खरना: आज प्रसाद ग्रहण करने के बाद शुरू होगा छठ का निर्जल उपवास, जानें विधि

आज छठ पर्व के दूसरे दिन खरना किया जाता है। खरना में व्रती इसमें दिनभर व्रत रखकर रात में प्रसाद ग्रहण करते हैं। खरना में गुड़ और चावल की खीर बनाकर भोग लगाया जाता है। इस प्रसाद का खास महत्व इसलिए होता है क्योंकि खरना का प्रसाद आम की लकड़ी और मिट्टी के चूल्हे बनता …
आज छठ पर्व के दूसरे दिन खरना किया जाता है। खरना में व्रती इसमें दिनभर व्रत रखकर रात में प्रसाद ग्रहण करते हैं। खरना में गुड़ और चावल की खीर बनाकर भोग लगाया जाता है। इस प्रसाद का खास महत्व इसलिए होता है क्योंकि खरना का प्रसाद आम की लकड़ी और मिट्टी के चूल्हे बनता है।
इस दिन प्रसाद ग्रहण करने के बाद व्रत करने वाला व्यक्ति डूबते सूर्य को अर्घ्य और उगते सूर्य को अर्घ्य देने के बाद ही अन्न-जल ग्रहण करता है। यह व्रत 36 घंटे का होता है। इसमें शुद्धिकरण केवल तन न होकर बल्कि मन का भी होता है।
प्रसाद
खरना प्रसाद बनाने में ही नहीं बल्कि ग्रहण करते समय भी नियम का ध्यान रखना होता है। खरना के दिन व्रत रखने वाला व्यक्ति प्रसाद ग्रहण करता है, तो घर के सभी सदस्य शांत रहते हैं और कोई शोर नहीं करता, क्योंकि शोर होने के बाद व्रती प्रसाद खाना बंद कर देता है। व्रत करने वाला सबसे पहले प्रसाद ग्रहण करता है, उसके बाद ही घर के सभी सदस्य प्रसाद ग्रहण करते हैं।
इन नियमों करें पालन
छठ पूजा के व्रत की शुरुआत करते समय ध्यान रखें कि प्रसाद बनाते समय भी आप पवित्र हों। प्रसाद बनाते समय बीच में कुछ न खाएं।सूर्य भगवान को अर्ध्य देने वाला पात्र तांबे या पीतल का हो। व्रत रख रही महिलाएं फर्श पर दरी या चादर बिछाकर सोएं। छठ पूजा का प्रसाद चूल्हे पर बनाएं और इसे ऐसी जगह पर बनाएं जहां रोजाना का खाना न बनता हो। छठ पूजा के दौरान घर में झगड़ा न करें। वरना छठी माता नाराज हो सकती हैं। सूर्य को अर्ध्य दिए बिना कुछ नहीं खाएं-पिएं।
कैसे करें घाट पर पूजा
कार्तिक शुक्ल षष्ठी के दिन घर में पवित्रता के साथ कई तरह के पकवान बनाए जाते हैं, जिनमें ठेकुआ खासतौर पर प्रसिद्ध है। सूर्यास्त से पहले सारे पकवानों को बांस की टोकरी में भड़कर निकट घाट पर ले जाया जाता है। एक मान्यता यह भी है कि छठ पूजा में सबसे पहले नई फसल का प्रसाद चढ़ाया जाता है।
इसलिए प्रसाद के रूप में गन्ना फल अर्पण किया जाता है। घाट 4-5 गन्नों को खड़ा कर बांधा जाता है और इसके नीचे दीप जलाये जाते हैं। व्रत करने वाले सारे स्त्री और पुरुष जल में स्नान कर इन डालों को अपने हाथों में उठाकर षष्ठी माता और भगवान सूर्य को अर्ध्य देते हैं। सूर्यास्त के पश्चात सब अपने घर लौट आते हैं।
अगले दिन यानी कार्तिक शुक्ल सप्तमी को सूर्योदय से पहले ब्रह्म मुहूर्त में फिर डालों में पकवान, नारियल और फलदान रख नदी के तट पर सारे वर्ती जमा होते हैं और उगते हुए सूर्य को अर्घ्य देते हैं। इसके बाद छठ व्रत की कथा सुनी जाती है और कथा के बाद प्रसाद ग्रहण करके व्रती अपना व्रत तोड़ते हैं।
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