पितृपक्ष प्रारंभ, अपने पूर्वजों के नाम पर रोपे पौधे, जानें इसका महत्व

रायबरेली। हिंदू धर्म में पितरों की आत्मिक शांति के लिए पिंडदान का विधान है। ऐसा माना जाता है कि पितृपक्ष में यमराज पूर्वजों की आत्माओं को भी मुक्त करते हैं, ताकि वे पृथ्वी पर अपने वंशजों के बीच कुछ समय व्यतीत कर सकें। आज शनिवार से पितृपक्ष प्रारंभ हो गया है। अश्विनमास पक्ष के 15 …

रायबरेली। हिंदू धर्म में पितरों की आत्मिक शांति के लिए पिंडदान का विधान है। ऐसा माना जाता है कि पितृपक्ष में यमराज पूर्वजों की आत्माओं को भी मुक्त करते हैं, ताकि वे पृथ्वी पर अपने वंशजों के बीच कुछ समय व्यतीत कर सकें।

आज शनिवार से पितृपक्ष प्रारंभ हो गया है। अश्विनमास पक्ष के 15 दिन, पितरों को समर्पित होते हैं, जो 25 सितंबर 2022 को सर्वपितृ अमावस्या के साथ पितृपक्ष समाप्त होंगे। इस दौरान पूर्वजों के निमित्त तर्पण ,श्राद्ध ,पिंडदान, त्रिपिंडी श्राद्ध, नारायण बलि, दुर्घटना, आकस्मिक मृत्यु शांति पाठ आदि किया जाता है।

गोकना गंगा घाट के वरिष्ठ पुजारी जितेंद्र द्विवेदी बताते हैं कि मान्यतानुसार पितृपक्ष में पितर धरती लोक पर आते हैं ।ऐसे में उनकी आत्मा की शांति के लिए श्राद्ध कर्म करने से वह बहुत प्रसन्न होते हैं, और परिवार को आशीर्वाद स्वरूप सुख, शांति प्रदान करते हैं। गरुड़ पुराण में मृत्यु के बाद पिंडदान का विशेष महत्व बताया गया है। पिंडदान किसी पवित्र स्थल नदी पर किया जा सकता है। पिंडदान करने से 108 परिवारों और 7 पीढ़ियों का उद्धार होता है।

जो लोग आर्थिक अभाव या अन्य किसी कारण से तेरहवीं आदि नहीं कर पाते उनके लिए भी यह पक्ष विशेष होता है। पुजारी बताते हैं कि पित्र पक्ष में अपने पितरों के नाम वृक्ष लगाएं, मंदिर धर्मशाला बनवाएं या बनने वाले मंदिरों, धर्मशालाओ में सहयोग कर अपने पूर्वजों के नाम सिलापट में अंकित करवाने से यादगार बनी रहती है। पित्र पक्ष में विशेष रुप से सुपात्र ब्राह्मण को भोजन, वस्त्र आदि का दान करना चाहिए, गौ भोज ,कौवा भोज, कुत्ता भोज, चींटी भोज, गरीबो, असहायो की मदद अपने पितरों की स्मृति में करनी चाहिए।

मृत्यु तिथि का है महत्व

पंडित जितेंद्र द्विवेदी ने बताया कि जिस दिन आपके पूर्वज की अंतिम मृत्यु हुई है ।उसी तिथि को विशेष रुप से पिंड दान ,भोज, दान आदि विशेष रुप से करना चाहिए।

ऐसे करें श्राद्ध

श्राद्ध करता एक धोती, एक अंगोछा, काला तिल, जौ ,अक्षत, पुष्प ,पुष्पमाला, दूध दही ,घी ,शहद ,शक्कर ,चंदन कच्चा सूत, ऊन, धूप ,दीप, माचिस, इत्र, सुगंधित तेल, हल्दी, सिंदूर ,रोली, तृप्ता एवं दोनिया हेतु छीयुल या महुआ के पत्ते,कुशा, पान, सुपारी, लौंग ,इलायची ,ऋतु फल, भोग हेतु मिठाई, एक थाली ,एक लोटा, तथा ब्राह्मण हेतु दक्षिणा, वस्त्र आदि पूजन सामग्री होनी चाहिए। इन सामग्री के साथ नदी तट पर पुरोहित से विधिवत श्राद्ध कर्म करवाना श्रेयष्कर है।

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