बरेली: वो भूली दास्तां, लो फिर याद आ गई…
बरेली, अमृत विचार। वो भूली दास्तां, लो फिर याद आ गई…1961 में रिलीज हुई फिल्म संजोग में लता मंगेशकर ने इस गीत में अपनी आवाज दी थी। यह गीत शायद शुक्रवार को जिले में पहले कोरोना संक्रमित परिवार और उनका उपचार करने वाली चिकित्सा टीम को जरूर याद आया होगा। कोरोना महामारी को फैले पूरा …
बरेली, अमृत विचार। वो भूली दास्तां, लो फिर याद आ गई…1961 में रिलीज हुई फिल्म संजोग में लता मंगेशकर ने इस गीत में अपनी आवाज दी थी। यह गीत शायद शुक्रवार को जिले में पहले कोरोना संक्रमित परिवार और उनका उपचार करने वाली चिकित्सा टीम को जरूर याद आया होगा।
कोरोना महामारी को फैले पूरा एक साल हो गया है। लॉकडाउन का वो संकटकालीन दौर लोगों के जेहन में आज भी बरकरार है। इस वायरस ने ऐसी दहशत फैलाई कि लोगों को न चाहते हुए भी अपनों से अलग होना पड़ा। ठीक एक साल पहले आज ही के दिन बरेली में पहला कोरोना संक्रमित मरीज मिला था। वह दिल्ली की एक कंपनी में कार्य करता था। इसके बाद उसका पूरा परिवार संक्रमित हो गया था। उस वक्त को आज यह परिवार याद भी नहीं करना चाहता।
कोरोना ने कुछ समय के लिए ही सही परिवार की जिंदगी में ठहराव लगा दिया था, लेकिन आज एक साल बाद पूरा परिवार जिंदगी की पटरी पर न सिर्फ पहले की तरह दौड़ रहा है बल्कि खुशी से अपना जीवनयापन कर रहा है। इस दौरान परिवार उनका उपचार करने वाले चिकित्सक और स्वास्थ्यकर्मियों का आभार जताना नहीं भूलता।
कोरोना संक्रमण के बाद लगे लॉक डाउन से मजदूरों की मजदूरी छिन गई। लॉकडाउन और देश-प्रदेश से आ रही कोरोना की खबरों से शहरवासी दहशत में थे। ऐसे में दिल्ली एनसीआर की अग्निशमन यंत्र बनाने वाली कंपनी में कार्यरत सुभाषनगर निवासी महेश 26 मार्च को दिल्ली से वापस बरेली लौटे थे।
वह बताते हैं कि रात्रि को बुखार और खांसी की वजह से 27 मार्च की सुबह वह अस्पताल गए थे, जहां उनका कोरोना टेस्ट हुआ। बताया कि 28 मार्च को उन्हें संक्रमण की पुष्टि हुई थी। बताया कि रिपोर्ट न आने तक उसकी प्रतीक्षा की चिंता और पॉजिटिव रिपोर्ट आने के बाद ऐसा लगा मानो जिंदगी खत्म हो गई। बताया कि ऐसे में मेरे संपर्क में आने वाले परिवार के अन्य सदस्यों को भी स्वास्थ्य विभाग ने आइसोलेट किया और उनकी भी जांच कराई जिसमें परिवार के सभी सदस्य पॉजिटिव आए थे। इसके बाद पूरे मोहल्ले को कंटोनमेंट जोन बना दिया गया था। एकाएक हम लोगों से पूरा समाज डरने लगा। हम खुद भी दहशत में थे।
चिकित्सकों और स्वास्थ्य कर्मियों ने बढ़ाया हौसला
महेश बताते हैं कि उन्हें व उनके परिवार को जिला अस्पताल के कोरोना वार्ड में रखा गया था। शुरू में खाना आदि सामान जो भी देने आता था वह भी डरते हुए दूर से ही देकर चला जाता था। एक, दो दिन बाद हमारा उपचार कर रहे चिकित्सक डॉ. बागीश वैश्य ने हौसला बढ़ाया। उनकी और उनके सहयोगियों की वजह से हमको दोबारा जिंदगी मिल सकी।
प्रार्थना से मिली शांति
महेश बताते हैं कि सुबह व शाम को डा. वागीश वैश्य प्रार्थना करवाते थे। इससे बड़ी शांति मिलती थी। स्वस्थ होने में कई दिन लग गए। इस दौरान कई विपत्तियों से गुजरे। शहर की कोई सूचना नहीं आ रही थी। ऐसे में भगवान की प्रार्थना ने आत्मबल दिया।
वर्क फ्रॉम होम कर रहे महेश
महेश बताते हैं कि वह अब भी उसी कंपनी में कार्यरत हैं लेकिन अभी तक दिल्ली वापस लौटकर नहीं गए। बताया कि वह वर्क फ्रॉ होम के जरिए कंपनी के लिए कार्य कर रहे हैं। उनके पिता रेलवे में है, जो निरंतर नौकरी पर जा रहे हैं। वहीं छोटा भाई और बहन भी इस हादसे से उबर चुके हैं और उन्होंने अपनी पढ़ाई पर ध्यान देना शुरू कर दिया है।
सूनी हो गईं थीं सड़कें और गलियां
जिले में पहला संक्रमित युवक और उसके बाद पूरे परिवार के संक्रमित होने की खबर का ऐसा असर दिखा कि हर वक्त भीड़भाड़ व शोरगुल में डूबे रहने वाले क्षेत्र सुभाष नगर की सड़कों पर सन्नाटा पसर गया। कोरोना को हराने के लिए लोग घरों में कैद रहे तो क्षेत्र में पुलिस प्रशासन ने बेरीकेडिंग कर किसी को बाहर नहीं निकलने दिया। नगर निगम के कर्मचारियों ने निरंतर क्षेत्र में सेनेटाइज किया। चौराहों पर पुलिस फोर्स के अलावा कोई व्यक्ति नहीं निकला।
बीमारी की न कोई दवा और न ही कोई प्रशिक्षण, बस करना था उपचार
कोरोना संक्रमित मरीजों का उपचार करने वाले 300 बेड अस्पताल के सीएमएस डॉ.वागीश वैश्य बताते हैं कि कोरोना संक्रमण के खिलाफ सबसे बड़ी मुश्किल यह थी कि इसकी कोई दवा हमारे पास नहीं थी। बस बचाव ही एक हथियार था जिससे हम सुरक्षित रह सकते थे। बाहर से आ रही खबरें भी मरीजों का मनोबल तोड़ रही थीं। मल्टीविटामिन और प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाने वाली दवाएं देनी शुरू की जो कारगर सिद्ध हुईं।