बरेली: शहर के ‘फेफड़ों’ का बुरा हाल, जिला प्रशासन की बेरुखी से ये क्या हो गया?, देखें Video

बरेली: शहर के ‘फेफड़ों’ का बुरा हाल, जिला प्रशासन की बेरुखी से ये क्या हो गया?, देखें Video

हरदीप सिंह ‘टोनी’ बरेली, अमृत विचार। अतीत के पन्नों में दर्ज यूपी के बरेली जनपद का इतिहास ऐतिहासिक रहा है। लेकिन आजाद भारत के बाद विकास के पहिए की रफ़्तार और सरकारी व प्रशासनिक उदासीनता के चलते यहां कई खामियों ने दस्तक देनी शुरू कर दी। बरेली शहर के कई पार्क गुलाम भारत की कई …

हरदीप सिंह ‘टोनी’
बरेली, अमृत विचार। अतीत के पन्नों में दर्ज यूपी के बरेली जनपद का इतिहास ऐतिहासिक रहा है। लेकिन आजाद भारत के बाद विकास के पहिए की रफ़्तार और सरकारी व प्रशासनिक उदासीनता के चलते यहां कई खामियों ने दस्तक देनी शुरू कर दी। बरेली शहर के कई पार्क गुलाम भारत की कई दास्ताओं के गवाह रहे, जो अब केवल स्मृतियां शेष बनकर रह गए हैं।

स्मार्ट सिटी के तहत अब बरेली विकास प्राधिकरण करीब 1700 करोड़ रुपए की लागत से ग्रेटर बरेली बसाने जा रहा है। जल्द ही इसको धरातल पर उतारने का काम शुरू कर दिया जाएगा। इससे शहर के विकास को भी नई गति मिलेगी। लेकिन आकर्षण के केंद रहे बरेली के पार्क आज अपनी दुर्दशा पर रो रहे हैं।

बरेली में बहुत से ‘पार्क’ ऐसे हुआ करते थे, जिनकी एक अपनी अलग पहचान शहर के ‘फेफड़ों’ के रूप में होती थी। पार्कों में लगे हरे-भरे पेड़, बच्चों के खेलने-कूदने की व्यवस्था और व्यायाम के लिए वॉकिंग ट्रैक यहां की सुन्दरता में इजाफा करते थे। जैसे हर प्राणी को जीने के लिए ऑक्सीजन की जरुरत है जो पेड़ों से मिलती है और इसी ऑक्सीजन को समेटे हर प्राणी जीवन जीता है। बिल्कुल ऐसा ही प्राकृतिक चक्र भी काम करता, लेकिन जो पार्क खुद प्राणियों को शुद्ध हवा के रूप में ऑक्सीजन देते, प्राकृतिक छटा बिखेरते, अब बरेली के फेफेड़े कहे जाने वाले ऐसे पार्क खुद ऑक्सीजन के अभाव में खत्म हो गए। स्थानीय लोग इसका कारण सरकारी और प्रशासनिक नजरअंदाजी बताते हैं।

पार्कों की बात करें तो यहां बरेली के कुतुबखाना का मोती पार्क, श्यामतगंज का जवाहर लाल नेहरु पार्क, सिविल लाइन्स सर्किट हाउस चौराहे पर स्थित शहीद शेफाली चौधरी पार्क, कचहरी के पास का चौधरी चरण सिंह पार्क समेत कई ऐसे पार्क हैं, जो अब या तो बदहाली की अवस्था में हैं या खत्म हो चुके हैं।

स्थानीय व्यापारी नवीन भसीन बताते हैं कि श्यामतगंज का वर्ष 1976 में बना नेहरु पार्क अब सिर्फ इतिहास के पन्नों में दर्ज रह गया है। यहां कभी देश के पहले प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरु की प्रतिमा लगी थी, लेकिन वर्ष 1992 में कुछ अराजक तत्वों ने उस प्रतिमा को क्षतिग्रस्त कर दिया, जो आज तक नहीं बन पाई। बना तो सिर्फ यहां नगर निगम का शौचालय और अब इलेक्ट्रिक बस का टिकट घर, जो कि निर्माणाधीन है। इसके अलावा मोती पार्क जो अब मल्टी लेवल पार्किंग में तब्दील हो चुका है। वहीं, अदम्य साहस का परिचय देते हुए अपना बलिदान देने वाली पायलट शेफाली की स्मृति में बने सर्किट हाउस चौराहे के पास स्थित पार्क में शेफाली चौधरी कीर्ति स्तंभ पर उगी बड़ी-बड़ी घास, झाड़ी और यहां टाइल्स व प्लास्टर का उखड़ जाना, यहां की बदहाली को साफ़ दर्शाता है।

क्या हैं पूर्व मेयर ?
वहीं, इस मामले में पूर्व मेयर डॉ. आईएस तोमर का कहना है कि जैसे जैसे जनसंख्या बढ़ रही है। वैसे-वैसे विकास भी हो रहा है और जगह की आवश्यकता भी होती है। लेकिन पार्कों की समय समय पर मरम्मत करवाना, शौचालय बनावा देना और पार्कों में जरुरत से ज्यादा कंस्ट्रक्शन करवाना, साफ़ सफाई की व्यवस्था ना होना और अवैध अतिक्रमण करना निश्चित रूप से गलत है।  पूर्व मेयर ने बताया कि इलाहाबाद हाईकोर्ट ने भी कहा है कि किसी भी पार्क में किसी भी तरह का निर्माण कार्य नहीं होना चाहिए।

क्या कहते हैं वर्तमान मेयर ?
इसके अलवा वर्तमान मेयर डॉ. उमेश गौतम कहना है कि मोती पार्क सिर्फ नाम का पार्क था वहां छोटी सी एक जगह थी जिसे लोग पार्क कहने लगे। लेकिन, स्थानीय लोग इस बात से इतेफाक नहीं रखते, वो बताते हैं कि मोती पार्क में कभी हरे-भरे पेड़ हुआ करते थे। कुतुबखाना चौराहा के पास जहां पुलिस चौकी है, वह स्थान टाउन हाल कहलाता था। अंग्रेजों ने ही पुलिस चौकी की जगह पर लाइब्रेरी बनाई थी। काफी सीढ़ियां चढ़कर उस पर लोग जाते थे। सामने ही मोती पार्क का मैदान था, जहां उस वक्त सभाएं हुआ करती थीं। लेकिन अब वहां मल्टी लेवल पार्किंग बन चुकी है।

मेयर डॉ. उमेश गौतम का जो कहना है वो पूर्व मेयर डॉ. आईएस तोमर की बयानों से थोड़ा अलग है। मैयर उमेश गौतम नए पार्कों के निर्माण की बात तो करते हैं लेकिन पुराने ऐतिहासिक पार्कों के जीर्णोधार की बात करना शायद मुनासिब नहीं समझते। वो कहते हैं कि हमने गांधी उद्यान पार्क में मियावाकी टेक्निक से एक जंगल लगाया है जिससे वहां बड़े स्तर पर हरियाली है। इसी तरह सुभाष चंद्र बोस पार्क के दोनों तरफ मियावाकी टेक्निक जंगल लगाया है। इसी तरह वनखंडी नाथ में जिस जमीन पर कूड़ा पड़ता था उसको हमने नगर वन घोषित किया है। इसके लिए शासन को पत्रावली भी भेज दी गई है।

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