हल्द्वानी: कदम-कदम पर मिली पराजय को पार कर बने ‘अजय’

अंकुर शर्मा, हल्द्वानी। जैसे कयास थे, वैसा ही हुआ। सांसद अजय भट्ट को देर से ही सही ‘दिल्ली दरबार’ में जगह मिल गई है। राजनीतिक जानकार इसे उत्तराखंड में हाल ही में हुई सियासी उठापटक में डैमेज कंट्रोल करने का ‘पुरस्कार’ बता रहे है। वहीं भाजपा के दिग्गज सच्चे सिपाही के संघर्ष, मेहनत, धैर्य का …
अंकुर शर्मा, हल्द्वानी। जैसे कयास थे, वैसा ही हुआ। सांसद अजय भट्ट को देर से ही सही ‘दिल्ली दरबार’ में जगह मिल गई है। राजनीतिक जानकार इसे उत्तराखंड में हाल ही में हुई सियासी उठापटक में डैमेज कंट्रोल करने का ‘पुरस्कार’ बता रहे है। वहीं भाजपा के दिग्गज सच्चे सिपाही के संघर्ष, मेहनत, धैर्य का ‘फल’ बता रहे हैं जो भी हो भट्ट का केंद्र व उत्तराखंड की सियासत में कद बढ़ गया है। इसी के साथ भाजपा ने भी मिशन-2022 की तैयारियां शुरू कर दी हैं।
बुधवार को पीएम मोदी की कैबिनेट में हुई फेरबदल में कुमाऊं में नैनीताल-ऊधम सिंह नगर के सांसद अजय भट्ट को जगह मिली है। 2017 के विस चुनाव में अजय भट्ट रानीखेत से विधान सभा चुनाव हार गए थे हालांकि तब वह प्रदेशाध्यक्ष थे। वह हार चुके थे लेकिन भाजपा सत्ता में आ चुकी थी। तब कयास लगाए जा रहे थे अजय भट्ट अब संगठन की राजनीति में बढ़ेंगे। उन्हें चुनाव हारने के बाद भी प्रदेशाध्यक्ष के पद से नहीं हटाया गया था। तब यह कयास और मजबूत हो गया था। इधर, मोदी सरकार का पहला कार्यकाल पूरा होने को था और 2019 के लोस चुनाव की तैयारियां जोर शोर से चल रही थी।
नैनीताल लोस सीट से भगत सिंह कोश्यारी समेत तमाम दिग्गजों के नाम चर्चाओं में थे। तभी ऐसा नाम जो दूर-दूर तक चर्चाओं में नहीं था अजय भट्ट का, भाजपा हाईकमान ने उन्हें लोस उम्मीदवार बना दिया। सभी को चौंकाते हुए भट्ट ने बहुत शानदार प्रदर्शन किया और सबसे मजबूत प्रतिद्वंद्वी व पूर्व मुख्यंत्री हरीश रावत को परास्त किया। भट्ट ने रावत के खिलाफ पूरे उत्तराखंड में रिकार्ड जीत दर्ज की। उम्मीद थी कि उन्हें मोदी कैबिनेट में जगह मिल सकती है लेकिन ऐसा नहीं हुआ। कांग्रेस के सियासी चेहरे को हराने के बाद भी मोदी कैबिनेट में जगह नहीं मिलने पर वह निराश नहीं हुए बल्कि दोगुने उत्साह से पार्टी के कामों में लग गए। जब-जब पार्टी पर संकट आया तो वह संकट मोचक की भूमिका में नजर आए। जब पूर्व मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत को हटाया गया था तो उनका नाम भी मुख्यमंत्री की रेस में था। इसी तरह जब तीरथ सिंह रावत को हटाया गया तो उनके नाम पर भी चर्चा हुई थी।
लेकिन मुखिया नहीं मिलने पर वह नाराज नहीं हुए। जब पुष्कर सिंह धामी को राज्य की कमान सौंपी गई तो कई दिग्गज मंत्री व विधायक नाराज हो गए। इनको मनाने का जिम्मा भाजपा हाईकमान ने अजय भट्ट को सौंपा था। हाईकमान ने भट्ट पर भरोसा जताया था और भट्ट इस भरोसे पर खरे उतरे। उन्होंने बिना किसी ‘डैमेज’ के ‘कंट्रोल’ किया। तभी से उम्मीद थी कि तीरथ रावत और भट्ट को जगह मिल सकती है। भाजपा हाईकमान ने भट्ट तवज्जो देते हुए केंद्रीय राज्य मंत्री बनाया है। इसी के साथ भाजपा हाईकमान ने 2022 के लिए अपने इरादे साफ कर दिए है। कुमाऊं में भाजपा की किलेबंदी मजबूत होगी तो कांग्रेस के सियासी चेहरे हरीश रावत पर भी असर पड़ेगा। वहीं ब्राह्मण चेहरे निशंक को हटाकर दूसरे ब्राह्मण चेहरे को जगह दी गई है इससे राजनीतिक समीकरण भी नहीं बिगड़ रही है।
जब अजय जीते तो भाजपा हारी, भट्ट हारे तो भाजपा जीती
केंद्रीय राज्य मंत्री बनाए गए अजय भट्ट की भाजपा के साथ अजीबो गरीब समीकरण है। वह जब-जब चुनाव जीतते हैं भाजपा सत्ता में नहीं आ पाती है। जब वह चुनाव हारते हैं तो भाजपा बहुमत में आकर सत्ता बनाती है। 2017 के विस चुनाव में वह रानीखेत से हार गए लेकिन भाजपा बहुमत में आई। 2012 में वह चुनाव जीते थे लेकिन तब भाजपा की सरकार नहीं बन सकी थी । तब उनहें नेता प्रतिपक्ष बनाया गया था। 2007 में भी वह चुनाव हारे थे और भाजपा की सरकार बनी थी। 2002 में राज्य गठन के बाद पहली बार चुनाव हुआ तो वह जीते थे लेकिन सत्ता में कांग्रेस आई थी। हालांकि लोस चुनाव-2019 में यह समीकरण बदल गई। वह और भाजपा दोनों को जीत मिली।