मनोरोग विशेषज्ञ ने गेमिंग डिसऑर्डर को बताया गंभीर समस्या, कहा- मोबाइल बच्चों में बढ़ा रहा सोशल फोबिया

मनोरोग विशेषज्ञ ने गेमिंग डिसऑर्डर को बताया गंभीर समस्या, कहा- मोबाइल बच्चों में बढ़ा रहा सोशल फोबिया

लखनऊ। मोबाइल का जरूत से ज्यादा उपयोग करना बच्चों के लिए एक बड़ी समस्या बनता जा रहा है। मोबाइल पर अधिक समय बीताने से बच्चों में चिड़चिड़ापन देखा जाना आम बात हो गयी है। बच्चे मोबाइल पर गेम खेलने में अधिक समय बीताते हैं, जिसके कारण बहुत से बच्चे गेमिंग डिसआर्डर के शिकार हो रहे …

लखनऊ। मोबाइल का जरूत से ज्यादा उपयोग करना बच्चों के लिए एक बड़ी समस्या बनता जा रहा है। मोबाइल पर अधिक समय बीताने से बच्चों में चिड़चिड़ापन देखा जाना आम बात हो गयी है। बच्चे मोबाइल पर गेम खेलने में अधिक समय बीताते हैं, जिसके कारण बहुत से बच्चे गेमिंग डिसआर्डर के शिकार हो रहे हैं। यह कहना है डॉ.श्यामा प्रसाद मुखर्जी अस्पताल की मनोरोग विशेषज्ञ डॉ. दीप्ति सिंह का। आखिर क्या हैं गेमिंग डिसआर्डर के लक्षण और बचाव के तरीके बता रही हैं मनोरोग विशेषज्ञ डॉ. दीप्ति सिंह।

उन्होंने कहा कि गेमिंग डिसऑर्डर के शिकार बच्चे ज्यादा से ज्यादा समय समय मोबाइल पर वीडियो गेम खेलते हुए बिताते हैँ। ऐसे बच्चे मोबाइल पर गेम खेलने को अपने रोजमर्रा के और जरूरी कामों से भी ज्यादा महत्व देते हैं। जैसे-जैसे समय बीतता है,गेम खेलने की वजह से उनके व्यवहार पर इसका नकारात्मक प्रभाव पड़ने लगता है।

उन्होंने बताया कि गेमिंग डिसऑर्डर एक बिहेवियरल या व्यवहार से जुड़ी समस्या है। बिल्कुल वैसे ही जैसे लोगों को शराब पीने की लत हो जाये। उन्होंने कहा कि हमारे यहां मोबाइल पर पबजी जैसे तमाम गेम मौजूद है जो बच्चों तथा किशोरों के पसंदिदा हैं। यही कारण है कि भारत में भारी तादात में बच्चे गेमिंग डिसऑर्डर का शिकार हो रहे हैं।

लक्षण

मनोरोग विशेषज्ञ डॉ. दीप्ति सिंह बताती हैं कि यदि बच्चा मोबाइल पर रोजाना 6 से 7 घंटे मोबाइल पर समय व्यतीत कर रहा है और उसे बाहरी दुनिया से कोई मतलब नहीं है। बच्चे से मोबाइल लेते ही उनमें चिड़चिड़ापन होना, बच्चों को मोबाइल लेने के लिए कोशिश करना। साथ ही यदि बच्चा सामाजिक तौर पर या परिवार के सदस्य से कम बातचीत कर रहा है, बाहर निकलकर लोगों से बातचीत करने से बच्चा कतरा रहा है,समय से बच्चे को नींद नहीं आ रही तो ऐसे में समझना चाहिए की बच्चा गेमिंग डिसआर्डर का शिकार हो सकता है। ऐसे में तत्काल मनोचिकित्सक से सलाह लेना चाहिए।

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