प्रयागराज: मां के प्रति कर्तव्य निर्वहन का इलाहाबाद हाईकोर्ट ने दिया निर्देश
प्रयागराज, अमृत विचार। इलाहाबाद हाईकोर्ट ने एक मां-बेटी के बीच रखरखाव संबंधी विवाद में रहीम के दोहे और तैत्तिरीय उपनिषद की शिक्षाओं का उल्लेख करते हुए कहा कि मातृ देवो भव: यानी माता देव अर्थात भगवान के समान है और क्षमा बड़न को चाहिए, छोटन को उत्पात।
उक्त टिप्पणी न्यायमूर्ति सौरभ श्याम शमशेरी की एकलपीठ ने सीआरपीसी की धारा 482 के तहत संगीता कुमारी द्वारा दाखिल याचिका पर सुनवाई करते हुए की, जिसमें परिवार न्यायालय, प्रयागराज के उस आदेश को चुनौती दी गई थी। उसे अपनी मां को रखरखाव के लिए प्रतिमाह 8 हजार रुपए का भुगतान करने का निर्देश दिया गया था। इससे पहले मां ने अपनी बेटी से गुजारा भत्ता की मांग करते हुए परिवार न्यायालय के समक्ष सीआरपीसी की धारा 125 के तहत आवेदन दाखिल किया था, जिसे एकपक्षीय अनुमति दे दी गई थी।
बेटी ने एकपक्षीय रखरखाव आदेश के संबंध में एक पुनरीक्षण याचिका दाखिल की, जिसमें तर्क दिया गया कि उसकी मां की चार अन्य बेटियां भी हैं, जिन्हें मां की संपत्ति में बराबर हिस्सा आवंटित किया गया है, साथ ही संपत्ति के बंटवारे में उसकी उपेक्षा की गई है, लेकिन रखरखाव मां ने केवल उससे मांगा है, न कि अन्य बेटियों से, जो अनुचित है। बेटी की पुनरीक्षण याचिका भी खारिज कर दी गई।
तब दोनों आदेशों को चुनौती देते हुए उसने हाईकोर्ट का रुख किया, जहां उसके अधिवक्ता ने गुण- दोष के आधार पर बहस करने के बजाय कोर्ट को यह बताया कि पक्ष आपस में मामले को सुलझाने के लिए तैयार हैं। इस पर कोर्ट ने मामले को सौहार्दपूर्ण ढंग से सुलझाने की उम्मीद व्यक्त करते हुए याची को निर्देश दिया कि वह अपनी मां के प्रति अपनी जिम्मेदारी का निर्वहन करें और अस्पताल में भर्ती मां के चिकित्सा खर्च की बकाया राशि का कम से कम 25% भुगतान करे। मामले को आगामी दो सप्ताह के बाद सूचीबद्ध करने का निर्देश दिया गया है।
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