300 फुट ऊंचा शिखर “गिरि”

300 फुट ऊंचा शिखर “गिरि”

रामायणकालीन चित्रकूट और वर्तमान चित्रकूट में जो एक चिन्ह अपरिवर्तित बचा है वह है पवित्र कामद गिरि। एक सामान्य ऊंचाई का लगभग 300 फुट ऊंचा शिखर जिसे गिरि कहे जाने का सम्मान भगवान राम के तपोबल के कारण मिला।भगवान राम, माता सीता और लक्ष्मण 12 वर्षों तक इस पर्वत प्रान्त व शिखर पर तप करते …

रामायणकालीन चित्रकूट और वर्तमान चित्रकूट में जो एक चिन्ह अपरिवर्तित बचा है वह है पवित्र कामद गिरि। एक सामान्य ऊंचाई का लगभग 300 फुट ऊंचा शिखर जिसे गिरि कहे जाने का सम्मान भगवान राम के तपोबल के कारण मिला।भगवान राम, माता सीता और लक्ष्मण 12 वर्षों तक इस पर्वत प्रान्त व शिखर पर तप करते रहे थे । अयोध्या के राजकुमार राम अपनी कोमलांगी धर्मपत्नी जनक नन्दिनी के साथ पिता के दिये 14 वर्ष के वनवास के 12 वर्ष इसी जंगल से भरे पर्वत पर बिता दिये । इस दौरान राम न तो कृषि कर्म , न आखेट कर्म , न भिक्षा कर्म कर रहे थे , तो सवाल उठता है कि भोजन और वस्त्र की व्यवस्था कैसे करते रहे होंगे ?

तब वहां कोई ग्राम और नगर था नहीं … भगवान राम प्रतिज्ञाबद्ध होने के कारण नगर और ग्राम में निर्वासित जीवन जी नहीं सकते थे , फिर कैसे जिए क्योंकि पर्वत पर फलदार वृक्ष भी नहीं हैं । जल धाराएं भी नहीं हैं । मुझे लगता है कि कामद गिरि से मात्र तीन किमी पर ऋषि माता अनुसूया प्रणीत मन्दाकिनी-पयस्वनी बहती हैं और उसके तट पर कुछ अकृष्ट धान्य व कन्दमूलादि पैदा होते रहे होंगे , जैसा कि ऋषि अत्रि के आश्रमवासी जीवन जीते रहे उसी तरह राम भी तपः पूर्ण जीवन जीते रहे होंगे ।

कामद गिरि में बन्दर और लंगर बहुत हैं । वे भी शाकाहार करते हैं अतः उनकी देखा-देखी राम और लक्ष्मण भी वनोपज एकत्रीकरण कर आहार व्यवस्था करते रहे होंगे। सीता जी को माता अनुसूया ने दिव्य साडी और वस्त्र दिये थे जो न फटते थे , न गन्दे होते थे और नित्य नवीन बने रहते थे। राम और लक्ष्मण वनवासियों की तरह लंगोट और अधोवस्त्र लपेटकर रहते रहे होंगे क्योंकि वहां कोल-भील जाति के वनवासियों के निवास और राम से उनके सौहार्द पूर्ण सम्बन्धों का उल्लेख वाल्मीकि जी ने किया है । तो न्यूनतम वस्त्रों की आवश्यकता पूर्ति भीलों से होती रही होगी – राक्षसों से सुरक्षा की एवज में वस्त्र आदि मिलते रहे होंगे ।

कामद गिरि में एक जगह ऐसी है जिसके पत्थरों पर चरणचिन्ह बने से लगते हैं। जनश्रुति है कि भरत मिलाप के भावपूर्ण अवसर पर जिन शिलालेखों पर राम , सीता, भरत, लक्ष्मण, जनक , कौशल्या , सुमित्रा और कैकयी खडे हुए थे वे भी सानी गयी मिट्टी की तरह मुलायम हो गयी थी और उस कारण पैरों के निशान बने हैं । लक्ष्मण ने एक पार्श्ववर्ती शिखर पर चढकर भरत के साथ आ रहे गज अश्व पंक्ति की चौकीदारी की थी उसे लक्ष्मण पहडिया बोला जाता है।

कामद नाथ के लिए संत तुलसीदास ने लिखा है –
काभद भे गिरि राम प्रसादा , अवलोकत अपहरत विषादा ।
राम को प्रसन्न करने से कामद का प्रमोशन कर उन्हे गिरि बना दिया गया , उनके अवलोकन मात्र से विषादहरण होता है ।

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