Bareilly: इस साल नहीं चलेंगे 105 ईंट भट्ठे, अधिकारी बोले- कोई मिला चालू तो होगी कार्रवाई

Bareilly: इस साल नहीं चलेंगे 105 ईंट भट्ठे, अधिकारी बोले- कोई मिला चालू तो होगी कार्रवाई

अनुपम सिंह, बरेली। जिले में सौ से ज्यादा ईंट भट्ठे प्रदूषण नियंत्रण विभाग के नियमों के फेर में फंस गए हैं। जिग जैग सिस्टम न होने के कारण कार्रवाई का खतरा देखते हुए इन ईंट भट्ठा मालिकों ने खनन विभाग को लिखकर दे दिया है कि वे इस वर्ष भट्ठे नहीं चलाएंगे। इसके बाद खनन विभाग ने सभी एसडीएम को अपनी तहसीलों में ईंट भट्ठों का सर्वे कराकर रिपोर्ट भेजने के लिए लिखा है।

जिले में कुल 370 ईंट भट्ठे हैं। ईंट उद्याेग में अक्टूबर से सितंबर का साल चलता है। हर साल लगभग दो लाख विनिमय शुल्क भट्ठा मालिकों से लिया जाता है। इस बार 220 ईंट भट्ठा मालिकों ने ही यह शुल्क जमा किया है। 105 भट्ठा मालिकों ने खनन विभाग को लिखकर दिया है कि उनके भट्ठे जिग जैग सिस्टम से लैस नहीं हैं। ऐसे में वे इस साल भट्ठों को नहीं चलाएंगे।

दरअसल, सरकार की ओर से ईंट भट्ठों पर जिग जैग सिस्टम की अनिवार्यता लागू कर दी गई है। जिले में काफी संख्या में पुराने भट्ठे हैं जो बगैर जिग जैग सिस्टम के चल रहे हैं। शासन के आदेश के बाद खनन विभाग ने इस बार गाइड लाइन जारी कर दी है कि जिग जैग सिस्टम के बिना भट्ठे नहीं चलने दिए जाएंगे। इसके बाद 105 भट्ठा मालिकों ने विनिमय शुल्क जमा करने से हाथ खींच लिए और खनन विभाग को लिखित दे दिया कि वे इस साल भट्ठे नहीं चलाएंगे।

इसके बाद खनन विभाग ने सभी एसडीएम को पत्र जारी कर अपने तहसील क्षेत्र के उन भट्ठों के बारे में रिपोर्ट मांगी है जो बगैर जिग जैग सिस्टम लगाए चलाए जा रहे हों। हालांकि अब तक जिले में इस तरह एक भी मामला पकड़ में नहीं आया है। खनन विभाग के अनुसार अभी 60-70 ईंट भट्ठों की ही रिपोर्ट आई है। बाकी भट्ठों की जांच रिपोर्ट आनी बाकी है।

जिग जैग चिमनियां उगलती हैं सफेद धुआं
प्रदूषण नियंत्रण विभाग के अनुसार जिग जैग सिस्टम वाले ईंट भट्ठे अंदर से टेढे़-मेढ़े बने होते हैं। शुरुआत में इनकी चिमनी से काला और फिर सफेद धुआं निकलता है। सफेद धुआं काले की तुलना में पर्यावरण और स्वास्थ्य के लिए कम खतरनाक होता है। सामान्य ईंट भट्ठों की चिमनी से निकलने वाला धुआं काला और जहरीला भी होता है। जिग-जैग ईंट-भट्ठों की चिमनी की ऊंचाई 125 फीट होती है, इससे चौड़ाई भी बढ़ जाती है। इस बदलाव से कम गैस का उत्सर्जन होता है, जहरीली गैस को स्टोर भी किया जा सकता है।

ईंट भट्ठा मालिकों को भी होता है फायदा
पुराने वाले ईंट भट्ठों में ईंट पकाने में 25-30 टन कोयला खर्च होता है। जिग जैग भट्ठों में 15-16 टन कोयला ही लगता है। कई और फायदे भी हैं। प्रदूषण कम होने के साथ ईंटों की गुणवत्ता भी बेहतर रहती है। इस तकनीक से बनने वाली ईंट को तैयार करने में लागत भी कम आती है।

जिन ईंट भट्ठों में जिग जैग वाली चिमनियां नहीं है, वे अगले वित्तीय वर्ष में नहीं चलेंगे। भट्ठा मालिकों ने इस बारे में लिखकर दे दिया है। अब सभी तहसीलों में इसकी जांच कराई जा रही है। अभी 40 से ज्यादा ईंट भट्ठों की रिपोर्ट की रिपोर्ट आना बाकी है। कोई भट्ठा चालू पाया गया तो कार्रवाई होगी- मनीष कुमार, जिला खनन अधिकारी।

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