बरेली: ये कैसा मदर्स डे? मां का आंचल ही छिन गया

रजनेश सक्सेना, बरेली। रविवार को मातृ दिवस था। लोगों ने अपनी माताओं के साथ इस दिन को बड़े ही उत्साह के साथ मनाया। कहीं केक काटे गए तो कहीं सोशल मीडिया पर प्यार जताया। लेकिन उन लोगों का क्या जिनकी माताओं को इस बार कोरोना संक्रमण निगल गया। उनकी वो गोद छिन गई जिसमें वे …

रजनेश सक्सेना, बरेली। रविवार को मातृ दिवस था। लोगों ने अपनी माताओं के साथ इस दिन को बड़े ही उत्साह के साथ मनाया। कहीं केक काटे गए तो कहीं सोशल मीडिया पर प्यार जताया। लेकिन उन लोगों का क्या जिनकी माताओं को इस बार कोरोना संक्रमण निगल गया। उनकी वो गोद छिन गई जिसमें वे कभी प्यार से अपना सिर रखकर सोया करते थे।

आज जिन छोटे-छोटे मासूमों के लिए अभी तक पूरी दुनिया मां हुआ करती थीं। उन्हें अब यह कहकर समझया जा रहा है कि बेटा तुम्हारी मां स्कूल गई हैं, लौटकर वह तुम्हारे पास आ जायेगी। शायद जब तक उन्हें यह हकीकत पता चलेगी वे बड़े हो चुके होगें। चलिए हम आपको कुछ ऐसे ही लोगों के बारे में बताते हैं जिनकी मां इस बार कोरोना संक्रमण की वजह से उनके साथ नहीं हैं। उन्हें यह मातृ दिवस कैसा लग रहा है।

केस नंबर 1

ढाई वर्ष की बेटी को झूठ बोलकर पड़ रहा समझाना
प्राथमिक स्कूल बेहटा बुर्जग में शिक्षामित्र के पद पर तैनात प्रीता देवी का हाल ही में कोरोना संक्रमण की वजह निधन हुआ है। उनके दो बच्चे हैं, पहला बेटा वीरू जो छह वर्ष का है और दूसरी बेटी दिव्या जो अभी महज ढाई वर्ष की ही है। दिव्या को तो सही से अभी यह भी नहीं पता कि उसकी मां की मौत हो चुकी है। परिवार वाले उसे यह कहकर समझा रहे हैं कि बेटा मां स्कूल में पढ़ाने के लिए गई है।

लौटकर आने पर वह उनसे मिलेगी। प्रीता देवी के पति गिरीश ने बताया कि वह खुद संक्रमित हो चुके हैं। इसलिए दोनों बच्चों को उनकी बुआ के घर छोड़ दिया है। गिरीश खुद भी एक निजी स्कूल में शिक्षक के पद पर तैनात हैं। लेकिन संक्रमण की वजह से इन दिनों वह ड्यूटी नहीं कर पा रहे हैं।

केस नंबर 2

मातृ दिवस पर एकत्र की मां की अस्थियां (162, बेटे के साथ में मृतक मां)
क्यारा ब्लॉक के गांव उमरिया के रहने वाले सूरज मौर्या की मां की मौत मातृ दिवस से एक दिन पहले ही इलाज के दौरान हो गई। मां की अचानक हुई इस मौत से सूरज टूट चुके हैं। उनका कहना था कि इस बार उनके लिए मातृ दिवस के क्या मायने हैं। जिस दिन को मां के साथ सैलिब्रेट करना था। उसकी जगह उनकी अस्थियों को समेट रहे हैं। जिस दिन खुशियां मनानी चाहिए वो दिन आज तड़प में बीत रहा है। मां के आंचल की छांव उनका दुलार, प्यार, मार और उनकी वो समझदारी भरी बातें छिन जाने के बाद कैसा महसूस होता है यह उनसे बेहतर और कौन समझेगा।

केस नंबर 3

बड़े कितने भी हो गए, मगर बीमारी में मां की गोद ही चाहिए थी
कहते हैं कि मां की गोद में सिर रखते ही आधी बीमारी दूर हो जाती है। बरेली महानगर के रहने वाले विवेक सक्सेना का भी यही आलाम था। बीमार होने पर वह जब तक अपनी मां की गोद में सर रखकर नहीं सोते थे। बीमारी दूर नहीं होती। लेकिन इस मातृ दिवस पर जो कमी उन्हें अब खल रही है वो असहनीय है। विवेक का कहना है कि इस मातृ दिवस पर वह उन्हें एक उपाहर भेंट करने वाले थे। उन्हें क्या पता था कि इस बार मातृ दिवस पर उनके साथ मां ही नहीं होगी।

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