बघेल पर होगी यूपी में मतदाता सूची दुरुस्त करने की जिम्मेदारी

बघेल पर होगी यूपी में मतदाता सूची दुरुस्त करने की जिम्मेदारी

संजय सिंह, नई दिल्ली, अमृत विचार। केंद्रीय विधि राज्यमंत्री के तौर पर एसपी सिंह बघेल की नियुक्ति उत्तरप्रदेश में जातीय राजनीतिक समीकरण साधने के साथ यहां “साझा मतदाता सूची” लागू करने तथा लोकसभा व विधानसभाओं के चुनाव एक साथ करवाने के मोदी सरकार के एजेंडे के तहत हुई है। इसके अलावा उनकी नई हैसियत का …

संजय सिंह, नई दिल्ली, अमृत विचार। केंद्रीय विधि राज्यमंत्री के तौर पर एसपी सिंह बघेल की नियुक्ति उत्तरप्रदेश में जातीय राजनीतिक समीकरण साधने के साथ यहां “साझा मतदाता सूची” लागू करने तथा लोकसभा व विधानसभाओं के चुनाव एक साथ करवाने के मोदी सरकार के एजेंडे के तहत हुई है। इसके अलावा उनकी नई हैसियत का फायदा भाजपा को पश्चिमी उत्तर प्रदेश के लोगों में हाईकोर्ट की बेंच की नई उम्मीदें जगा कर भी मिलेगा।

आगरा के एसपी सिंह बघेल को कानून मंत्रालय की जिम्मेदारी दिया जाना मोदी सरकार की दूरगामी रणनीति का परिणाम है। दरअसल, उत्तरप्रदेश में विधानसभा चुनावों से पहले पंचायत चुनावों में जिस तरह भारतीय जनता पार्टी को हार का सामना करना पड़ा, उससे मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की जिस तरह किरकिरी हुई उससे केंद्र सरकार और भाजपा इस निष्कर्ष पर पहुंची है कि हो न हो इसमें पृथक मतदाता सूची का हाथ है जिसमें समाजवादी सरकार के समय व्यापक छेड़छाड़ की गई थी।

उत्तर प्रदेश का नाम देश के देश के उन 9 राज्यों में शामिल है जहां पंचायत और स्थानीय निकाय चुनावों में चुनाव आयोग की मतदाता सूची के बजाय प्रदेश की अपनी मतदाता सूची का प्रयोग किया जाता है। भाजपा, केंद्र और योगी सरकार को यकीन है कि पिछली सरकार के वक्त मतदाता सूची में हजारों बोगस मतदाताओं के नाम जोड़े गए। इसलिए भाजपा के भविष्य के लिए इन गड़बड़ियों को दुरुस्त किया जाना आवश्यक है।

ये काम उत्तर प्रदेश समेत सभी भाजपा शासित राज्यों में साझा मतदाता सूची लागू किए बिना संभव नहीं है। ताकि लोकसभा व विधानसभा की तरह पंचायत व स्थानीय निकाय चुनाव भी चुनाव आयोग की मतदाता सूची से कराए जा सकें। चूंकि चुनाव आयोग कानून मंत्रालय के प्रशासनिक नियंत्रण में आता है, लिहाजा बघेल इस काम को बखूबी अंजाम दे सकते हैं।

उत्तर प्रदेश के अलावा जिन अन्य राज्यों में पंचायत व स्थानीय निकाय चुनावों के लिए साझा मतदाता सूची को लागू किया जाना है, उनमें कुछ को छोड़ ज्यादातर भाजपा शासित हैं। इनमें भाजपा शासित उत्तराखंड, मध्य प्रदेश और असम के अलावा फिलहाल केंद्र द्वारा शासित जम्मू एवं कश्मीर का नाम शामिल है। उत्तर प्रदेश के अलावा उत्तराखंड में भी शीघ्र ही विधानसभा चुनाव होने हैं। जबकि जम्मू एवं कश्मीर में परिसीमन के बाद चुनाव की चर्चा है।

राज्यों में चुनाव आयोग की साझा सूची लागू करने का सुझाव जस्टिस एमएन वेंकटचलैया आयोग ने 2002 में दिया था। जबकि चुनाव आयोग ने इस बाबत 1999 तथा 2004 में केन्द्र सरकार को पत्र लिखे थे। इसके अलावा 2015 में विधि आयोग ने भी इसकी हिमायत की थी। इन सिफारिशों में कहा गया था कि सभी राज्यों में लोकसभा व विधानसभा के चुनाव चुनाव आयोग की मतदाता सूची से होते हैं।

ज्यादातर राज्य पंचायत व स्थानीय निकाय चुनाव भी चुनाव आयोग की सूची से ही करवाते हैं। लेकिन कुछ राज्य पंचायत चुनावों में राज्य निर्वाचन आयोग द्वारा तैयार अपनी सूची इस्तेमाल करते हैं। इससे मतदाताओं में भ्रम पैदा होता है। क्योंकि अनेक मतदाताओं का चुनाव आयोग की सूची में नाम न होने के बावजूद राज्य की मतदाता सूची में नाम होता है। इसके अलावा दो तरह की मतदाता सूचियों पर व्यर्थ में दोहरा श्रम, समय और धन खर्च करना पड़ता है।

सभी राज्यों में साझा मतदाता सूची लागू करना तथा लोकसभा व विधानसभाओं के चुनाव एक साथ कराना भाजपा के 2019 के घोषणापत्र का हिस्सा है। इसके लिए प्रधानमंत्री मोदी पिछले साल एक बैठक भी कर चुके हैं। जिसमें इस काम के लिए संविधान संशोधन की संभावनाओं पर भी चर्चा हुई थी।

पश्चिमी उप्र में हाईकोर्ट की बेंच
पश्चिमी उत्तर प्रदेश के लोग लंबे अरसे से इलाहाबाद हाईकोर्ट की आगरा अथवा मेरठ में हाईकोर्ट की बेंच स्थापित किए जाने की मांग कर रहे हैं। वादे बहुत हुए, लेकिन किसी भी सरकार ने इस दिशा में गंभीरता से काम नहीं किया। चूंकि किसान आंदोलन के कारण इस बार पश्चिमी उत्तर प्रदेश में भाजपा के लिए चुनाव में बड़ी चुनौती है। लिहाजा बघेल को कानून मंत्रालय में लाकर सरकार व भाजपा पश्चिमी उत्तर प्रदेश के लोगों में पीठ के प्रति नई उम्मीद बंधाना चाहती है।