लखीमपुर खीरी: दुधवा में मजदूरी करो और बेशकीमती लकड़ी ले जाओ, विभागीय मिलीभगत से चल रहा ये खेल
जंगल के रास्तों की सफाई के नाम पर पैसा नहीं लकड़ी के बोट ला रहे मजदूर
लखीमपुर खीरी, अमृत विचार। दुधवा नेशनल पार्क की बेलरायां वन रेंज में रास्तों की सफाई कराने के बदले में बेशकीमती लकड़ी दी जा रही है। मजदूर ये लट्ठे बाजार में महंगे दामों में बेंच रहे हैं। इससे जहां दुधवा की बेशकीमती लकड़ी बिक रही है, वहीं राजस्व को भी नुकसान है। बताते हैं कि केंद्रीय प्रोजेक्ट से जंगलों के रास्तों की साफ-सफाई करने के लिए एक किलोमीटर पर आठ से दस हजार रुपये की मजदूरी आती है, लेकिन स्थानीय वनकर्मी मजदूरों से काम तो लेते हैं, लेकिन उन्हें मजदूरी नहीं दी जाती है। बेगारी के नाम पर कीमती लकड़ियां उपलब्ध कराई जाती है, जिसे वह बाजारों में महंगे दामों में बिक्री करते हैं।
दुधवा टाइगर रिजर्व बरसात के सीजन में पर्यटकों के लिए बंद हो जाता है। इससे जंगल के रास्तों पर बड़ी-बड़ी घास-झाड़ी झंखाड़ उग जाती है। पार्क को पयर्टकों के लिए खोलने के पहले दुधवा नेशनल पार्क प्रशासन जंगल के अंदर के रास्तों की साफ-सफाई कराता है। इसकी जिम्मेंदारी संबंधित वनरेंजों को सौंपी जाती है। बेलरायां वन रेंज क्षेत्र में भी बड़ी संख्या में मजदूरों को लगाकर सभी रास्तों को साफ-सफाई कराकर उन्हें आकर्षक बनाने का रूप दिया जाता है। जिससे हिंसक वन्य जीवों का खतरा न रहे। वन्य जीव भी पर्यटकों को दूर से दिखाई पड़ें। केंद्रीय योजना के तहत भारत सरकार रास्ते की साफ-सफाई के लिए आठ से दस हजार रुपये प्रति किलोमीटर के हिसाब से दुधवा प्रशासन को उपलब्ध कराता है। दुधवा प्रशासन किलोमीटर के हिसाब से वन रेंजों की मांग पर मजूदरी उपलब्ध कराता है। बेलरायां वन रेंज के तहत इस धनराशि में बड़े पैमाने पर गोलमाल किए जाने की बात प्रकाश में आई है। वनकर्मी जलौनी लकड़ी लेने जंगल में आने वाले लोगों को रोक लेते हैं। साथ ही अपने परिचितों को बुलाकर उनसे रास्तों की साफ-सफाई कराते हैं। बेगार करने के नाम पर उन्हें बेशकीमती लकड़ी दी जाती है। जिसे मजदूर जंगलों में ही फाड़कर साइकिलों पर लादकर लाते हैं। फिर उसे बाजारों में बिक्री करते हैं। विभागीय सूत्र बताते हैं कि सरकारी खजाने से आने वाली धनराशि मजदूरों को नहीं दी जाती है। कुछ वनकर्मियों ने अपने ही नजदीकियों के खाते खुलवा रखे हैं। उनके खाते में राशि भेजकर उसे निकालकर धनराशि का बंदरबांट कर लिया जाता है।
दिन भर जंगल से निकलती हैं लकड़ी से लदी साइकिल
दुधवा नेशनल पार्क की बेलरायां वन रेंज के तहत किला कोठी, शीतलापुर, भैरमपुर, बेलापरसुआ आदि वन चौकिया हैं। रेंज मुख्यालय के साथ ही इन चौकियों से दिन भर लोग साइकिलों में कीमती लकड़ियां लादकर फर्राटा भरते हैं। यह लकड़ियां बाजार में पांच से सात सौ रुपये क्विंटल तक बिक्री की जाती हैं। ग्रामीणों ने बताया कि लकड़ियों को जंगल से लाने का सिलसिला सुबह सात बजे से शुरू हो जाता है, जो शाम तक जारी रहता है।
बेगार की आड़ में वनकर्मी करते हैं वसूली
बेलरायां वन रेंज के विभागीय सूत्र बताते हैं कि बेगार की आड़ में कुछ वनकर्मियों ने इसे कमाई का जरिया बना रखा है। वह दो सौ से लेकर तीन सौ रुपये प्रति साइकिल की वसूली करते हैं। इस धंधे में शामिल लोग जंगल में गिरी साखू, शीशम और सागौन की लकड़ियों को काटकर लाते हैं और मोटा मुनाफा कमाते हैं। ऐसा नहीं है कि इसकी जानकारी स्थानीय वनाधिकारियों और उच्चाधिकारियों को नहीं है, लेकिन बंदरबांट के चलते स्थानीय अधिकारी चुप्पी साधे हुए हैं।
वन विभाग के अफसर बोले, करेंगे कार्रवाई
दुधवा नेशनल पार्क के डिप्टी डायरेक्टर डॉ. रंगा राजू टी ने बताया कि रास्तों की साफ-सफाई करने वाले मजदूरों का भुगतान केंद्रीय योजना से होता है। आठ से दस हजार रुपये प्रति किलोमीटर के हिसाब से भुगतान किया जाता है। काम के बदले लकड़ी देने का कोई प्रावधान नहीं है। मेरे भी संज्ञान में आया है। कुछ लोग इस तरह का काम कर रहे हैं। जल्द ही जांच कर संबंधितों के खिलाफ कार्रवाई की जाएगी।
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