Bareilly: सिर्फ चर्चा में एम्स...फाइल न स्वीकृति, नेताओ में श्रेय लेने की होड़

चर्चा सिर्फ चिट्ठीबाजी तक, कोई प्रारंभिक प्रस्ताव भी नहीं बना 

Bareilly: सिर्फ चर्चा में एम्स...फाइल न स्वीकृति, नेताओ में श्रेय लेने की होड़
प्रतीकात्मक फोटो

बरेली, अमृत विचार। इन दिनों बरेली में एम्स चर्चा में है। कुछ दिनों पहले आंवला सांसद नीरज मौर्य के इस संबंध में बयानों के बाद कैबिनेट मंत्री धर्मपाल सिंह ने भी प्रदेश सरकार से एम्स की मांग की। जनप्रतिनिधियों में एम्स का प्रस्ताव पहले देने की होड़ लगी है। आंवला तो कुछ बंद पड़ी रबर फैक्ट्री की भूमि पर एम्स की मांग कर रहे हैं। 

संसद और विधानसभा में यह मुद्दा उठ चुका है। जबकि बरेली में एम्स को लेकर दूर-दूर तक फाइलों में कुछ नहीं है। दिल्ली या लखनऊ स्तर से एम्स के संबंध में कोई सुगबुगाहट तक नहीं न ही प्रशासन से इस संबंध में कोई जानकारी मांगी गई है। दरअसल, बरेली में एम्स की स्थापना की मांग प्रदेश में भाजपा सरकार बनने के बाद से हो रही है। 2020 में शाहजहांपुर में जनसभा को संबोधित करने आए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को उस समय के आंवला सांसद धर्मेंद्र कश्यप ने एम्स की मांग का प्रस्ताव सौंपा था। इसके बाद 2021 में उन्होंने लखनऊ में मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ से मुलाकात कर एम्स के संबंध में मांगपत्र सौंपा। केंद्रीय मंत्री एवं सांसद रहते संतोष गंगवार ने एम्स की मजबूत पैरवी की थी। विधायक मीरगंज डाॅ. डीसी वर्मा रबर फैक्ट्री की भूमि पर एम्स की मांग सदन में रख चुके हैं।

भोजीपुरा विधायक रहते बहोरन लाल मौर्य और विधायक बिथरी चैनपुर रहते राजेश मिश्रा उर्फ पप्पू भरतौल भी एम्स की स्थापना की पैरवी कर चुके हैं। शहर विधायक एवं वनमंत्री डाॅ. अरुण कुमार एम्स के संबंध में मुख्यमंत्री को मांगपत्र सौंप चुके हैं। कुछ दिन पहले आंवला से सपा सांसद नीरज मौर्य ने संसद में एम्स की स्थापना की मांग उठाई, तब से फिर चर्चा में आ गया। नीरज मौर्य के बाद प्रदेश सरकार में कैबिनेट मंत्री आंवला विधायक धर्मपाल सिंह ने भी एम्स की पैरवी करते हुए मुख्यमंत्री को पत्र भेजा है। इतनी बड़ी संख्या में जनप्रतिनिधि एम्स की मांग सालों से कर रहे हैं लेकिन लखनऊ से लेकर दिल्ली तक एम्स के संबंध में एक कागज नहीं दौड़ा है।

तो टेक्सटाइल पार्क की तरह दिख रही एम्स की भी कहानी

जिस तरह से टेक्सटाइल पार्क और हथकरघा का बड़ा प्रोजेक्ट फाइनल होने के बाद बरेली की झोली से दूर हो गया, उसी तरह एम्स की भी कहानी दिख रही है। बरेली में एम्स या इसके जैसे अत्याधुनिक सुविधाओं से लैस अस्पताल की बेहद जरूरत भी है। कोई ऐसा सरकारी अस्पताल नहीं है जिसमें एम्स जैसी सुविधाएं हों। करीब 90 करोड़ की लागत से तीन सौ बेड अस्पताल बने कई साल बीत गए, लेकिन जनप्रतिनिधि मानव संसाधन तक की कमी को आज तक पूरा नहीं करा सके हैं।

प्रधानमंत्री और मुख्यमंत्री से मांग, पर प्रस्ताव का कहीं जिक्र नहीं
गंभीर बीमारियों और घायलों का इलाज कराने के लिए जिले के लोगों को लखनऊ और दिल्ली दौड़ना पड़ता है। बरेली से करीब 250 किलोमीटर दूर ले जाना मरीज की जान के लिए भी काफी जोखिम रहता है। आर्थिक परेशानी भी उठानी पड़ती है। इसलिए जनप्रतिनिधि एम्स की मांग कर रहे हैं। वादों और दावों में एम्स की जमकर चर्चा हो रही है। जनप्रतिनिधि अपने एम्स काे लेकर चिट्ठीबाजी कर रहे हैं, लेकिन प्रस्ताव का अता-पता कहीं नहीं है।

 

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