Lakshmi-Ganesh Pujan: दिवाली की पूजा के बाद पुरानी मूर्ती का क्या करें, जाने पूरी विधि
लखनऊ, अमृत विचारः कार्तिक अमावस्या पर देशभर में धूमधाम से दिवाली का पर्व मनाया जाता है। दिवाली में हर साल मां लक्ष्मी और भगवान गणेश की नई मूर्ति की पूजा-अर्चना की जाती है। पूजा के बाद मूर्ति सालभर के लिए पूजास्थल पर स्थापित रहती है। यह सिलसिला हर साल होता है। पर ऐसे में कई लोगों के मन में कुछ प्रश्न उठता होगा की आखिर उस पुरानी मूर्ती का क्या होता है। क्यों अगले साल फिर से नई मूर्ति लाकर उसकी पूजा की जाएगी। आइए जानते हैं कि उस पुरानी मूर्ती का क्या करना होगा।
अगर आप सोना-चांदी या किसी पीतल जैसे धातुओं की मूर्ति खरीदते हैं तो हर साल नई मूर्तियां लाकर उनकी पूजा करना जरूरी नहीं होता है। बल्कि उसी पुरानी मूर्ति को गंगाजल से शुद्ध करके उसकी पूजा की जाती है। लेकिन अगर आपकी गणेश-लक्ष्मी की मूर्तियां मिट्टी की हो तो दिवाली पर हर साल नई मूर्ति में पूजा की जाती है।
मिट्टी से बनी लक्ष्मी-गणेश की पुरानी मूर्तियों की पूजा दिवाली के दिन जरूर करनी चाहिए। इसके बाद नई मूर्ति की स्थापना उसी स्थान पर करनी चाहिए जहां पर पुरानी मूर्तियां स्थापित थी। पुरानी मूर्तियों को नदी या तालाब में विसर्जित कर देना चाहिए।
अगर आपकी मूर्तियां इको फ्रेंडली हो तो घर पर ही किसी बाल्टी या टब में पानी भरकर भी मूर्तियों का विसर्जन कर सकते हैं. इसके बाद धीरे-धीरे मूर्तियां प्राकृतिक रूप से पानी में घुल जाती हैं। मूर्ति के घुलने के बाद इस पानी और मिट्टी को घर के गमले में डाल दें।
मूर्तियों का विसर्जन करने के लिए सोमवार और शुक्रवार का काफी दिन अच्छा माना जाता है। मंगलवार को विसर्जन नहीं करना चाहिए। सूर्यास्त के बाद भी मूर्ति का विसर्जन करना विसर्जित है। साथ ही इस बात का भी ध्यान रखें कि पुरानी मूर्तियों को गंदगी वाले स्थान या फिर किसी पेड़ के नीचे रखने से बचें। ऐसा नहीं करना चाहिए।
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