Prayagraj News : लखनऊ पीठ के क्षेत्राधिकार में आने वाले मामलों से संबंधित स्थानांतरण आवेदन प्रधान पीठ में स्वीकार्य नहीं
अमृत विचार, प्रयागराज : इलाहाबाद हाईकोर्ट ने परिवार न्यायालयों में लंबित मामलों से संबंधित स्थानांतरण आवेदनों को मुख्य पीठ के समक्ष दाखिल करने पर आपत्ति जताते हुए कहा कि सीपीसी की धारा 23(1) के अनुसार जब अधिकार क्षेत्र वाली कई अदालतें एक ही अपीलीय अदालत के अधीन होती हैं तो कोई भी स्थानांतरण आवेदन सीपीसी की धारा 22 के तहत अपीलीय अदालत में किया जाना चाहिए।इसके अलावा धारा 23 (3) में कहा गया है कि जहां ऐसे न्यायालय विभिन्न उच्च न्यायालयों के अधीनस्थ हैं, वहां आवेदन उस उच्च न्यायालय में किया जाएगा, जिसके क्षेत्राधिकार की स्थानीय सीमाओं के भीतर वह न्यायालय स्थित है, जिसमें वाद लाया गया है।
कोर्ट ने इन प्रावधानों को स्पष्ट करते हुए उदाहरण दिया कि अगर गोंडा या बस्ती या सीतापुर या लखनऊ पीठ के अधिकार क्षेत्र की क्षेत्रीय सीमाओं के अंतर्गत आने वाले किसी अन्य जिले में स्थित पारिवारिक न्यायालय द्वारा कोई आदेश पारित किया जाता है, तो पारिवारिक न्यायालय अधिनियम, 1984 की धारा 19 के तहत अपील लखनऊ पीठ के समक्ष होगी, न कि इलाहाबाद में मुख्य पीठ के समक्ष। कोर्ट ने सुप्रीम कोर्ट के फैसले का हवाला देते हुए बताया कि जहां समान क्षेत्राधिकार वाली कई अदालतें एक अपीलीय अदालत के अधीनस्थ होती हैं, वहां अपीलीय अदालत में स्थानांतरण आवेदन किया जा सकता है और ऐसी अपीलीय अदालतें अपने अधीनस्थ एक अदालत से किसी मामले को अपने अधीनस्थ दूसरी अदालत में स्थानांतरित कर सकती है। उक्त आदेश न्यायमूर्ति क्षितिज शैलेंद्र की एकलपीठ ने शिविका उपाध्याय द्वारा दाखिल अपील को खारिज करते हुए पारित किया। अपील में हिंदू विवाह अधिनियम, 1955 की धारा 13(1)(ए) के तहत एक मामले को लखनऊ के पारिवारिक न्यायालय के प्रधान न्यायाधीश से बरेली के जिला न्यायाधीश को स्थानांतरित करने की मांग की गई थी। अपील को मुख्य पीठ के समक्ष दाखिल करने का तर्क दिया गया था कि चूंकि वाद का कारण मुख्य पीठ के अधिकार क्षेत्र की क्षेत्रीय सीमाओं यानी प्रयागराज के भीतर उत्पन्न हुआ है, इसलिए वाद मुख्य पीठ के समक्ष दाखिल किया गया है।
इस पर कोर्ट ने बताया कि लखनऊ पीठ के अधिकार क्षेत्र में आने वाले पारिवारिक न्यायालयों से संबंधित कई ऐसे स्थानांतरण आवेदन इलाहाबाद की मुख्य पीठ में दाखिल किए जाते हैं और अक्सर यह तर्क दिया जाता है कि "कार्रवाई का कारण" मुख्य पीठ की क्षेत्रीय सीमाओं के भीतर आता है। हालांकि कोर्ट ने यह भी कहा कि वैवाहिक मामलों में जब पक्षकारों की सुविधा के आधार पर स्थानांतरण की मांग की जाती है, तो पारिवारिक न्यायालय अधिनियम के साथ-साथ सीपीसी के प्रावधानों का संदर्भ लिया जाना चाहिए, जो स्पष्ट करता है कि कोई पारिवारिक न्यायालय जिन अपीलीय न्यायालयों के अंतर्गत आते हैं, वे उस फोरम का निर्धारण करेंगे, जहां ऐसे क्षेत्रों में लंबित कार्यवाही के कारण स्थानांतरण की मांग करने वाला आवेदन विचाराधीन है। अंत में कोर्ट ने मौजूदा स्थानांतरण आवेदन विचारणीय न मानते हुए खारिज कर दिया। हालांकि कोर्ट ने यह भी स्पष्ट किया कि अपीलकर्ता अपना स्थानांतरण आवेदन लखनऊ पीठ के समक्ष पुनः दाखिल कर सकता है।
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