Prayagraj News : पुनरीक्षण याचिका में रिकॉर्ड पर मौजूद स्पष्ट त्रुटि की समीक्षा ही स्वीकार्य

Amrit Vichar Network
Published By Vinay Shukla
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अमृत विचार, प्रयागराज : इलाहाबाद हाईकोर्ट ने समीक्षा आवेदन की स्वीकृति को लेकर निर्धारित नियमों को स्पष्ट करते हुए कहा कि समीक्षा केवल तभी स्वीकार्य है, जब रिकॉर्ड में त्रुटि स्पष्ट हो या त्रुटि का पता लगाने के लिए तर्क की लंबी प्रक्रिया और संपूर्ण साक्ष्यों का पुनर्मूल्यांकन आवश्यक न हो। कोर्ट ने इस बात पर जोर दिया कि तर्क की प्रक्रिया के दौरान सामने आई त्रुटि को स्पष्ट त्रुटि नहीं कहा जा सकता है।

कोर्ट ने सुप्रीम कोर्ट के फैसलों का हवाला देते हुए कहा कि समीक्षा को रिकॉर्ड पर स्पष्ट त्रुटि तक ही सीमित रखा जाना चाहिए। त्रुटि खोजने के लिए रिकॉर्ड पर मौजूद साक्ष्यों का पुनर्मूल्यांकन अपीलीय क्षेत्राधिकार में हस्तक्षेप होगा। कोर्ट ने पुनरीक्षण क्षेत्राधिकार के मापदंडों को रेखांकित करते हुए कहा कि पुनरीक्षण क्षेत्राधिकार सीपीसी के आदेश 47 नियम 1 के साथ धारा 114 के तहत प्रदत्त सीमाओं के भीतर ही सीमित है। उक्त आदेश न्यायमूर्ति महेश चंद्र त्रिपाठी और न्यायमूर्ति पीयूष अग्रवाल की खंडपीठ ने चेतराम उर्फ मिंटू और चार अन्य की पुनरीक्षण याचिका को खारिज करते हुए पारित किया।

मामले के अनुसार याची गौतमबुद्ध नगर के सदरपुर गांव में कुछ भूमि के मालिक थे और उन्होंने 5% अतिरिक्त आबादी भूमि के लिए 44 हजार प्रति वर्ग मीटर की दर से मुआवजा मांगा था जबकि राज्य ने 2002 और 2003 की भूमि अधिग्रहण की अधिसूचनाओं के तहत 22 हजार रुपए प्रति वर्ग मीटर की दर से मुआवजा देने का प्रस्ताव रखा। हालांकि याचियों ने गजराज सिंह मामले का हवाला देते हुए 64.7 प्रतिशत की दर से पूर्ण मुआवजे का दावा किया। अंत में कोर्ट ने याचियों द्वारा दाखिल पुनरीक्षण याचिका पर विचार करते हुए पाया कि बढ़े हुए मुआवजे की दर से 64.7% के हकदार नहीं हैं, क्योंकि यह केवल उन लोगों के लिए उपलब्ध था, जिनकी भूमि मार्च 2002 और मार्च 2009 के बीच अधिग्रहित की गई थी जबकि याचियों की भूमि वर्ष 2001 में खरीदी गई थी। अतः समीक्षा या पुनरीक्षण आवेदन में कोई ठोस और वैध आधार न देखकर याचिका खारिज कर दी।

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