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साहित्य 

है कश्मीर धरती पे जन्नत का मंज़र…

है कश्मीर धरती पे जन्नत का मंज़र… पहाड़ों के जिस्मों पे बर्फ़ों की चादर चिनारों के पत्तों पे शबनम के बिस्तर हसीं वादियों में महकती है केसर कहीं झिलमिलाते हैं झीलों के जेवर है कश्मीर धरती पे जन्नत का मंज़र यहाँ के बशर हैं फ़रिश्तों की मूरत यहाँ की जु़बाँ है बड़ी ख़ूबसूरत यहां की फ़िजाँ में घुली है मुहब्बत यहाँ की …
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