उत्तर भारत से नेपाल तक... जिंदगी बचाने का केंद्र केजीएमयू का ट्रॉमा सेंटर

उत्तर भारत से नेपाल तक... जिंदगी बचाने का केंद्र केजीएमयू का ट्रॉमा सेंटर

देश ही नहीं, विदेश के भी मरीजों की जिंदगी की आखिरी उम्मीद लखनऊ किंग जार्ज चिकित्सा विश्वविद्यालय (केजीएमयू) का ट्रामा सेंटर है। चिकित्सक और स्टाफ 24 घंटे काम करते हैं तो मरीज मुस्कुराता हुआ लौटता है घर। ट्रामा सेंटर व इसके नायकों के बारे में पेश है अमृत विचार की विशेष रिपोर्ट

(वीरेंद्र पांडेय / पंकज द्विवेदी) लखनऊ, अमृत विचार: किंग जार्ज चिकित्सा विश्वविद्यालय में ट्रॉमा सेंटर की शुरुआत साल 2003 में हुई थी। इसकी स्थापना और विकसित करने का श्रेय प्रो.केएम सिंह को जाता है। इससे पहले केजीएमयू का आपातकालीन चिकित्सा विभाग पुरानी ओपीडी बिल्डिंग में संचालित होता था, जिसे लालबत्ती के नाम से जाना जाता था। जगह और भवन में बदलाव किया गया और समय के साथ यह आपातकालीन चिकित्सा सेवाओं की एक आत्मनिर्भर इकाई के रूप में बनकर उभरा। यहां एक ही छत के नीचे पूरे साल और 24 घंटे मरीजों को गुणवत्तापूर्ण इलाज देने की कवायद शुरू हुई थी।

शुरुआत में तीन मंजिला भवन में ट्रामा सेंटर संचालित होता था जिसमें सामान्य सर्जरी, आर्थोपेडिक,न्यूरोसर्जरी, मेडिसिन के लिए 250 बेड निर्धारित किए गए थे। इन विभागों के लिए 4 आपरेशन थिएटर (ओटी)भी बनाए गए।  वर्ष 2016 में ट्रामा सेंटर का भवन पांच मंजिला हो गया। मौजूदा समय में करीब एक लाख वर्ग फीट में 15 विभाग और उसके डॉक्टर,नर्सिंग और पैरामेडिकल स्टाफ हर वक्त तैयार रहते हैं। साथ ही सीटी स्कैन, अल्ट्रासाउंड, एक्स-रे, पैथालॉजी, बायोकेमिस्ट्री लैब में सभी तरह की जांच एक ही छत के नीचे उपलब्ध है। इसके अलावा ट्रांसफ्यूजन मेडिसिन विभाग का सेटेलाइट सेंटर भी है जो गंभीर मरीजों को बिना देरी रक्त उपलब्ध कराता है। रोज करीब 250 मरीज इलाज के लिए आते हैं और करीब 2000 हजार मरीजों के रक्त की रोजाना जांच होती है।

ट्रॉमा में लगातार मरीजों की संख्या बढ़ रही है। इसके चलते इसे विस्तार दिया जा रहा है। ट्रॉमा के सामने ही टीन शेड के नीचे संचालित ट्रायज एरिया और रैन बसेरा को तोड़कर नई बिल्डिंग का निर्माण कराया जाएगा। कुलपति प्रो.सोनिया नित्यानंद ने बताया कि शासन को भेजे गए प्रस्ताव में इस एरिया में पांच मंजिल इमारत बनाने का अनुरोध किया गया है। दो मंजिल में जांचों की व्यवस्था होगी। इससे पुरानी इमारत से जांचों का लोड कम हो जाएगा। तीसरी मंजिल पर तीमारदारों के खाने-पीने की व्यवस्था रहेगी। शेष दो मंजिल पर तीमारदारों को रहने की व्यवस्था की जाएगी।

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डॉक्टर-स्टाफ हर वक्त रहता है तैयार

ट्रॉमा सेंटर के अलग-अलग विभाग में करीब 30 सीनियर,80 से 100 रेजिडेंट, 40 नॉन पीजी रेजिडेंट, 150 नर्सिंग ऑफिसर, 90 वार्ड ब्वाॅय और 60 से 70 सफाई कर्मचारी सप्ताह के सातो दिन और 24 घंटे काम करते हैं। इसके अलावा 7 पीआरओ और अन्य कर्मचारी भी हैं जो हेल्प डेस्क पर मरीजों की मदद करते हैं। यहां 496 बेड और करीब 150 स्ट्रेचर उपलब्ध हैं।

वर्ष 2021 में मिला लेवल-1 का दर्जा

चिकित्सा क्षेत्र में तय मानकों को पूरा करने के कारण ट्रॉमा सेंटर को वर्ष 2021 में लेवल वन का दर्जा मिला। 

ये सुविधा है मौजूद

इमरजेंसी मेडिसिन, न्यूरोलॉजी, जनरल मेडिसिन, पीडियाट्रिक इमरजेंसी, पीडियाट्रिक आर्थोपेडिक, आर्थोपेडिक, जनरल सर्जरी, न्यूरो सर्जरी, सर्जरी, क्रिटिकल केयर मेडिसिन, रेडियोडायग्नोसिस विभाग, पैथालॉजी विभाग, बायोकेमिस्ट्री, आकस्मिक चिकित्सा कक्ष, ट्रांसफ्यूजन मेडिसिन विभाग का सेटेलाइट सेंटर 

ट्रॉमा सेंटर के नायक

-डॉ. धीरेंद्र पटेल 
-डॉ. यादवेंद्र 
-डॉ.नरेंद्र कुमार 
-डॉ.अनीता सिंह
-डॉ.मुकेश कुमार
-डॉ.दीपक

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-प्रो. संदीप तिवारी (एचओडी,ट्रॉमा सर्जरी)
-प्रो. बीके ओझा (एचओडी, न्यूरो सर्जरी)
-डॉ अविनाश अग्रवाल (एचओडी, क्रिटिकल केयर मेडिसिन)
-डॉ. प्रेमराज सिंह (सीएमएस ट्रॉमा सेंटर)
-डॉ. तूलिका चंद्रा ( एचओडी,ट्रांसफ्यूजन मेडिसिन विभाग)
-डॉ. समीर मिश्रा (ट्रॉमा सर्जरी, विभाग)
-डॉ. अनित परिहार ( एचओडी, रेडियो डायग्नोसिस विभाग)
-डॉ. हैदर अब्बास (एचओडी, इमरजेंसी मेडिसिन)
-डॉ. जिया अरशद (ट्रॉमा वेंटिलेटर यूनिट)
-डॉ. वाहिद अली (पैथोलॉजी)

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-डॉ. सतीश कुमार(मेडिसिन)
-डॉ.सोमिल (न्यूरो सर्जरी)
-डॉ श्वेता पांडे(न्यूरोलॉजी)
-डॉ. अजय पटवा (मेडिसिन)
-डॉ. देवर्षि रस्तोगी (आर्थो)
 -डॉ. सारिका (पीडियाट्रिक)
-डॉ.मेधावी (मेडिसिन)
-डॉ.रवि (प्लास्टिक सर्जरी)
-प्रमोद पांडे (फार्मासिस्ट)

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 नर्सिंग अधिकारी  डिपार्टमेंट
भगवान दास    मेडिसिन 
शोभित पवार     क्रिटिकल केयर
प्रिया राय         एनआईसीयू 
इन्दु         कैजुअल्टी
लाल बहादुर      सहायक नर्सिंग अधीक्षक
स्वर्गीय सुशील सिंह     कैजुअल्टी

 

दिल के पार हुई सरिया निकाली और बचाई जान

ट्रामा सेंटर के डॉक्टरों ने 54 वर्षीय एक मरीज की जान बचाने में कामयाबी हासिल की थी। सरिया 54 वर्षीय मुन्ना लाल के दिल को चीरकर आर पार हो गया था। इसी साल मार्च महीने में वह ट्रामा सेंटर पहुंचा था। ट्रामा सर्जरी विभाग की टीम ने सर्जरी करने का फैसला लिया। मरीज की सर्जरी करीब 5 घंटे चली और उसकी जान डॉक्टरों ने बचा ली। ट्रामा सर्जरी विभाग के डॉक्टरों ने बताया था कि इस तरह के 99 फ़ीसदी से अधिक मामलों में मरीज की मौत हो जाया करती है, लेकिन दुनिया का यह पहला ऐसा मामला था, जहां 5 घंटे चले जटिल ऑपरेशन में 15 डॉक्टरों की टीम ने मिलकर मरीज के दिल से सरिया बाहर निकाल लिया और मरीज की जान बचाई जा सकी। बताया जा रहा है कि अभी तक इस तरह घायल हुये मरीज को ट्रामा सेंटर के अलावा दुनिया में कहीं भी बचाया नहीं जा सका है।

सर्जरी करने वाली डॉक्टरों की टीम

प्रोफेसर संदीप तिवारी, प्रो. समीर मिश्रा, डॉ.यादवेंद्र, डॉ वैभव जायसवाल, डॉ.शाहनवाज, डॉ.आकांक्षा, डॉ.एकता, डॉ. रामबित, डॉ. ताहिर, डॉ. अंजना डॉ. विवेक, डॉ. जीशान, डॉ. बृजेश, डॉ. रति, डॉ. जिया अरशद, डॉ. तृप्ति, डॉ. शगुन, डॉ. सुनंदा, परमानन्द और महेन्द्र।

पड़ोसी राज्य से लेकर पड़ोसी राष्ट्र तक पहुंचाई आपदा में राहत

साल 2013 में उत्तराखंड स्थित केदारनाथ मंदिर के आस-पास बाढ़ की विभीषिका रही हो या फिर नेपाल में साल 2015 में आया भयंकर भूकंप। इन दोनों ही प्राकृतिक आपदा में हजारों लोगों ने अपनी जांन गवाई थी। केदारनाथ मंदिर के आस-पास बाढ़ की विभीषिका में कई लोगों के शव कभी नहीं मिले। वहीं नेपाल में भूकंप से हुई तबाही ने 9,000 से ज्यादा लोग मारे गए, हजारों लोग घायल हुए इतना ही नहीं काठमांडू और आस-पास के शहरों में हजारों इमारतें या तो क्षतिग्रस्त हो गईं या फिर नष्ट हो गईं। इन दोनों ही प्राकृतिक आपदाओं में ट्रॉमा सेंटर के डॉक्टरों की टीम ने मौके पर जाकर घायल लोगों की जान बचाने का काम किया था। दोनों ही बार इस स्पेशल टीम का नेतृत्व लंबे समय तक ट्रॉमा सेंटर के प्रभारी और सीएमएस रहे ट्रामा सर्जरी विभाग के एचओडी प्रो.संदीप तिवारी ने किया था। इस दौरान उनके साथ डॉक्टर, फार्मासिस्ट, नर्सिंग स्टॉफ समेत अन्य पैरामेडिकल स्टाफ के लोग शामिल रहे थे।

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कोविड काल में निभाई अहम भूमिका

कोरोना काल का वह दौर शायद ही कोई भूल पाया हो। साल 2019 में आई इस महामारी में ट्रॉमा सेंटर के डॉक्टरों ने अहम भूमिका निभाई और कोविड की चपेट में आये गंभीर मरीजों को इलाज दिया। इस दौरान कई डॉक्टर व स्टाफ ऐसे भी रहे। जो इस महामारी के खुद भी चपेट में आ गए, लेकिन मरीजों का इलाज जारी रहा। बहुत से चिकित्सक महीनों ट्रॉमा सेंटर में मरीजों को इलाज देते रहे और अपने घर भी नहीं जा सके। स्वर्गीय सुशील सिंह को ट्रामा सेंटर में लोग आज भी याद करते हैं। कोरोना काल में सुशील सिंह ट्रॉमा कैजुअल्टी में नर्सिंग अधिकारी के तौर पर तैनात थे। इसी दौरान उनकी मृत्यु हो गई थी।

विभाग        बेड    
इमरजेंसी            86
जनरल सर्जरी    50
टीएसडब्ल्यू-1    10
टीएसडब्ल्यू-2    34
मेडिसिन              38
न्यूरोलॉजी -1    10
पी.ऑर्थोपेडिक्स 12
ऑर्थोपेडिक्स       54
पीडियाट्रिक         119
सीसीएम              18
न्यूरोसर्जरी  (पोस्ट-ऑपरेटिव)     28
न्यूरोसर्जरी (प्री-ऑपरेटिव)       27

500 बेड का नया ट्रॉमा सेंटर बनाने की तैयारियां तेज

केजीएमयू के ट्रॉमा सेंटर में सड़क दुर्घटना और गंभीर मरीजों को और बेहतर इलाज देने के लिए ट्रॉमा सेंटर फेज-2 का सात मंजिला नया भवन बनाया जाना है। कुलपति प्रो.सोनिया नित्यानंद ने बताया कि ट्रॉमा-2 बनने से काफी राहत मिलेगी। इसके निर्माण को लेकर तैयारियां तेज कर दी गई हैं। जल्द ही निर्माण कार्य शुरू कर दिया जाएगा। 
प्रो.सोनिया नित्यानंद, कुलपति

खून की कमी से न जाए किसी मरीज की जान

ट्रांसफ्यूजन मेडिसिन विभाग की तरफ से ट्रामा सेंटर में आए मरीजों को समय रहते ब्लड उपलब्ध हो सके, इसके लिए संबंधित विभाग के अध्यक्षों को ट्रांसफ्यूजन मेडिसिन विभाग की तरफ से कार्ड मुहैया कराया गया है। विभाग की एचओडी प्रोफेसर तूलिका चंद्र ने बताया कि कई बार ट्रामा सेंटर में आए मरीज के साथ परिजन नहीं होते और यदि होते भी हैं तो ब्लड देने को तैयार नहीं होते। ऐसे में मरीजों की जान पर खतरा न आए इसके लिए कार्ड व्यवस्था के जरिए ब्लड मंगा लिया जाता है।
प्रो. तुलिका चंद्र, विभागाध्यक्ष ट्रांसफ्यूजन मेडिसिन विभाग

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क्या कहते हैं पेशेंट्स के परिजन

मेरा भाई सुशील कुमार (40) एक हादसे में गंभीर रूप से घायल हो गया था। परिवार की आर्थिक स्थिति भी सही नहीं है। घटना के बाद घर के सभी लोग परेशान हो गए। एम्बुलेंस की मदद से 12 अक्टूबर को ट्रॉमा लेकर आए। यहां तत्काल डॉक्टरों ने देखा। मरीज की सांसे उखड़ रही थी। उसे वेंटिलेटर सपोर्ट पर शिफ्ट किया गया। अब मरीज की तबियत में काफी सुधार है।  -अभिषेक कुमार, महोली, सीतापुर

मेरा भाई सुरेश कुमार (36) को फ्रैक्चर हुआ है। निजी अस्पताल में काफी खर्च आ रहा था। उसे यहां लेकर आए। तत्काल भर्ती मिल गई। चिकित्सकों और स्टाफ ने भी बड़ा सहयोग किया। अब काफी सुधार है। जल्द ही छुट्टी मिल जाएगी। यहां आने से पहले काफी डर लग रहा था। लेकिन संतोषजनक इलाज मिलने से अच्छा लग रहा है। - शेषराज यादव, अयोध्या


मेरे लिए तो ट्रॉमा के डॉक्टर किसी भगवान से कम नहीं हैं। पिता रमेश चंद्र (54) एक सप्ताह पहले बाथरूम में गिर गए थे। सिर में गंभीर चोट आ गई थी। मुफ्त एम्बुलेंस सेवा की मदद से उन्हें यहां लेकर आए। पहुंचते  ही इलाज शुरू कर दिया गया। सभी तरह की जांचे भी जल्दी से हो गईं। उम्मीद से बढ़कर इस ट्रामा सेंटर के डॉक्टर रेस्पॉन्स देते हैं। - आशीष वर्मा, पिहानी हरदोई

यहां का स्टाफ जिस तरीके से मरीजों की सेवा करता है। वैसी सेवा तो अपने भी नहीं करते। हमें तो पहले ट्रॉमा के नाम से भी डर लगता था। मेरी सास शैइरुल (58) के आंतों में इंफेक्शन है। कहीं से आराम न मिलने पर यहां लेकर आए थे। तत्काल इलाज शुरू हुआ। अब मरीज की सेहत में काफी सुधार है। जल्द ही वे ठीक हो जाएंगी। 
-साबिद अली, अमराई, इंदिरानगर

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