UP Election 2022 : मुद्दे गायब, मतदाता चुप, उलझन में उम्मीदवार

UP Election 2022 : मुद्दे गायब, मतदाता चुप, उलझन में उम्मीदवार

आशुतोष मिश्र/अमृत विचार। कोरोना की शर्तों के बीच जारी चुनाव प्रचार से उम्मीदवारों की बल्ले-बल्ले नहीं है। मतदाता भी चुप हैं और मुद्दे भी नदारद हैं। इससे उम्मीदवारों की उलझन बढ़ती जा रही है। मतदान के मात्र 10 दिन बाकी हैं। बड़ी रैली और सभाओं पर प्रतिबंध की वजह से चुनाव प्रचार के परंपरागत तरीके …

आशुतोष मिश्र/अमृत विचार। कोरोना की शर्तों के बीच जारी चुनाव प्रचार से उम्मीदवारों की बल्ले-बल्ले नहीं है। मतदाता भी चुप हैं और मुद्दे भी नदारद हैं। इससे उम्मीदवारों की उलझन बढ़ती जा रही है। मतदान के मात्र 10 दिन बाकी हैं। बड़ी रैली और सभाओं पर प्रतिबंध की वजह से चुनाव प्रचार के परंपरागत तरीके बेमानी लग रहे हैं। अलबत्ता सोशल मीडिया पर उम्मीदवार और उनके समर्थन में अपीलें जारी की जा रही हैं।

विधान सभा चुनाव में किसी भी दल का घोषणा पत्र जारी नहीं हुआ है। राज्य में सात चरणों में मतदान होना है। मंडल में दूसरे चरण में चुनाव होगा। यहां से कुल 27 विधायकों का निर्वाचन होना है। भाजपा, सपा- रालोद, बसपा, कांग्रेस, पीस पार्टी, आम आदमी पार्टी, कम्युनिस्ट, एआईएमआईएम सहित निर्दलीयों ने चुनाव में ताल ठोकी है, जिसमें अकेले मुरादाबाद जिले में 66 उम्मीदवार मैदान में हैं।

गन्ना की खेती के लिए प्रसिद्ध मंडल में खेती-किसानी के सवाल पर सभी दल टुकड़ों में अपनी बात कह रहे हैं। सभी उम्मीदवार टोली में जनसंपर्क कर रहे हैं। लेकिन, उनके स्थानीय मुद्दे भी चौपाल पर बहस के विषय नहीं बन पा रहे हैं। कांग्रेस सात प्रतिज्ञा लेकर चुनावी तैयारी में थी। भाजपा ने आम लोगों की राय पूछी है। सपा- रालोद की ओर से छोटी सभाओं और पत्रकार वार्ता में कुछ-कुछ मुद्दे गिनाए जा रहे हैं। लेकिन, संकलित रूप से कोई प्रपत्र अभी जारी नहीं हुआ है।

राजनीतिक समीक्षक डॉ. माधव दास तिवारी कहते हैं कि सभी दल एक दूसरे के घोषणा पत्र का इंतजार कर रहे हैं। पहले राजनीतिक दल अपने मुद्दे शुरू में बता देते थे। इस बार अभी चुप्पी है। हर चुनाव में ढेला नदी पर पुल, जिला मुख्यालय पर सरकारी विश्वविद्यालय, मेडिकल कॉलेज, रोजगार के अवसर उपलब्ध कराने की मांग को हवा दी जाती है। शिक्षा, स्वास्थ्य और दस्तकारों की तरक्की के हर बार सपने दिखाए जाते हैं। इस बार अभी स्थानीय मुद्दे भी मंचों से नहीं बोले जा रहे हैं। अलबत्ता भाजपा, सपा, कांग्रेस और बसपा के स्लोगन के तराने गुनगुनाए जा रहे हैं। उम्मीदवार गीतों और नारों के सहारे मतदाताओं से संपर्क कर रहे हैं। लेकिन, चुनाव के स्थानीय और केंद्रीय मुद्दे क्या हैं, इस पर चारों ओर खामोशी है।

… तब गागन नदी पर पुल की उठी थी मांग
बात साल 2018 की है। सावन के सोमवार को सुबह नदी का पानी लाल हो गया था। मंदिर में जलाभिषेक के लिए जा रहीं तीन बहनें ट्रेन की चपेट में आ गयीं। 20 अगस्त की सुबह देवापुर गांव की तीन बेटियां रेलवे लाइन से होकर मंदिर की ओर जा रही थी। तब रेल लाइन के दोनों ओर पानी भरा था। लेकिन इधनपुर नंगला की बेटियों को क्या पता था कि भगवान से मन्नत मांगने की उम्मीद धरी रह जाएगी। शीतल, शिवानी और मानवी की मौत पर इलाक रो पड़ा था। कुंदरकी के विधायक हाजी रिजवान, संभल के तत्कालीन सांसद सतपाल सिंह सैनी और अन्य क्षेत्रीय जनप्रतिनिधि घटना स्थल पर सिसक पड़े थे। क्षेत्र में पुल बनवाने के ऐलान हुए। रेल प्रबंधन ने भी इसमें अंशदान का भरोसा दिया। लेकिन, सब कुछ भूल गया। साल 2019 के लोक सभा चुनाव के बाद अब विधान सभा चुनाव की रणभेरी बज चुकी है। तीन बेटियों को गंवाने वालों के दरवाजे पर भी विकास की दुहाई दी जा रही है। हालात इस बात के गवाह हैं कि करीब चार साल से इस नदी पर पुल बनवाने की रत्ती भर भी पहल नही हुई है। शायद प्रकरण किसी के चुनावी मुद्दे में भी शामिल नहीं है।

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