Urdu and Persian scholar
साहित्य 

ये दौर-ए-ख़िरद है दौर-ए-जुनूँ इस दौर में जीना मुश्किल है

ये दौर-ए-ख़िरद है दौर-ए-जुनूँ इस दौर में जीना मुश्किल है ये दौर-ए-ख़िरद है दौर-ए-जुनूँ इस दौर में जीना मुश्किल है अँगूर की मय के धोके में ज़हराब का पीना मुश्किल है जब नाख़ुन-ए-वहशत चलते थे रोके से किसी के रुक न सके अब चाक-ए-दिल-ए-इन्सानिय्यत सीते हैं तो सीना मुश्किल है इक सब्र के घूँट से मिट जाती तब तिश्ना-लबों की तिश्ना-लबी कम-ज़र्फी-ए-दुनिया के सदक़े ये …
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