हिंसा पर राजनीति

हिंसा पर राजनीति

लखीमपुर खीरी कांड के बाद से चुनावी मोड में जा रहे राज्य में राजनीतिक पारा चढ़ता जा रहा है। प्रदेश ही नहीं, दिल्ली, छत्तीसगढ़, राजस्थान व पंजाब आदि राज्यों से विभिन्न राजनीतिक दलों के नेता प्रदेश व केंद्र सरकार पर हमलावर हो गए हैं। इस बीच बुधवार को सियासी संग्राम के बीच दिल्ली में केन्द्रीय …

लखीमपुर खीरी कांड के बाद से चुनावी मोड में जा रहे राज्य में राजनीतिक पारा चढ़ता जा रहा है। प्रदेश ही नहीं, दिल्ली, छत्तीसगढ़, राजस्थान व पंजाब आदि राज्यों से विभिन्न राजनीतिक दलों के नेता प्रदेश व केंद्र सरकार पर हमलावर हो गए हैं। इस बीच बुधवार को सियासी संग्राम के बीच दिल्ली में केन्द्रीय गृह राज्य मंत्री अजय मिश्रा ने गृह मंत्री अमित शाह से मुलाकात कर सफाई दी।

कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी ने केंद्र और उत्तर प्रदेश सरकार पर हमला करते हुए कहा कि लोकतंत्र खत्म हो चुका है। दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल कह रहे कि लखीमपुर में किसानों को नहीं कुचला गया बल्कि पूरी व्यवस्था को कुचला गया है। जबकि भाजपा का आरोप है कि लखीमपुर खीरी में हुई हिंसा को लेकर राहुल गांधी भ्रम फैलाने की कोशिश कर रहे हैं और उनका गैर जिम्मेदाराना रवैया हिंसा को भड़काने का काम कर रहा है।

रविवार को प्रदेश के उपमुख्यमंत्री केशव प्रसाद मौर्य की लखीमपुर खीरी यात्रा के विरोध में प्रदर्शन ने उस समय गंभीर रूप ले लिया था, जब चार किसानों की काफिले का हिस्सा रही गाड़ियों से कुचले जाने से मौत हो गई और कई घायल हो गए। इसके बाद उत्तेजित भीड़ ने चार लोगों को पीट-पीट कर मार डाला। घटना में एक पत्रकार की भी मौत हुई। इस मामले में केंद्रीय मंत्री और उनके बेटे की भूमिका सवालों के घेरे में आ गई। विपक्ष ने केंद्रीय मंत्री अजय मिश्रा के इस्तीफे की मांग की।

शुरूआत से ही मुख्यमंत्री ने मामले की बागडोर खुद थामकर राजनीति करने की गुंजाइश पर विराम लगाने की कोशिश की। दरअसल, योगी सरकार आसन्न विधानसभा चुनाव के मद्देनजर बड़े आंदोलन को न पनपने देने के लिए कमर कस चुकी थी। सोमवार दोपहर होते-होते किसानों की मांगों को मान लिया गया और आक्रोशित किसानों को अपने राजनैतिक कौशल से उन्होंने शांत कर दिया। लेकिन घटना के दो दिन बाद भी विपक्ष के नेताओं को जिस तरह रोकने की कोशिश में योगी सरकार लगी रही, उससे यही नजर आ रहा था कि लखीमपुर का मामला अभी संभला नहीं है, बल्कि अब बात आगे बढ़ने को तैयार है।

अंत में बुधवार को विपक्षी नेताओं को लखीमपुर जाने की इज़ाज़त दे दी गई। अब छत्तीसगढ़ और पंजाब की सरकार ने मृत किसानों के परिजनों को 50-50 लाख देने की घोषणा की है। दरअसल शुरूआत में विरोध प्रदर्शनों से समझदारी से निपटा जाता तो घटना को टाला जा सकता था। देश में असंतोष और हताशा अब महामारी के अनुपात में है। राजनेताओं को इन समस्याओं का समाधान करना चाहिए। क्योंकि कोई भी सरकार मजदूरों और किसानों की उपेक्षा नहीं कर सकती। ऐसी घटनाओं को राजनीतिक अवसर के रूप में देखना दुखद व दुर्भाग्यपूर्ण है।