवरी 1948 को हमेशा की तरह महात्मा गांधी तड़के साढ़े तीन बजे उठे थे। सुबह उठकर उन्होंने प्रार्थना की, दो घंटे काम किया और छह बजे फिर सोने चले गए। आठ बजे गांधी दोबारा उठे, सुबह की ताजा खबरें पढ़ी, ब्रजकृष्ण ने उनकी तेल से मालिश की। फिर गांधीजी नहाने चले गए। नहाने के बाद उन्होंने बकरी का दूध, उबली सब्जियां, टमाटर और मूली खाई। साथ में संतरे का रस भी पिया। इसी समय पुरानी दिल्ली रेलवे स्टेशन के वेटिंग रूम में गांधीजी की हत्या करने वाले नाथूराम गोडसे, नारायण आप्टे और विष्णु करकरे अब भी गहरी नींद में थे। धीरे-धीरे दिन ढल गया। शाम चार बजे के करीब वल्लभभाई पटेल अपनी बेटी के साथ गांधी से मिलने पहुंचे। शाम पांच बजे के बाद तक उनसे मंत्रणा करते रहे। उधर, सवा चार बजे के आसपास गोडसे और उसके साथियों ने कनॉट प्लेस के लिए एक तांगा किया। वहां से फिर उन्होंने दूसरा तांगा किया और बिरला हाउस से 200 गज पहले उतर गए।
कैसे हुई महात्मा गांधी की हत्या?
पांच बजकर दस मिनट पर पटेल और गांधीजी की बातचीत खत्म हुई। इसके बाद गांधी जी शौचालय गए और फिर फौरन ही प्रार्थना वाली जगह की ओर चल दिए। मौजूदगी से बेखबर महात्मा गांधी आभा और मनु से बात करते हुए प्रार्थना स्थल की तरफ जा रहे थे। इसी दौरान बाईं तरफ से नाथूराम गोडसे गांधी जी तरफ झुक। मनु को लगा कि वह गांधी के पैर छूने की कोशिश कर रहा है। आभा ने कहा कि उन्हें पहले ही देर हो चुकी है। इसी बीच गोडसे ने मनु को धक्का दिया, जिससे उनके हाथ से माला और पुस्तक नीचे गिर गई। मनु पुस्तक उठाने के लिए नीचे झुकीं तभी गोडसे ने पिस्टल निकाली और एक के बाद एक तीन गोलियां गांधीजी के सीने और पेट में उतार दीं। आभा ने गिरते हुए गांधी के सिर को अपने हाथों का सहारा दिया। महात्मा गांधी हमेशा-हमेशा के लिए ये दुनिया छोड़कर चले गए।आपको बता दें कि महात्मा गांधी का जन्म 02 अक्टूबर 1869 को गुजरात के पोरबंदर नामक स्थान पर हुआ था।