1978 में पति-पत्नी की हत्या कर दंगाईयों ने जला दिये थे शव, इंसाफ तो दूर...मुकदमा भी दर्ज नहीं हुआ

अमृत विचार खास : इंसाफ तो दूर, मुकदमा भी दर्ज नहीं हुआ, संभल सामान लेने आये थे पति पत्नी

1978 में पति-पत्नी की हत्या कर दंगाईयों ने जला दिये थे शव, इंसाफ तो दूर...मुकदमा भी दर्ज नहीं हुआ

संभल के ठिलूपुरा गांव में अपने पिता की फोटो दिखाते गुलाब सिंह,साथ में उनके भाई व अन्य परिजन 

भीष्म सिंह देवल,अमृत विचार। संभल में 1978 में हुए साम्प्रदायिक दंगे का दर्द कई परिवार आज भी महसूस करते हैं। संभल तहसील के गांव ठिलूपुरा के रहने वाले गुलाब सिंह दंगे का जिक्र आते ही भावुक हो जाते हैं। उन्होंने 1978 के दंगे में अपने माता पिता को खाया था। माता- पिता सामान खरीदने संभल गये थे। दंगा हुआ तो जान बचाने के लिए अन्य ग्रामीणों के साथ मुरारीलाल की फड में छिप गये। दंगाईयों ने  दोनोंं की हत्या कर लाशें जला दीं। जहां नरसंहार हुआ वहां से मां की चूड़ी और पिता का जूता मिला। इंसाफ की बात तो तब शुरु होती जबकि मुकदमा दर्ज किया जाता। पुलिस ने दंपती की हत्या का मुकदमा ही दर्ज नहीं किया। 

  • इंसाफ तो दूर, मुकदमा भी दर्ज नहीं हुआ, संभल सामान लेने आये थे पति पत्नी
  • नहीं मिली थी उनकी लाश, माता की चूड़ी और पिता का जूता मिला 
  • मुरारी लाल की फड़ में जिंदा जला दिए गए थे किशन लाल पाल और उनकी पत्नी नरेनिया
  • बेटे गुलाब सिंह की जुबानी,दंगे में माता पिता की बेरहमी से हत्या की दास्तान

अमृत विचार से खास बातचीत में 65 वर्षीय गुलाब सिंह ने 1978 के दंगे की वह दर्द भरी दास्तान सुनाई जिसमें उन्होंने अपने पिता किशन पाल व माता नरेनिया को खो दिया था। गुलाब सिंह ने बताया कि माता-पिता सामान खरीदने संभल गए थे। जब दंगा हुआ तो वह मुरारी लाल की फड़ में पहुंच गए। सोचा था कि यहां जान बच जाएगी। हमारे एक रिश्तेदार रुकनुद्दीन के भजन लाल मुरारीलाल की फड़ में ही नौकरी करते थे। उस समय वह खाना खाने अपने घर चले गए थे।  

दंगाई अचानक आये और फड़ का फाटक तोड़कर अंदर घुस गए। माता पिता  के हाथ पैर और गर्दन काट कर मिट्टी का तेल छिड़क कर आग लगा दी। वहां बहुत सारे अन्य लोग भी इसी तरह मारे व जलाये गये। हमारे माता-पिता की लाश नहीं मिली। जब वह कारखाने में पहुंचे थे 72 घंटे के बाद तब पता चला कि माता पिता को मार डाला गया है।माता जी की चूड़ी और पिताजी का जूता भजन लाल के हाथ आया।  72 घंटे के बाद 1 घंटे के लिए कर्फ्यू खुला।  दंगे के दौरान फड़ के अलावा  बाजार में भी दुकानें जलाई गईं, तोड़फोड़ की गई। गुलाब सिंह बोले कि  इन लोगों का जोर तो है ही वहां पर, इस वजह से दंगा हुआ। 

इंसाफ तो दूर, मुकदमा भी दर्ज नहीं किया
गुलाब सिंह ने बताया कि 1978 में उनकी उम्र 28 साल से कुछ ज्यादा थी। जब माता पिता की दगे में हत्या कर दी गई तो हिम्मत जुटाकर परिवार के लोगों के साथ संभल गये। कर्फ्यू में कुछ घंटों की ढ़ील हुई तो जाकर पुलिस व अफसरों को माता पिता की हत्या कर दिये जाने के बारे में बताया। उनका मुकदमा दर्ज नहीं किया गया। बस यह कहकर वापस भेज दिया गया कि हम सब देख रहे हैं,कार्रवाई कर रहे हैं। वह आज तक नहीं जान पाये कि उनके बेकसूर माता पिता की जान लेने वाले दरिंदे कौन थे। 

परिवार पर टूट पड़ा था दुखों का पहाड़
गुलाब सिंह ने बताया कि माता पिता की दंगे में हत्या कर दी गई तो परिवार पर बहुत बड़ी परेशानी आ खड़ी हुई।  हम 6 भाई थे। मेहनत मजदूरी करके किसी तरह गृहस्थी को पालकर यहां तक ले आये। कहा कि उस समय का मंजर याद कर अब भी डर लगता है।  दहशत बैठी हुई है सन 1978 के दंगे के बाद । गुलाब सिंह बोले कि सरकार 1978 के दंगे की फाइलें खुलवा रही है तो उम्मीद जागी है  कि अब इंसाफ मिलेगा। 

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