सूर्यकांत त्रिपाठी 'निराला'
साहित्य 

जागो फिर एक बार, प्यार जगाते हुए हारे सब तारे तुम्हें…

जागो फिर एक बार, प्यार जगाते हुए हारे सब तारे तुम्हें… जागो फिर एक बार प्यार जगाते हुए हारे सब तारे तुम्हें अरुण-पंख तरुण-किरण खड़ी खोलती है द्वार जागो फिर एक बार आँखे अलियों-सी किस मधु की गलियों में फँसी बन्द कर पाँखें पी रही हैं मधु मौन अथवा सोयी कमल-कोरकों में? बन्द हो रहा गुंजार जागो फिर एक बार अस्ताचल चले रवि शशि-छवि विभावरी में …
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