अयोध्या: गांवों को चकबंदी और अनियोजित विकास ले ‘डूबा’, भारी बारिश से गांव-गांव में भर जाता है पानी

अयोध्या। नदी-नालों की पहुंच और प्रभाव क्षेत्र से दूर-दूर बसे गांवों में बरसात में बाढ़ जैसी स्थिति पैदा हो जाना अब आम समस्या बन गई है। औसत बरसात में भी गांव-गांव जल पलायन की स्थिति के चलते किसानों को न सिर्फ बड़े पैमाने पर फसलों की क्षति उठानी पड़ रही है, बल्कि इसी के चलते …
अयोध्या। नदी-नालों की पहुंच और प्रभाव क्षेत्र से दूर-दूर बसे गांवों में बरसात में बाढ़ जैसी स्थिति पैदा हो जाना अब आम समस्या बन गई है। औसत बरसात में भी गांव-गांव जल पलायन की स्थिति के चलते किसानों को न सिर्फ बड़े पैमाने पर फसलों की क्षति उठानी पड़ रही है, बल्कि इसी के चलते जन-धन की हानि भी होती है।
वर्ष 1955 और 72 की भयंकर बाढ़ का पानी जिन गांवों को छू तक नहीं सका था, अब औसत बरसात में वे गांव बाढ़ का प्रकोप झेल रहे हैं। इन सबके पीछे कुछ और नहीं बल्कि चकबंदी प्रक्रिया और गांवों तक सड़क के जरिए पहुंचा अनियोजित विकास जिम्मेदार है। जिसके कारण बरसाती पानी के बहाव के जो प्राकृतिक रास्ते थे वो अवरुद्ध हो गए हैं।
अयोध्या जिले में सरयू नदी के अलावा छोटी नदियां, मड़हा, विसुई, तमसा व नाले हैं। भारी बारिश में इन्हीं नदियों, नालों की बाढ़ के चलते जिला प्रभावित होता है। यहां सबसे बड़ी बाढ़ 1955 और 1972 में आई थी। उस दौरान सड़क और रेल यातायात बुरी तरह प्रभावित हो गए थे। सन् 68 के बाद से तो स्थिति और भी विकराल हो गई।
चकबंदी के समय चक मार्ग, सेक्टर मार्ग, गांव से गांव के लिए संपर्क मार्ग, सिंचाई के लिए नाली, खेल के मैदान, चारागाह, मरे जानवारों को फेंकने के लिए भूमि, स्कूल व पंचायत भवन आदि के लिए भूमि आरक्षित की जाती है, लेकिन इस बात को दृष्टिगत रखते हुए कि बरसात का पानी गांवों और गांवों की कृषि योग्य भूमि से कैसे निकलेगा? इसकी कोई व्यवस्था नहीं की जाती है।
सन् 68 में जब यहां चकबंदी की प्रक्रिया शुरू हुई तो गांव-गांव में संपर्क मार्ग भी नहीं थे। अलग-अलग छोटे-छोटे टुकड़ों में कृषि योग्य भूमि थी। उस दौरान बारिश का पानी घूम फिर कर छोटे बड़े नदी नालों में चला जाता था। उस दौरान बाढ़ से प्रभावित इलाके वहीं होते थे जो नदी, नालों या झीलों के जल ग्रहण क्षेत्र में आते थे।
इधर, गांव-गांव चकबंदी हो जाने के बाद एक-एक व्यक्ति की जोत अलग-अलग इकट्ठा करके एक चक की शक्ल में कर दी गई। प्रत्येक चकों को चक मार्ग, सेक्टर मार्ग या संपर्क मार्ग से जोड़ दिया गया। वहीं, चकबंदी के बाद सामान्य कृषकों ने अपनी-अपनी चकों की मेड़ तो मजबूत और ऊंची कर ही ली। साथ ही जवाहर रोजगार योजना, जिसका एक बड़ा हिस्सा संपर्क मार्गों और नालियों के निर्माण पर ही खर्च होता है। इसके चलते ये चकबंदी में छोड़े गए चकमार्ग व संपर्क मार्ग चौड़े व ऊंचे कर दिए गए हैं। साथ ही अधिकांश पर या तो सोलिंग कर दी गई है या फिर डामर डाल दिया गया है। कुल मिलाकर ये चक, संपर्क व सेक्टर मार्ग बरसात के पानी के बहाव में भारी अवरोधक साबित होते हैं।
चकबंदी के समय जल निकासी के लिए हो भूमि का प्रबंध…
अब आवश्यकता इस बात की समझी जा रही है कि जिन इलाकों में में दोबारा चकबंदी की प्रक्रिया शुरू हो रही है या चल रही है। वहां बरसाती पानी निकालने के लिए भी भूमि प्रबंधन हो, वरना मामूली बरसात में भी जलभराव की समस्या स्थायी रूप से बनी रहेगी।