Dussehra 2024: रावण दहन आज, क्या इन बुराइयों से मिलेगा हमे छुटकारा या बसी रहेगी समस्याओं की लंका

Dussehra 2024: रावण दहन आज, क्या इन बुराइयों से मिलेगा हमे छुटकारा या बसी रहेगी समस्याओं की लंका

लखनऊ, अमृत विचार। बुराई पर अच्छाई की जीत का त्योहार दशहरा शनिवार को मनाया जाएगा। हर साल की तरह बुराई के प्रतीक रावण के पुतले का दहन किया जाएगा। इससे सीख लेकर अगर अधिकारी शहर में व्याप्त समस्याओं के पुतलों के दहन की तैयारी धीरे-धीरे शुरू कर दें तो आमजन को काफी राहत मिल जाए। शहर में सबसे बड़ी समस्या जाम की है। 

यातायात की अव्यवस्था से लोग परेशान हैं। अतिक्रमण हटाने के साथ ई-रिक्शा पर वाराणसी और आगरा की तरह नकेल लगाने की आवश्यकता है। गंदगी, कूड़ों के ढेर से उफनाते नाले-नालियों का स्थायी हल भी खोजना होगा। सिर्फ ट्रांसगोमती को ही शहर न मानते हुए पुराने लखनऊ की बदहाल सड़कों को भी गड्ढामुक्त करना होगा। तभी दशानन के 10 सिर का पुतला दहन होगा। अलग-अलग विभागों के अधिकारियों को जिम्मेदारी का बोध कराती विशेष रिपोर्ट...।

जाम- प्रशासन, पुलिस, यातायात के अधिकारी आए दिन वातानुकूलित कमरों में बैठकर ट्रैफिक की समस्या से निजात दिलाने का खाका खींचते हैं। लेकिन वास्तविकता यह है कि जाम की गंभीर समस्या से आम शहरी जूझ रहा है। कभी जाम में रोगी को लेकर जा रही एंबुलेंस फंसती है तो कभी स्कूली बच्चे और कार्यालय समय से पहुंचने वाले लोग। दिनभर रेंगते वाहनों के बीच परेशान लोग जिम्मेदारों से अपेक्षा करते हैं कि इस समस्या से उन्हें राहत दिलाएं।

ई-रिक्शा की अराजकता

दरअसल ई-रिक्शा को फीडर सर्विस के रूप में शहर में लाया गया था। मंशा थी कि गरीब पैडल रिक्शों से आमजन को न ढोएं। यह सस्ती सेवा अब लोगों के लिए जी का जंजाल बन गई है। बच्चे चला रहे हैं। कोई पालथी मारे उंगली के इशारे से मनमुताबिक गति से संकरी गलियों और सड़कों पर दौड़ा रहा है। इन्हें न नियम मानना है और न इन पर परिवहन एक्ट फिट बैठता है नतीजा इनकी मनमानी आमजन को भारी पड़ रही है।

अतिक्रमण

हजरतगंज, चौक, रकाबगंज, अमीनाबाद, मौलवीगंज, नजीराबाद, स्टेशनरी बाजार गुईन रोड, लाटूश रोड, गणेश गंज, नादान महल रोड, नक्खास, पांडेयगंज, चारबाग, नाका हिंडोला, आलमबाग समेत शहर के सभी प्रमुख बाजारों में फुटपाथ से सड़कों तक कब्जे हैं। गोमतीनगर का पत्रकार पुरम, इंदिरानगर, भूतनाथ जैसे नये लखनऊ के इलाके भी कब्जेदारों के पास हैं। और तो और रस्तोगी इंटर कालेज का फुटपाथ और सिटी स्टेशन स्थित जुबली कालेज तक का गेट इन अतिक्रमणकारियों के कब्जे में पहुंच गया है।

नाले और उफनाती नालियां

राजधानी को चाहे पुराना इलाका हो या फिर नया लखनऊ सभी स्वच्छ भारत मिशन के संकल्प को बर्बाद कर रहे हैं। दशकों बीतने के बाद भी नाला और नालियों का उफनाना कम नहीं हो पाया। सड़क पर गंदा पानी बहता है और लोग इसी के बीच से अपना रास्ता बनाते हुए आगे बढ़ते हैं। लेकिन नालियों में खुद भी कूड़ा फेंकना बंद नहीं करते हैं। नालियों को सिल्ट मुक्त करने के दावे भी कागजों पर ही दौड़ते हैं।

गंदगी और कूड़ा

कूड़ा निस्तारण को लेकर नगर निगम योजनाओं पर योजनाएं बनाता है, लेकिन न कूड़ा उठता है और न ही निस्तारण की योजना ठीक ढंग से जमीन पर उतर पाती है। एजेंसियां गंदगी में माल ढूंढ़ती हैं। नतीजा कुछ माह में ही एजेंसियों के वादे कागजों और टेंडर प्रक्रिया तक ही सीमित रह जाते हैं। कूड़ा निस्तारण को लेकर ठोस पहल करनी होगी तभी शहर की सड़कें और गलियां गंदगी से मुक्त हो पाएंगी। प्रधानमंत्री ने देश को स्वच्छ रखने के लिए अभियान चलाया। इसके बाद भी लोग कूड़ा-कचरा इधर-उधर फेंक रहे हैं। अपनी जिम्मेदारी समझते हुए इससे बचना होगा।

जलभराव से जूझते इलाके

जलभराव भी एक आम समस्या बनकर रह गई है। प्रतिवर्ष बारिश के मौसम में जलभराव जैसी समस्याओं से लोग जूझते हैं। बरसात में ऐसा हाल होता है कि लोग सामान को ऊपरी मंजिल में शिफ्ट करते हैं। राशन खराब होता है। रामनगर, ऐशबाग और पुराने लखनऊ के कई क्षेत्र आज भी इस समस्या से पीड़ित हैं। बजट के नाम पर बंदरबांट होती है और समस्या ज्यों कि त्यों बनी रहती है। जिम्मेदार कागजी घोड़े दौड़ाते रहते हैं। विकसित भारत और स्मार्ट सिटी की परिकल्पना को आखिर जिम्मेदार कब साकार करेंगे।

खाद्य पदार्थों में मिलावट

लोगों की सेहत से खुलेआम खिलवाड़ हो रहा है। त्योहारी सीजन में तो दूध हो या मिठाई, खोया, मसाला, फलों के जूस अथवा देशी घी। सभी में मिलावट होने की शिकायतें आम हैं। औपचारिक रूप से एफएसडीए सैंपलिंग भी करता है। मिलावटी चीजें पकड़ी जाती हैं लेकिन विभाग के जिम्मेदार सजा किसी को नहीं करा पाते हैं। मिलावटी खाद्य सामग्री की बिक्री करने वाले लोगों की सेहत से खिलवाड़ कर रहे हैं। उन पर ऐसी कार्रवाई होनी चाहिए जो मिसाल बनें।

बदहाल स्वास्थ्य सेवाएं

स्वास्थ्य सेवाओं में बेहतरी के नाम पर हर सरकार में खूब ढिंढोरा पीटा जाता है। प्रचार-प्रसार किया जाता है कि जबकि वास्तविकता यह है कि इलाज की कौन कहे लोगों को अब भी सरकारी अस्पतालों में पर्चा बनवाने के लिए लंबी कतारों से जूझना पड़ता है। दवा लेने के लिए परेशान होना पड़ता है और जांच के नाम पर गरीब की जेब ढीली हो जाती है। इस गोरखधंधे पर नकेल कसी जानी चाहिए।

शिक्षा माफियाओं से परेशान अभिभावक

निजी स्कूलों में लूट मची है। ड्रेस से लेकर बस्ता, कापी, पेंसिल किताबें तक सब मनमाने रेट पर निजी स्कूलों में बेची जाती हैं। आम आदमी एक-एक पाई जोड़कर अपने बच्चों को बेहतर शिक्षा दिलाने का प्रयास करता है। दूसरी ओर निजी स्कूल मनमाने ढंग से फीस बढ़ाते जाते हैं। साथ ही वर्ष में कई बार विभिन्न आयोजन के नाम पर अभिभावकों की जेब हल्की करते हैं। सरकारी स्कूलों का स्तर अभी और बेहतर करना होगा ताकि लोग निजी स्कूलों से हटकर सरकारी स्कूलों की तरफ लौटें।

स्कूलों और धार्मिक स्थलों के पास से हटें शराब की दुकानें

स्कूली बच्चों धर्मभीरू लोगों के लिए शराब की दुकानें मुसीबत बन गई हैं। इन दुकानों के पास मौजूद होटलों में लोग हर समय शराब का सेवन करते खुले में दिखते हैं। नशे में धुत लोगों से स्कूल जाने वाले बच्चे खासकर छात्राएं काफी सहमी रहती हैं। इसी तरह धार्मिक स्थलों पर जाने वाले लोगों को भी असुविधा का सामना करना पड़ता है।

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