पितृपक्ष पर विशेष: आशीर्वाद पिता का…

खत्म हुआ सब मेला ठेला शाम हुई जब हुआ अकेला स्मृतियों से छनकर के तब चेहरा आता याद पिता का। तुम क्या गए कि निपट अकेला ज्यों मेले में छूट गया मैं एक खिलौना मिट्टी जैसा टुकड़े टुकड़े टूट गया मैं, एकाकीपन में होता तब फोटो से संवाद पिता का। रहे सत्य के सदा पुजारी …
खत्म हुआ
सब मेला ठेला
शाम हुई
जब हुआ अकेला
स्मृतियों से
छनकर के तब
चेहरा आता याद पिता का।
तुम क्या गए
कि निपट अकेला
ज्यों मेले में छूट गया मैं
एक खिलौना
मिट्टी जैसा
टुकड़े टुकड़े टूट गया मैं,
एकाकीपन में
होता तब फोटो से
संवाद पिता का।
रहे सत्य के सदा पुजारी
भागवत के
तुम भाष्यकार थे
बीतराग
जड़भरत सरीखे
सुख में दुख में निर्विकार थे,
जीवन क्या था
चलता फिरता गीता का
अनुवाद पिता का।
अंतहीन यात्रा पर
जाने कहां गए
तुम हमें छोड़कर
बरबस यादों में आते हो
जीवन के
हर कठिन मोड़ पर,
ढाढस हमें
बंधाता है तब
आकर आशीर्वाद पिता का ।
तब स्मृतियों से
छनकर के
चेहरा आता याद पिता का।।
- डॉ रविशंकर पांडेय