Prayagraj News : दुष्कर्म और अपहरण मामले में पीड़िता के खुद शामिल होने की संभावना पर आरोपियों को किया बरी

Prayagraj News  : दुष्कर्म और अपहरण मामले में पीड़िता के खुद शामिल होने की संभावना पर आरोपियों को किया बरी

अमृत विचार, प्रयागराज: इलाहाबाद हाईकोर्ट ने वर्ष 2004 में नाबालिग के अपहरण और दुष्कर्म मामले में सात आरोपियों को बरी करते हुए कहा कि पीड़िता के अपराध में स्वयं भागीदार होने की संभावना है। कार्यवाही के हर चरण में यानी जांच और मुकदमे में पीड़िता उन परिस्थितियों को उजागर करती रही है, जिनमें उसे अपीलकर्ताओं द्वारा अपहरण के अपराध में भाग लेने के लिए मजबूर किया गया था। इसके अलावा कोर्ट ने यह भी पाया कि घटना की तारीख पर पीड़िता को नाबालिग सिद्ध करने के लिए अभियोजन पक्ष के पास कोई ठोस आधार नहीं था।

कोर्ट ने पीड़िता पर आरोपियों के खिलाफ झूठा मामला गढ़ने का आरोप लगाया। अंत में कोर्ट ने निष्कर्ष निकाला कि पीड़िता का बयान ना तो विश्वसनीय है और ना ही रिकॉर्ड पर मौजूद मेडिकल साक्ष्यों द्वारा समर्थित हैं। अपीलकर्ताओं के खिलाफ प्राथमिकी दर्ज करने का उद्देश्य स्पष्ट रूप से पीड़िता द्वारा दिल्ली में उसके खिलाफ दर्ज अपहरण के अपराध में बचाव का आधार तैयार करना था। उक्त आदेश न्यायमूर्ति अश्विनी कुमार मिश्रा और न्यायमूर्ति डॉ. गौतम चौधरी की खंडपीठ ने पुलिस स्टेशन नेहतौर, बिजनौर में आईपीसी की विभिन्न धाराओं के तहत शाहजहां और अन्य की दोषसिद्धि और सजा के खिलाफ अपील को स्वीकार करते हुए पारित किया।

मामले के अनुसार पीड़िता के पिता ने जुलाई 2004 में अपनी 16 वर्षीय नाबालिग बेटी को मुख्य आरोपी द्वारा बहला-फुसलाकर भगा ले जाने की रिपोर्ट दर्ज कराई थी। इसके बाद पीड़िता को अगस्त 2004 में बरामद कर लिया गया। उसने अपने बयान में आरोपी व्यक्तियों द्वारा उसके साथ यौन उत्पीड़न और नाबालिग बच्चे के अपहरण में उसे शामिल करने के प्रयासों के बारे में बताया। अपीलकर्ताओं की ओर से तर्क दिया गया कि पीड़िता खुद ही आरोपी व्यक्तियों की संगति में शामिल हो गई थी, साथ ही प्राथमिकी दर्ज करने में 1 महीने से अधिक की देरी के बारे में भी कोई स्पष्टीकरण नहीं दिया गया। पीड़िता खुद नाबालिग बच्चों के अपहरण के मामले में फंसी हुई थी और उक्त आपराधिक मामले से बचने के लिए उसने मौजूदा मनगढ़ंत कहानी बनाई। इसके अलावा चिकित्सीय साक्ष्य यह सिद्ध करते हैं कि पीड़िता वयस्क थी और उसके साथ कोई जबरदस्ती नहीं की गई। सरकारी अधिवक्ता ने कोर्ट को बताया कि दिल्ली में पीड़िता के खिलाफ दर्ज की गई प्राथमिकी एक अलग अपराध का निर्माण करती है।

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