Kanpur: पल्मोनरी फाइब्रोसिस ग्रस्त डॉक्टर के लिए स्टेम सेल बनी संजीवनी, डॉक्टरों ने बताया ऐसे करेगी काम...मरीज को मिलेगा आराम
कानपुर, अमृत विचार। इंग्लैंड के बर्मिंघम में प्रैक्टिस कर रहे डॉ.रवि मोहन सिंह महामारी के दौरान कोविड ग्रस्त हो गए थे, एक माह तक उनका इलाज दिल्ली के मेदांता अस्पताल में चला, लेकिन छुट्टी के बाद वह कोविड के गंभीर लक्षणों से ग्रस्त हो गए, जिस वजह से उन्हें चार कदम भी चलना मुश्किल हो गया था, क्योंकि उनकी सांस फूलने लगती थी। तभी उन्होंने जीएसवीएम के प्राचार्य से संपर्क किया और हैलट आए।
प्राचार्य ने टीम के साथ पहली बार फेफड़े की गंभीर बीमारी (पल्मोनरी फाइब्रोसिस) से ग्रस्त मरीज को स्टेम सेल दी, जो उनके लिए संजीवनी का काम करेगी। आगरा के रहने वाले डॉ.रवि मोहन सिंह यूके में पीडियाट्रिक गैस्ट्रोएंट्रोलॉजिस्ट हैं। कोविड के बाद फेफड़े की गंभीर बीमारी पल्मोनरी फाइब्रोसिस से ग्रस्त हो गए थे, जिसके कारण उनके छाती में लगातार जकड़न, पूरे शरीर में दर्द, थकान और सांस लेने में काफी परेशानी होती थी।
उन्होंने बीमारी के संबंध में कई विशेषज्ञों से परामर्श लिया और इलाज भी कराया, लेकिन पल्मोनरी फाइब्रोसिस गंभीर बीमारी की वजह से उपचार के सीमित विकल्प ही रह गए थे। तभी उन्होंने जीएसवीएम मेडिकल कॉलेज के प्राचार्य प्रो. संजय काला से संपर्क किया और पूरी बीमारी की पूरी हिस्ट्री बताई। प्राचार्य ने उन्हें कॉलेज के रिजनरेटिव मेडिसिन एंड सेल्युलर थेरेपी विभाग के विजिटिंग प्रोफेसर व ऑथोपेडिक्स डॉ. बीएस राजपूत के बारे में और स्टेम सेल की प्रक्रिया व लाभ बताए, जिसके लिए राजी होने पर प्राचार्य ने डॉ.बीएस राजपूत को सूचित किया। बताया कि ऑर्थोपेडिक्स और स्टेम सेल थेरेपी में वह अंतरराष्ट्रीय स्तर पर मान्यता प्राप्त विशेषज्ञ हैं।
प्राचार्य ने डॉ.बीएस राजपूत व टीम के साथ मिलकर शामिल डॉ.रवि मोहन सिंह को स्टेम सेल थेरेपी दी। प्राचार्य ने बताया कि डॉ. राजपूत ने स्टेम सेल अनुप्रयोगों को आगे बढ़ाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। उन्होंने स्टेम सेल थेरेपी का उपयोग करके इंटरस्टिशियल लंग डिजीज (आईएलडी) के 50 से अधिक मामलों का सफल इलाज किया है। लेकिन यह केस जीएसवीएम मेडिकल कॉलेज में कोविड के बाद आईएलडी के इलाल का पहला मामला है, जो डॉ.रवि मोहन के लिए संजीवनी की तरह काम करेगा। कहा कि यह नवाचारी थेरेपी विशेष रूप से कोविड के बाद की जटिलताओं से जूझ रहे पल्मोनरी फाइब्रोसिस के मरीजों के लिए एक क्रांतिकारी उपचार प्रदान करती है। जीएसवीएम को पुनर्योजी चिकित्सा अनुसंधान के अग्रणी स्थान पर स्थापित करती है।
इस तरह दी थेरेपी, ऐसे कम होगी जटिलता
प्राचार्य ने बताया कि इस प्रक्रिया में मरीज से बोन मैरो स्टेम सेल्स (बीएमएससीएस) को अलग किया जाता है और उन्हें रक्त प्रवाह में पुन प्रविष्ट शामिल करना होता है। ये स्टेम सेल सूजन को नियंत्रित करने, फेफड़े की ऊतकों की मरम्मत करने और संभावित रूप से क्षतिग्रस्त अंगों के कार्य को बहाल करने में सहायक होते हैं।
बीएमएससीएस की अनूठी क्षमता होती है कि यह टीएनएफ-ए, आईएल-1बी, आईएल-6 और आईएल-10 जैसे प्रो-इंफ्लेमेटरी फैक्टर्स को कम कर सकते हैं, जिससे फेफड़े की ऊतकों की चिकित्सा में प्रतिरक्षा प्रणाली को मदद मिलती है। इसके अलावा वे एंटी-फाइब्रोटिक और एंजियोजेनिक फैक्टर्स का स्राव करते हैं, जो ऊतकों की मरम्मत का समर्थन करते हैं और यहां तक कि फेफड़ों में बेकार हो चुकी कोशिकाओं को भी बदल सकते हैं। थेरेपी में न्यूनतम इम्यूनोजेनिक गुण होते हैं, जिससे बिना इम्यूनोसप्रेसिव ट्रीटमेंट के इसे सुरक्षित रूप से किया जा सकता है।
टीम में ये डॉक्टर रहे शामिल
प्राचार्य प्रो. संजय काला, स्टेम सेल के डॉ.बीएस राजपूत, डॉ.यामिनी, डॉ.आंचल, डॉ. साकिब, डॉ.आदित्य, डॉ. गीतिका, डॉ.शशांक, एनेस्थेटिस्ट डॉ. वीना अरोड़ा, डॉ. सानिका, डॉ. शिवम व डॉ. शिखा शामिल रही।
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