बरेली: जब बरेली के वीर सपूतों ने किए पाकिस्तान सेना के दांत खट्टे

बरेली, अमृत विचार। 22 साल पहले कारगिल की पहाड़ियों पर अदम्य साहस और पराक्रम से दुश्मन देश को धूल चटाने की यादें आज भी कारगिल विजेताओं में स्फूर्ति पैदा कर देती हैं। विजय गाथा में बस वही पल भारी पड़ता है, जब जंग में शहीद हुए वीर साथियों की स्मृतियां उभर आती हैं। कारगिल विजय …
बरेली, अमृत विचार। 22 साल पहले कारगिल की पहाड़ियों पर अदम्य साहस और पराक्रम से दुश्मन देश को धूल चटाने की यादें आज भी कारगिल विजेताओं में स्फूर्ति पैदा कर देती हैं। विजय गाथा में बस वही पल भारी पड़ता है, जब जंग में शहीद हुए वीर साथियों की स्मृतियां उभर आती हैं। कारगिल विजय युद्ध के नाम पर जाट रेजिमेंट सेंटर के सेवानिवृत्त ऑनेररी कैप्टन बच्चू सिंह का सीना चौड़ा हो जाता है लेकिन ये बताते हुए बच्चू सिंह भावुक भी हो जाते हैं कि उनके 60 वीर जवानों की पलटन में 47 वीर साथियों ने मातृभूमि की रक्षा के लिए अपने प्राण न्यौछावर कर दिए। 22वें कारगिल विजय दिवस के अवसर पर युद्ध में शामिल बरेली के वीर सपूतों ने अमृत विचार से कारगिल युद्ध की अपनी यादें साझा की।
80 घंटे तक लगातार काम कर बनाया भारतीय सेना का रास्ता
करगैना निवासी सेवानिवृत्त प्रथमेश गुप्ता ने बताया कि कारगिल युद्ध के दौरान वह इंजीनियर कोर में तैनात थे। कारगिल युद्ध का बिगुल बजते ही उनकी यूनिट को कारगिल चढ़ाई के लिए भेज दिया गया जहां उन्हें पहाड़ी पर सेना के लिए रास्ता निर्माण करना था। जिसके लिए उनकी यूनिट ने 80 घंटे लगातार काम कर सेना के लिए रास्ता बनाया। 25 जुलाई को सीजफायर का आदेश मिलते ही भारतीय सेना की ओर से विजय पताका लहराई गई।
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साथियों की शहीदी आज भी भिगो देती है आंखें
नकटिया निवासी जाट रेजिमेंट सेंटर के सेवानिवृत्त ऑनेरेरी कैप्टन बच्चू सिंह को 17 जाट की सिंपल थ्री यूनिट से युद्ध में भेजा गया था। युद्ध की यादें साझा करते हुए उन्होंने बताया कि वह युद्ध के दौरान फ्रंटलाइन में तैनात थे। उनकी पलटन में कुल 60 जवान थे। युद्ध में 47 साथी शहीद हो गए। शेष 13 साथियों में वे भी शामिल थे। उन्होंने बताया कि युद्ध में विजेता कहलाने पर सीना गर्व से चौड़ा होता है, लेकिन परिवार से भी अधिक प्यारे साथियों की शहीदी की याद आज भी आंखें भिगो देती है।
पहाड़ पर बोफोर्स व राकेट लांचर सफल न होने पर दागे मोर्टार
लक्ष्मीनगर निवासी सेवानिवृत्त ऑनरेरी कैप्टन आर के गिरि को कारगिल युद्ध के दौरान ऑडिनेस पोस्ट को संभालने की जिम्मेदारी मिली थी। युद्ध की अपनी यादों को साझा करते हुए आरके गिरि ने बताया कि कारगिल पहाड़ी क्षेत्र में होने की वजह से बोफोर्स और राकेट लांचर सफल नहीं थे क्योकि फायरिंग में इन हथियारों की क्षमता कम हो जाती थी। ऐसे में हल्की और कम लंबाई वाली मोर्टार ही सफल सबित हो रही थी। पहले मोर्टार का उपयोग नहीं करने की योजना अधिकारियों की ओर से बनाई गई थी लेकिन आपातकालीन ट्रायल के दौरान सफल होने पर इसे युद्ध के दौरान शामिल किया गया। आरके गिरि की बटालियन में ड्राइवर गनर और ऑपरेटर समेत अन्य साथी शहीद हुए थे।
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फ्रंटलाइन पर जवानों का आत्मबल था अदम्य
पीलीभीत बाईपास निवासी सेवानिवृत्त एसबी दीक्षित कारगिल युद्ध में 6 माउंटेन हेवी बटालियन 71 बिग्रेड एंडवांस में तैनात थे। उन्हें लुकाड लाइन के पास आर्डिनेंस के रखरखाव और पोस्ट तक पहुंचाने की जिम्मेदारी मिली थी। उन्होंने बताया कि युद्ध में दिन भर फायरिंग होती थी। ऐसे में रात के अंधेरे में छिपकर आर्डिनेंस समेत अन्य सामग्री पहुंचाई जाती थीं। उन्होंने बताया कि कारगिल पर विजय आसान नहीं थी लेकिन फ्रंटलाइन पर तैनात सिपाही के अदम्य साहस व आत्मबल से यह संभव हुआ।
रात भर चली फायरिंग के बाद बनाया हेलीपेड व शेल्टर
आंवला तहसील के भरताना गांव निवासी नेतराम पाल ने बताया कि युद्ध के दौरान उनकी 270 इंजीनियर रेजिमेंट नगरोटा में तैनात थी। कारगिल युद्ध की शुरुआत के बाद उनकी यूनिट को नगरोटा से करगिल के लिए भेजा गया। रास्ते में पहाड़ी के उपर से फायरिंग हो रही थी। हमको कारगिल में फौज के लिए हेलीपैड व शेल्टर बनाने की जिम्मेदारी दी गई थी लेकिन पाकिस्तान की ओर से रास्ते में अवरोध होने के चलते उनकी यूनिट ने रातभर फायरिंग के बीच ही हेलीपेड व शेल्टर बनाए, जिसके बाद भारतीय सेना ने दुश्मन के दांत खट्टे किए।
पत्नी के गुजरने के बाद भी भारत माता को दी प्राथमिकता
लाल फाटक निवासी सेवानिवृत्त सूबेदार जगदीश यादव कारगिल युद्ध के समय 944 लाइट एडी रेजिमेंट में तैनात थे। सूचना मिली थी कि पत्नी का देहांत हो गया। जिसके बाद वे गांव आए हुए थे। अचानक हेडक्वार्ट्स से टेलीग्राम मिला कि जल्द चंडीगढ़ रिपोर्ट करो। जिसके बाद हमको बिना कुछ बताए ही चंडीगढ़ से हवाई जहाज के माध्यम से लेह और फिर कारगिल ले जाया गया जहां हमें एयरपोर्ट डिफेंस की जिम्मेदारी दी गई। उन्होंने बताया कि पाकिस्तान की ओर से लगातार तोप के गोले चंद कदम की दूरी पर गिरते हुए मौत की आहट देते थे, लेकिन आत्मबल व पलटन की बहादुरी के चलते हमने अपना टास्क पूरा किया।
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