स्वामी जितेंद्रानंद ने किया संघ प्रमुख का बचाव, कहा- देश फिलहाल गृह युद्ध झेलने की स्थिति में नहीं है
प्रयागराज। साधु संतों के संगठन ‘अखिल भारतीय संत समिति’ के राष्ट्रीय महामंत्री ने राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) प्रमुख मोहन भागवत के मंदिर-मस्जिद पर दिए गए बयान के बचाव में मंगलवार को कहा कि देश विकास की राह पर अग्रसर है और यह फिलहाल गृह युद्ध झेलने की स्थिति में नहीं है। संघ प्रमुख भागवत ने हाल में एक कार्यक्रम में कहा था कि कोई भी व्यक्ति मंदिर-मस्जिद मुद्दा उठाकर हिंदुओं का नेता नहीं बन जाएगा।
स्वामी जितेंद्रानंद सरस्वती ने एक न्यूज एजेंसी से बातचीत में कहा, ‘‘वर्ष 1984 में देश के तत्कालीन शीर्ष संतों और विश्व हिंदू परिषद (विहिप) ने मिल बैठकर अयोध्या, मथुरा और काशी में मंदिर का संकल्प लिया था। यह संकल्प तब पूरा माना जाता, जब सर्वसम्मति से अयोध्या का निर्णय होता। लेकिन अयोध्या मुद्दा उच्चतम न्यायालय के रास्ते से हल हुआ और मुसलमानों ने कोई दरियादिली नहीं दिखाई।’’
उन्होंने कहा, ‘‘सर संघचालक विश्व के सबसे बड़े हिंदू संगठन के मुखिया हैं। सनातन हिंदू धर्म में कई छोटे-बड़े संगठन काम करते हैं। भागवत जी के वक्तव्य को गंभीरता से लिया जाना चाहिए। धर्म और राष्ट्र के प्रश्न पर क्या हम और एक गृह युद्ध झेलने की स्थिति में हैं। क्या संविधान के दायरे में ये विषय हल नहीं हो सकते।’’
स्वामी जितेंद्रानंद सरस्वती ने कहा, ‘‘जब उच्चतम न्यायालय पूजास्थल अधिनियम के मुद्दे पर सुनवाई शुरू कर चुका है, वक्फ अधिनियम के मुद्दे पर जेपीसी (संयुक्त संसदीय समिति) विचार कर रहा है, तो ऐसे में हमें इंतजार करना चाहिए।’’ उन्होंने संभल में हुई हिंसा का जिक्र करते हुए कहा, ‘‘हमें परिस्थितियों को समझना होगा और यही बात सर संघचालक ने कही है। लोकतंत्र में असहमति का अधिकार पूज्य संत रामानंदाचार्य रामभद्राचार्य को भी है। जिस प्रकार सर संघचालक ने अपनी बात रखी, उसी प्रकार रामभद्राचार्य जी ने अपनी बात रखी।’’
अखिल भारतीय संत समिति के राष्ट्रीय महामंत्री ने कहा, ‘‘महाकुंभ का आयोजन होने वाला है, सब मिलेंगे... बैठेंगे विचार करेंगे और स्पष्ट सहमति का वातावरण बनाएंगे और आगे बढ़ेंगे। इस बात से देश में कोई सहमत नहीं होगा कि हम देश को दंगे की आग में झोंक दें। अभी देश विकास की राह पर तेजी से बढ़ रहा है। यह संत समिति का स्पष्ट मत है।’’ उन्होंने कहा, ‘‘संघ प्रमुख के विचार पर मंथन किया जाना चाहिए। इसे खारिज नहीं किया जा सकता। धार्मिक विषय, संवेदनशील विषय हैं और इस पर बोलने से पहले सभी को विचार करना चाहिए।’’
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