कासगंज: लोगों को बांसुरी की धुन से मुरीद बनाने वाले हबीब नहीं रहे...

हबीब की बांसुरी से निकलती थी रामकृष्ण के गीतों की धुन

कासगंज: लोगों को बांसुरी की धुन से मुरीद बनाने वाले हबीब नहीं रहे...

सोरों, अमृत विचार। तीर्थ नगरी सोरों के रहने वाले हबीब भले ही मुस्लिम समुदाय में जन्मे हों लेकिन वे सनातनी सभ्यता को बेहतर ढंग से मानते थे। उन्होंने अपने बैंड का नाम भी गंगा बैंड रखा था और सबसे अहम बात है कि उनकी बांसुरी की धुन से रामकृष्ण के गीतों की धुन निकलती थी। उन जैसा बांसुरी वादक और बांसुरी का साधक कासगंज जिले में ही तो क्या आसपास के जिलों में नहीं था। उन्हें बुलाने के लिए दूरदराज से आयोजक आते थे। अब वे इस दुनिया में नहीं रहे हैं तो लोगों में दुख है और उनकी यादें बातों में  सहेज रहे हैं।

मूल रूप से मोहल्ला योग मार्ग के रहने वाले मोहम्मद हबीब के पिता ने लगभग 100 साल पहले एक गंगा बैंड बनाया था। जिस बस्ती में वे रहते थे, वो गंगा से सटी हुई बस्ती है। ऐसे में उन्हें मां गंगा से बेहद प्रेम रहा। वैसे तो कासगंज में और भी तमाम बैंड हैं, लेकिन किसी भी बैंड में उन जैसा कलाकार नहीं है। कोई भी उनके जैसी बांसुरी नहीं बजा पाता। उनकी बांसुरी की धुन लोगों को मंत्र मुग्ध कर देती थी। जिस कार्यक्रम में भी वे जाते थे तो हर जगह उनकी बांसुरी की मांग उठती थी। जगह-जगह लोग बैंड रोककर उनकी बांसुरी की धुन सुनना चाहते थे। अब अपनी जिंदगी का सफर पूरा कर लिया है और सोमवार की रात उन्होंने अंतिम सांस ली है। उनकी मौत के बाद लोगों में दुख है। हबीब के बेटे चंदन खान ने बताया कि उनके पिता मशहूर बांसुरी वादक थे। उन्हें मुंबई, चंडीगढ़, दिल्ली सहित दूरदराज से बुलावा आता था। आज वे इस दुनिया में नहीं रहे हैं, इससे वह पूरी तरह टूट चुके हैं। 

50 साल में तय किया सोरों से कासगंज का सफर
बैंड 100 साल पहले बनाया गया था, लेकिन 50 साल तक यह बैंड सोरों में ही रहा, लेकिन कासगंज के लोगों की जब मांग उठी तो एक ब्रांच 50 साल पहले  कासगंज में भी खोल दी गई। इस तरह 50 साल में सोरों तक का सफर इस बैंड ने हबीब के माध्यम से तय किया।