गोलू देवता का दरबार: उत्तराखंड के इस मंदिर में चिट्ठी और स्टांप पेपर पर लिखी मुरादें होती हैं पूरी

गोलू देवता का दरबार: उत्तराखंड के इस मंदिर में चिट्ठी और स्टांप पेपर पर लिखी मुरादें होती हैं पूरी

हल्द्वानी, अमृत विचार। हिमालय की तलहटी में बसा एक खूबसूरत प्रदेश जहां कण-कण में देवों का वास है। जहां प्रकृति और परमेश्वर का ऐसा संगम है जो यहां आने वाले हर आगंतुक को अपने में समा लेता है। जी हां, हम बात कर रहे हैं देवभूमि उत्तराखंड की। देश-दुनिया से यहां साल भर करोड़ों लोग …

हल्द्वानी, अमृत विचार। हिमालय की तलहटी में बसा एक खूबसूरत प्रदेश जहां कण-कण में देवों का वास है। जहां प्रकृति और परमेश्वर का ऐसा संगम है जो यहां आने वाले हर आगंतुक को अपने में समा लेता है। जी हां, हम बात कर रहे हैं देवभूमि उत्तराखंड की।

देश-दुनिया से यहां साल भर करोड़ों लोग पहुंचते हैं। कोई प्रकृति के खूबसूरत नजारों के दीदार के लिए तो कोई देवभूमि के पावन सिद्ध पीठों और मंदिरों के दर्शन कर मन की मुराद पूरी करने। यूं तो उत्तराखंड में सिद्ध पीठों की कोई कमी नहीं है लेकिन एक ऐसा भी मंदिर है जहां मन की मुराद को चिट्ठी और स्टांप पेपर पर लिखकर पूरा होते देखा जाता है। यह सिद्ध पीठ है उत्तराखंड के न्याय देवता   गोलू देवता (गोल्ज्यू महाराज) का।

चिट्ठी, स्टांप पेपर और घंटियों से लदा अल्मोड़ा स्थित गोलू देवता का मंदिर ।

मान्यता है कि अल्मोड़ा, चंपावत और भवाली के नजदीक घोड़ाखाल में स्थित गोलू देवता के मंदिर से कभी भी कोई निराश होकर नहीं लौटा। यहां मंदिर के बाहर लगे अनगिनत स्टांप पेपर पर लिखी परेशानियां बताती हैं कि गोल्ज्यू के प्रति लोगों में कितनी अगाध श्रद्धा है। मंदिर परिसर में भक्तों की भीड़ और लगातार गुंजती घंटों की आवाज से ही गोलू देवता की लोकप्रियता का अंदाजा लगाया जा सकता है। मनोकामना पूरी होने पर मंदिर में घंटी चढ़ाई जाती है। मंदिर की घंटियों को देखकर ही आपको इस बात का अंदाजा लग जाएगा कि यहां मांगी गई किसी भी भक्त की मनोकामना कभी अधूरी नहीं रहती।

गोलू देवता के दरबार से कोई निराश नहीं लौटता

गोलू देवता को स्थानीय संस्कृति में सबसे बड़े और त्वरित न्याय के देवता के तौर पर पूजा जाता है। इन्हें राजवंशी देवता के तौर पर पुकारा जाता है। गोलू देवता को उत्तराखंड में कई नामों से पुकारा जाता है। इनमें से एक नाम गौर भैरव भी है। गोलू देवता को भगवान शिव का ही एक अवतार माना जाता है।
गोलू देवता को शिव और कृष्ण दोनों का अवतार माना जाता है। उत्तराखंड ही नहीं बल्कि विदेशों से भी गोलू देवता के इस मंदिर में लोग न्याय मांगने के लिए आते हैं। मान्यताओं के अनुसार गोलू देवता के मंदिर में जिसका भी विवाह होता है उसका वैवाहिक जीवन हमेशा खुशियों से भरा रहता है। मान्यता है कि गोल्ज्यू के दरबार से कभी भी कोई दुखियारा निराश नहीं लौटता।

गोलू देवता की भव्य मूर्ति।

कैसे पहुंचे न्याय के देवता गोल्ज्यू के मंदिर
अल्मोड़ा, चंपावत और घोड़ाखाल में गोलू (गोल्ज्यू) देवता का भव्य मंदिर है। मंदिर के अंदर सफेद घोड़े में सिर पर सफेट पगड़ी बांधे गोलू देवता की प्रतिमा है, जिनके हाथों में धनुष बाण है। अगर आप इन मंदिरों के दर्शन के लिए जाना चाहते हैं तो आपको दिल्ली से सीधे अल्मोड़ा, भवाली और चंपावत के लिए आसानी से बस मिल जाएगी। इसके अलावा आप पहले दिल्ली, लखनऊ समेत देश के प्रमुख शहरों से हल्द्वानी भी आ सकते हैं और इसके बाद यहां से अल्मोड़ा, घोड़ाखाल और चंपावत के लिए गाड़ी ले सकते हैं।

यह है गोलू देवता की कथा

गोलू देवता की कहानी कई रहस्यों से भरी हुई है। कुमाऊं क्षेत्र के चंपावत के कत्यूरी राजा झलराई की सात रानियां थी। किसी भी रानी से कोई संतान नहीं थी तब राजा ने संतान पाने के लिए अनेक देवताओं की पूजा अर्चना की। लेकिन कोई भी फल नहीं मिला। इसके बाद राजा पंडित और ज्योतिषियों की शरण में गए। उन्होंने राजा की जन्म कुंडली देखकर बताया कि वे आठवा विवाह करें तो उन्हें पुत्र की प्राप्ति होगी।

राजा झलराई ने आधी रात को सपने में नीलकंठ पर्वत पर बैठे कलिंका नामक सुन्दर कन्या को देखा और दूसरे दिन यह बात सभी दरबारियों को बताते अपनी सेना के साथ नीलकंठ पर्वत की ओर चल दिए। काफी वर्षों बाद उन्हें तपस्या में लीन कलिंका मिली।

राजा झलराई ने अपना परिचय कलिंका को बताया कि सात रानियां होने के बावजूद मेरी कोई संतान नहीं है और कलिंका से अपनी आठवी रानी बनने का निवेदन किया। कलिंका ने राजा को सलाह दी कि वे साधु के पास जाकर शादी की अनुमति मांगे। जिसके बाद साधु ने राजा की पीड़ा सुनकर विवाह की अनुमति दे दी। रानी कलिंका से राजा को संतान हुई तो दूसरी रानियों ने जलन के कारण बच्चे की जगह पर खून से सना सिलबट्टा (एक प्रकार का पत्थर) रख दिया और बच्चे को खतरनाक गायों के गोशाला में फेंक दिया। बालक गोलू गायों का दूध पीकर बढ़ने लगा और रानी से कहा कि तेरे गर्भ से यह सिलबट्टे पैदा हुए है जिस कारण रानी काफी दुखी हुई। रानियों ने गोशाला जाकर देखा कि नवजात बालक सुरक्षित है। उन्होंने उसे बिच्छु घास की झाड़ियो में फेंक दिया।

जब सारी चाल नाकामयाब रहीं तो आखिर में उन्होंने बच्चे को एक टोकरी में रखा और दूर जंगल में छोड़ दिया। रानियों ने एक काठ के संदूक में बच्चे को रखा और काली नदी में फेंक दिया। संदूक सात दिन तक बहते -बहते आठवें दिन गोरीघाट में भाना मछुवारे के जाल में फंस गया।

मछुआरे ने संदूक खोलकर देखा उसमे हंसता खेलता बच्चा निकला। मछुआरे की कोई संतान नहीं थी, ऐसे में वह बच्चे को घर ले गया उसे पालने लगा। बच्चे का नाम गोलू रखा गया। गोलू ने सपने में एक बार अपनी मां कलिंका और पिता झलराई को देखा और भाना को सारी बात बता दी। यह भी कहा की वे ही उसके असली मां -बाप हैं। गोलू ने अपने मां-बाप से घोड़ा मांगा।

भाना ने एक लकड़ी (काठ) का घोड़ा बनाकर दे दिया। वह काठ के घोड़े पर घुमने लगा। एक बार वह अपने घोड़े को पानी पिलाने उस जगह ले गया जहां वे सातों रानियां नहाने के लिए आती थीं। रानियों ने उसके घोड़े को पानी न पीने दिया बालक गोलू ने रानियों के घड़े फोड़ दिए। रानियों ने कहा कि काठ का घोड़ा पानी कैसे पी सकता है।

गोलू ने उत्तर दिया कि जब एक औरत सिलबट्टे को जन्म दे सकती है तो काठ का घोड़ा कैसे पानी नहीं पी सकता है। रानियां यह बात सुनकर भयभीत हो गईं। यह बात राजा के कानों तक पहुंची तो उन्होंने गोलू को बुलाया और अपनी बात सिद्ध करने को कहा। गोलू ने अपनी माता कलिंका के साथ हुए अत्याचारों की सारी कहानी सुनाई।

राजा ने उसी समय गोलू को अपना पुत्र स्वीकार किया और सातों रानीयों को प्राण दंड दे दिया। हालांकि, न्याय के देवता गोलू ने उन्हें क्षमादान देनी की अपील की। इसी कारण उन्हें न्याय का देवता कहा जाता है और उनका वाहन घोड़ा है।